कुछ वर्षों पहले महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार ने हाइपरलूप तकनीक में उत्सुकता दिखाई थी, प्रोजेक्ट की रूपरेखा भी तैयार हो चुकी थी। लेकिन उद्धव सरकार की राजनीति के कारण यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। लेकिन एक बार फिर से हाइपरलूप टेकनोलॉजी चर्चा में है, इस बार यह चर्चा NITI आयोग ने आरंभ की है और ऐसा लगता है कि अब जल्द ही भारत में भी सामानों के परिवहन के लिए हाइपरलूप तकनीक की शुरुआत जल्द ही हो सकती है।
दरअसल, विरोध पर केंद्रित राजनीति हमेशा ही विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न करती है। ऐसा ही महाराष्ट्र में हाइपरलूप प्रोजेक्ट के साथ हुआ और सरकार बदलते ही वो योजना ठंडे बस्ते में चली गई। अब नई रिपोर्ट के अनुसार NITI Aayog का मानना है कि विदेशी कंपनियों को देश में नए परिवहन तकनीक स्थापित करने की अनुमति दी जानी चाहिए, ताकि इसकी व्यवहार्यता का अध्ययन किया जा सके।
वी के सारस्वत को मिला जिम्मा
नीति आयोग के सदस्य वी के सारस्वत को हाइपरलूप प्रौद्योगिकी की तकनीकी और वाणिज्यिक व्यवहार्यता का पता लगाने का जिम्मा सौंपा गाया है। उन्होंने पीटीआई से कहा कि देश को एक नियामक तंत्र भी बनाना चाहिए, ताकि इसके सुरक्षा मानकों की निगरानी की जा सके। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञ समिति के सदस्य देश में हाइपरलूप नेटवर्क के व्यावसायीकरण और इसकी व्यवहार्यता का अध्ययन करने के दो तरीके लेकर आए हैं। एक विदेशी कंपनियों को प्रदर्शन दिखाने की अनुमति देना है, जबकि दूसरा तरीका समानांतर में इस विशेष क्षेत्र में गंभीर अनुसंधान एवं विकास करना है।
बता दें कि पिछले वर्ष नीति आयोग ने एक कमिटी बनाई थी, जिसका काम ही वर्जिन हाइपरलूप प्रौद्योगिकी की तकनीकी और व्यावसायिक व्यवहार्यता का पता लगाना था। उन्होंने कहा कि भारत में R&D करने और हाइपरलूप के लिए अपने स्वयं की डिजाइन को विकसित करने की क्षमता है, इस कारण से इसमें काफी समय लग सकता है। सारस्वत ने कहा कि यदि विदेशी कंपनियां महाराष्ट्र या कर्नाटक में एक प्रदर्शन लाइन स्थापित करना चाहती हैं, तो उन्हें अनुमति दी जानी चाहिए।
हाइपरलूप की रफ्तार 100 से 161 किमी प्रति घंटे
गौरतलब है कि वर्जिन हाइपरलूप उन कंपनियों में से एक है, जो वर्तमान में यात्रियों की यात्रा के लिए एक अल्ट्रा-हाई-स्पीड अर्बन मोबिलिटी सिस्टम बनाने की कोशिश कर रही है। वर्जिन हाइपरलूप का पहला मानव परीक्षण 9 नवंबर, 2020 को अमेरिका के लास वेगास में 500 मीटर के ट्रैक पर आयोजित किया गया था। सारस्वत ने कहा, “हाइपरलूप एक हाई-स्पीड ट्रेन है, जो एक वैक्यूम ट्यूब में चलती है।” यह 100 मील प्रति घंटे या 161 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है।
महाराष्ट्र ने पहले हाइपरलूप को एक सार्वजनिक बुनियादी ढांचा अभ्यास के रूप में माना था और वर्जिन हाइपरलूप-डीपी वर्ल्ड कंसोर्टियम को मुंबई-पुणे हाइपरलूप परियोजना के लिए मूल परियोजना प्रस्तावक के रूप में मंजूरी दे दी थी। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इस प्रोजेक्ट को लगाने के लिए जुटे हुए थे। उन्होंने मुंबई से पुणे के बीच घंटों के समय को मिनटों में तय करने के लिए हाइपरलूप प्रोजेक्ट को सहमति देने की तैयारियां भी कर ली थी और अध्यन के बाद ये माना जा रहा था कि 2024 तक ये प्रोजेक्ट खत्म हो जाएगा। लेकिन देश में कई बड़े प्रोजेक्ट्स की तरह ही सरकार बदलने के साथ राजनीतिक एजेंडे के कारण नए मुख्यमंत्री ने इस पूरे प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
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पर्यावरण के अनुकूल है हाइपरलूप तकनीक
बताते चलें कि हाइपरलूप तकनीक परिवहन के क्षेत्र में बेहद क्रांतिकारी साबित हो सकती है। इसमें स्टील के एक बड़े ट्यूब में एक पॉड हवा के दबाव के अनुसार चलता है और इसके जरिए ही लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है। सामान्य भाषा में इसे एक चुम्बकीय ट्रैक के रूप में भी देखा जा सकता है। हाइपरलूप को टेस्ला मोटर्स के सीईओ एलन मास्क की देन माना जाता है, जो भविष्य में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है। इसके जरिए हजारों किलोमीटर की दूरी बेहद कम समय में पूरी की जा सकता है, जिसमें यात्रियों की सहूलियत का भी खास ख्याल रखा जाता है। हाइपरलूप तकनीक से आने वाले दशकों में परिवहन प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव की उम्मीद है। ये हवा की गति की तरह तेज है और साथ ही पर्यावरण के अनुकूल भी है। इस परियोजना से सालाना 1.5 लाख टन तक ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में भारी कमी आएगी।