शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) चीन की ऋण-जाल कूटनीति का आधार है और चीन इसका इस्तेमाल गरीब देशों को कर्ज के जाल में फंसा कर उनकी संपत्ति को हथियाने के लिए करता है। श्रीलंका के साथ भी यही हुआ और जाम्बिया के साथ भी ऐसा हुआ था। अब इस सूची में युगांडा का नाम भी जुड़ गया है। रिपोर्ट के अनुसार युगांडा को कर्ज जाल में फंसा कर चीन ने वहां के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट को अपने कब्जा में कर लिया है।
इम्पोर्ट एक्सपोर्ट बैंक ऑफ चाइना ने युगांडा सरकार के ऋण चुकाने में विफल रहने के बाद वहां की युगांडा एंटेबे अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट और अन्य संपत्तियों को अपने कब्जे में ले लिया है। युगांडा के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का अधिग्रहण चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के चीन और युगांडा के बीच 2015 के ऋण समझौते के परिणामस्वरूप आया है। मुसेवेनी के नेतृत्व वाली युगांडा सरकार ने साल 2015 में चीन के एक्ज़िम बैंक के साथ दो प्रतिशत भुगतान पर 207 मिलियन डॉलर उधार लेने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था।
इस दौरान युगांडा सरकार ने ऋण को सुरक्षित करने के लिए चीन के साथ किए गए समझौते में अंतरराष्ट्रीय प्रतिरक्षा को हटा दिया था, जिससे एंटेबे अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट और अन्य युगांडा की संपत्तियां बिना अधिग्रहण के ही चीनी कब्जे में चले गए। बता दें कि यह वही एयरपोर्ट है, जहां 1976 में इजरायल के कमांडोज ने 4000 KM दूर जा कर अपने देशवासियों को बचाने वाले हैरतअंगेज़ मिशन को अंजाम दिया था।
चीन की शत्रुतापूर्ण कार्रवाई का उल्टा असर
हाल के वर्षों में यह देखने को मिला है कि कैसे अफ्रीकी देश चीन का विरोध कर रहे हैं और महाद्वीप में चीन का वर्चस्व न चलने देने के मूड में है। रूस, फ्रांस, अमेरिका, इज़राइल, चीन और अन्य विभिन्न शक्तियों के बीच अफ्रीका एक भू-राजनीतिक युद्ध का मैदान बन गया है, ये सभी महाद्वीप के विभिन्न देशों में अपने हितों को सुरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, चीन वास्तव में एकमात्र ऐसा देश है जो एक के बाद एक झटके झेल रहा है। ऐसे में युगांडा एयरपोर्ट का अधिग्रहण बीजिंग के लिए एक बड़ी जीत बताई जा रही है।
यह तथ्य है कि अफ्रीका विश्व शक्तियों के लिए एक भू-राजनीतिक युद्ध का मैदान है और चीन के लिए यह एक बड़ी समस्या है। युगांडा, रूस का करीबी माना है और व्लादिमीर पुतिन इस देश के अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का चीन के कब्जे को हल्के में नहीं देखेंगे। अब विभिन्न शक्तियां युगांडा के पहले से ही मोहभंग लोगों को चीन के विरुद्ध उकसाने के लिए काम कर सकती हैं।
देखा जाए तो युगांडा का एक काला इतिहास है। यहां के लोगों ने तानाशाह शासकों को करीब से देखा है। अब अगर योवेरी कागुता मुसेवेनी, जो 1986 से सत्ता में हैं, देश के हितों की रक्षा नहीं कर सकते है, तो लोग उनके खिलाफ उठेंगे। जो भी शासन आएगा वह बीजिंग के साथ उतना उदार नहीं होगा, जितना मुसेवेनी रहे हैं। यह भी हो सकता है कि वह नया शासन चीन के ऋणों का भुगतान भी न करे। हालांकि, इन सबसे इतर मुसेवेनी का शासन आतंकियों की मदद के लिए भी प्रसिद्ध रहा है।
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अफ्रीका में चरम पर है चीन का विरोध
गौरतलब है कि अफ्रीका में पहले BRI और फिर कोरोना के कारण पहले ही चीन विरोधी मानसिकता पनप रही थी। वहीं, चीन में लगातार हो रहे अफ्रीकी लोगों पर हमलों ने इस मानसिकता को और ज़्यादा बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप अफ्रीका ने अब चीन को आड़े हाथों लेने की ठान ली है। हाल की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अफ्रीकी देश तंजानिया के राष्ट्रपति ने पिछली सरकारों के समय चीन के साथ फाइनल किए गए 10 बिलियन डॉलर्स के एक प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया। साथ ही तंजानिया के राष्ट्रपति ने कहा कि इस प्रोजेक्ट की शर्तें इतनी बकवास थी कि कोई पागल व्यक्ति ही इन शर्तों को मान सकता था।
कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) युगांडा के ठीक बगल में, इसकी पश्चिमी सीमा पर स्थित है। युगांडा की पूर्वी सीमा केन्या से घिरा है और मध्य अफ्रीकी गणराज्य भी बहुत दूर नहीं है। डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, सिएरा लियोन, घाना और केन्या जैसे देशों ने चीनी परियोजनाओं को रद्द करना शुरू कर दिया है। यह अफ्रीका का खनन क्षेत्र भी है। हाल ही में, डीआरसी के अध्यक्ष फेलिक्स त्सेसीकेदी ने साल 2008 में चीन के साथ हस्ताक्षरित खनन अनुबंधों की समीक्षा करने का आह्वान किया है।
युगांडा में हो सकता है तख्तापलट
इसी बीच, केन्या के मोम्बासा बंदरगाह को हड़पने के चीनी सपने को झटका लगा है। उपर्युक्त घटनाओं को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि अफ्रीका में इस समय तख्तापलट का मौसम चल रहा है – जिनमें से अधिकतर देशों को रूस का समर्थन प्राप्त है। ये सैन्य शासन चीन को महाद्वीप से खदेड़ने में लगे हैं। माली, लीबिया और मध्य अफ्रीकी गणराज्य इसके कुछ उदाहरण हैं।
पिछले वर्ष सूडान और माली में दो सफल तख्तापलट कुछ ही महीनों के अंतराल पर हुआ था। सूडान से पहले तख्तापलट का प्रयास गिनी में हुआ था। अफ्रीका में हाल ही में सैन्य अधिग्रहण का सिलसिला नवंबर 2017 में शुरू हुआ, जब जिम्बाब्वे के तत्कालीन राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे को नजरबंद कर दिया गया था। ऐसे में यह संभव है कि युगांडा की सेना भी तख़्तापलट कर दे। ऐसे में चीन को एक बड़ा आर्थिक झटका लग सकता है और युगांडा के एयरपोर्ट का अधिग्रहण शी जिनपिंग के लिए बड़ी गलती साबित हो सकती है।