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कैसे नेत्रहीन होकर भी श्रीकांत बोल्ला ने MIT से स्नातक किया और 100 करोड़ की कंपनी स्थापित की

जहां चाह वहां राह!

Shikhar Srivastava द्वारा Shikhar Srivastava
5 December 2021
in चर्चित, समीक्षा
Shrikant Bola

Source- Google

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पिछले कुछ वर्षों में भारतीय स्टार्टअप कंपनियों ने वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। जिसमें OLA, OYO, Swiggy और Paytm जैसी कई भारतीय स्टार्टअप कंपनियां शामिल हैं। मौजूदा समय में कई भारतीय कंपनियां Billion-dollar से ऊपर का व्यापार करती है और यूनिकॉर्न कंपनी का दर्जा प्राप्त कर चुकी हैं। भारत में हुए आर्थिक सुधारों का लाभ भारतीय युवाओं ने सबसे अधिक उठाया है। जहां एक ओर कई भारतीय शैक्षिक क्षेत्र में सफलता पाकर विदेशों में बस गए, तो वहीं दूसरी ओर ऐसे भारतीयों की कहानी भी है जो विदेशों की अच्छी नौकरी छोड़कर भारत लौटे और यहां अपना स्टार्टअप शुरू किया।

इन्हीं में एक नाम श्रीकांत बोल्ला का है। श्रीकांत जन्म से ही आंशिक रूप से अंधे थे। आंध्र प्रदेश के एक गरीब किसान परिवार में जन्मे श्रीकांत को गांव वाले परिवार पर बोझ समझते थे। उन्होंने श्रीकांत के माता-पिता को उन्हें अनाथालय में छोड़ने का सुझाव दिया। लेकिन मां-बाप ने श्रीकांत को लेकर ऐसा कोई कदम नहीं उठाया और ईश्वर पर विश्वास बनाए रखा। उस समय श्रीकांत के पिता को यह नहीं पता था कि यह बच्चा छोटी उम्र में ही करोड़ों की कंपनी खड़ी कर लेगा।

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और पढ़ें: हमारी प्रतिभा विदेशों में क्यों जा रही है? भारतीय CEOs पर जश्न मनाने का नहीं, यह सोचने का समय है

1992 में जन्मे श्रीकांत ने अपने पैतृक गांव में ही विद्यालयी शिक्षा ग्रहण की। जब श्रीकांत ने दसवीं की परीक्षा पास की, तो उनके विद्यालय ने उन्हें 12वीं में विज्ञान की पढ़ाई में प्रवेश से रोक दिया। श्रीकांत ने इसके विरुद्ध केस किया और 6 महीने बाद उन्हें उनके जोखिम पर विज्ञान की पढ़ाई करने की अनुमति मिल गई। विद्यालय का तर्क था कि अंधा लड़का विज्ञान की पढ़ाई कैसे करेगा। 12वीं का परिणाम घोषित होने पर श्रीकांत ने 98% अंकों के साथ अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

IIT की कोचिंग करना चाहते थे श्रीकांत

श्रीकांत IIT की कोचिंग करना चाहते थे, लेकिन इसमें भी उनका अंधापन उनका शत्रु बन गया। उन्हें किसी कोचिंग संस्थान में प्रवेश नहीं मिला। श्रीकांत ने हार नहीं मानी और अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में पहले अंतरराष्ट्रीय अंधे छात्र के रूप में प्रवेश लिया। श्रीकांत शिक्षा के क्षेत्र में इतना आगे नहीं बढ़ पाते, यदि उनका परिवार उनके साथ नहीं खड़ा होता। परिवार का संघर्ष ही श्रीकांत की शक्ति बना और उन्होंने अपने मां-बाप के साथ ही पूरे देश का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया।

श्रीकांत बताते हैं कि “मेरे माता-पिता, दामोदर राव और वेंकटम्मा परेशान हो गए थे कि उनका बच्चा अंधा पैदा हुआ था। लेकिन हर स्तर पर, जब से उन्होंने मुझे ग्रामीण क्षेत्र के एक स्कूल में दीक्षित किया, उन्हें व्यवस्था से लड़ना पड़ा। अपनी पढ़ाई के दौरान हर स्तर पर चुनौतियों का सामना करने के बाद मुझमें हमेशा कुछ अलग करने की ललक थी।”

श्रीकांत को इस बात का दुख है कि भारतीय शैक्षणिक व्यवस्था ने उनके अंधे होने के कारण उनके साथ भेदभाव किया। वो बताते हैं कि “जब भारत में शिक्षा प्रणाली ने मेरी अक्षमता के कारण मुझे अस्वीकार कर दिया, तो एमआईटी ने खुले हाथों से मेरा स्वागत किया। मैं संस्था का हमेशा आभारी रहूंगा।”  वहालांकि, भारत में हुए भेदभाव को श्रीकांत में भारत से बाहर अमेरिका में रहने का कारण नहीं बनने दिया और भारत वापस आकर, भारतीय लोगों को रोजगार देने के लिए और भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के इरादे से भारत में ही कंपनी खोली।

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कंपनी की कीमत है 400 करोड़ से ज्यादा

श्रीकांत ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि “ब्लालेंट इंडस्ट्रीज स्थापित करने का विचार मुख्य रूप से भारत में तीन प्रमुख चुनौतियों से लड़ना था। सबसे पहले लाखों अलग-अलग लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए। एक अनुमान के अनुसार 100 मिलियन से अधिक अशिक्षित और विविध विकलांग और अकुशल लोगों को रोजगार की आवश्यकता होती है। दूसरी बड़ी चुनौती यह है कि भारतीय किसानों ने शायद ही कभी सोचा है कि कृषि अपशिष्ट को नकद में बदलना है (अर्थात इससे पैसे कमाने है)। तीसरा, बड़ी मात्रा में विषाक्त और प्लास्टिक अपशिष्ट पर्यावरण को खतरे में डाल रहे हैं।”

श्रीकांत का उदाहरण बताता है कि उन्होंने भारत में चुनौतियां का सामना किया और भारत की समस्याओं को समझा, हार नहीं मानी और वापस लौटकर एक ऐसी कंपनी खोली जो आज हजारों लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार दे रही है, जिनमें से कई लोग विकलांग हैं। हाल ही में रतन टाटा ने उनकी कंपनी में लगभग 1.3 मिलियन डॉलर का निवेश किया, जिसके कारण आज श्रीकांत की कंपनी का टर्नओवर लगभग 150 करोड़ तक पहुंच चुका है। यह इंडस्ट्री 20% की औसत वृद्धि के साथ बड़ी होती जा रही है।

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अपनी क़ाबलियत के दम पर उन्होंने अपनी कंपनी को जिस ऊंचाई पर पहुंचाई है, वह सब के बस की बात नहीं है। साल 2017 में बहुचर्चित पत्रिका FORBES ने अपने एक सर्वे “30 Under 30 – Asia – Industry, Manufacturing & Energy” में उनका नाम शामिल किया था।

श्रीकांत की कहानी उन भारतीयों के लिए एक स्पष्ट उत्तर है, जो कहते हैं कि भारत की समस्याओं के कारण उन्हें विदेशों में जाकर बसना पड़ा। यदि हम भारतीय हैं, भारत की समस्याओं से भागकर विदेशों में जाएंगे तो भारत में स्थिति को बेहतर करने और देश को अव्वल बनाने की जिम्मेदारी किसे दी जाएगी? भारतीय युवाओं को भी तय करना चाहिए कि उनका आदर्श कौन है? पराग अग्रवाल, सुंदर पिचई या श्रीकांत बोल्ला।

Tags: ब्लालेंट इंडस्ट्रीजश्रीकांत बोल्ला
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