पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की मित्रता देख तमतमा रहा चीन, पर अब न उगलते बने न निगलते

जली न जिनपिंग, तेरी भी जली न!

चीन और रूस

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चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में बहुत दुख और रोष व्याप्त है। बीजिंग को लगता है कि उसके हितों को चोट पहुंची है, उसके साथ धोखा हुआ है। शी जिनपिंग ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। जिनपिंग का हाल ऐसा है जैसे कोई क्लर्क अपने बॉस को खुश करने के लिए मेहनत करे और बॉस उसे छोड़कर किसी दूसरे को अधिक तवज्जो दे दे। लेकिन ऐसा हुआ क्यों है? इसलिए नहीं कि जिनपिंग किसी के प्रेम में पड़ गए थे, बल्कि इसलिए हुआ क्योंकि जिनपिंग को लगा था कि पुतिन और रूस, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के परम सहयोगी हैं। ऐसे में कोरोना के नियंत्रण के बाद चीन प्रथम देश होना चाहिए था, जहां पुतिन का दौरा हो। लेकिन पुतिन ने पहले जेनेवा का दौरा किया, वो भी अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलने के लिए। वहीं, पुतिन का दूसरा दौरा भारत का रहा, जिसके साथ चीन की पश्चिमी सीमा पर संघर्ष और तनाव की स्थिति बनी हुई है

शी जिनपिंग जानते हैं कि वह और उनके कूटनीतिज्ञ रूसी राष्ट्रपति के विरुद्ध एक शब्द नहीं बोल सकते, क्योंकि उनका मानना है कि रूस ही उनका सबसे मजबूत सहयोगी है। ऐसे में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने रूसी राष्ट्रपति के भारत दौरे की प्रशंसा करनी शुरू कर दी। कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने पुतिन की भारत यात्रा को सकारात्मक बताया है। इसे चीन के हित में बताया गया है। सर्वविदित है कि रूस द्वारा भारत को दिए गए S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम ने चीन की चिंताएं बढ़ा दी है। इसे भी ग्लोबल टाइम्स ने अपने लेख का हिस्सा बनाया है।

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बिलबिला रहा है ग्लोबल टाइम्स

ग्लोबल टाइम्स में छपे लेख का शीर्षक Russia, India eye finalizing S-400 deal as Putin visits Modi है। लेख में बताया गया है कि S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम का समझौता भारत को बहुत लाभ नहीं पहुंचाएगा। निश्चित रूप से कम्युनिस्ट पार्टी के प्रोपेगेंडा समाचार पत्र द्वारा यह बात स्वयं की सांत्वना के लिए तथा अपने सबसे प्रिय सहयोगी पाकिस्तान को ढांढस बनाने के लिए लिखी गई है। लेख में लिखा गया है कि “बैठक ( पुतिन-मोदी की) की रिपोर्टिंग करने वाले कुछ भारतीय मीडिया आउटलेट इस तथ्य को मानते हैं कि रूसी हथियार प्रणाली सीमावर्ती क्षेत्रों में चीन की मदद कर सकती है, यह रिपोर्टिंग रूस और चीन के बीच संबंध तनावपूर्ण करने के लिए की जा रही है।”

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि यह भारतीय मीडिया की छोटी हरकत है। साथ ही बताया गया है कि रूसी रक्षा प्रणाली भारत को चीन पर कोई सैन्य बढ़त नहीं देगी और ना ही इस प्रकार की रिपोर्टिंग चीन और रूस के संबंधों में दरार डालेगी। ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि चीन और रूस के बीच पारस्परिक विश्वास का भाव है, जो ऐसी रिपोर्ट से नहीं डगमगाएगा।

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खुद को सांत्वना दे रहा है चीन

अपनी बात को और मजबूती देने के लिए ग्लोबल टाइम्स ने चीनी विशेषज्ञ के माध्यम से यह बात छापी है कि चीन के पास S-400 मिसाइल सिस्टम पहले से मौजूद है, इसलिए वह इसकी क्षमताओं और कमियों, दोनों से परिचित है। इसलिए चीनी सेना भारतीय S-400 को तो आसानी से बर्बाद कर सकती है। विशेषज्ञ ने यह भी कहा है कि “भारत के पास सतत सैन्य क्षमताएं नहीं हैं, अर्थात लंबे समय तक भारत युद्ध करेगा तो उसके सैन्य संसाधन समाप्त होने लगेंगे, क्योंकि भारत अधिकांशतः आयातित हथियारों पर निर्भर है। वहीं, चीन के बारे में टिप्पणी करते हुए यह लिखा गया कि चीन के पास अपना स्वतंत्र मिसाइल डिफेंस सिस्टम है, जिसके कारण चीन की सेना की लॉजिस्टिक और सप्लाई की क्षमता भारत से अधिक है।”

चीन का यही घमंड पिछले वर्ष 50 से अधिक चीनी सैनिकों की मृत्यु का कारण बना है। हम जानते हैं कि चीनियों को भारतीय सैनिकों द्वारा गलवान में बुरी तरह पीटा गया, किसी की गर्दन तो किसी चीनी सैनिक की रीढ़ की हड्डी, भारतीय शूरवीरों ने तोड़ दी थी। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को दो बातों का भ्रम है। प्रथम: चीन की सेना भारत से अच्छे संसाधन प्रयोग करती है और दूसरा यह है कि युद्ध केवल आधुनिक हथियारों से लड़ा जाता है, जबकि सत्य यह है कि भारत ने अपना सैन्य आधुनिकीकरण पिछले कुछ वर्षों में तेजी से आगे बढ़ाया है। भारत के सैनिकों को इजराइली, अमेरिकी, रूसी, फ्रांसीसी कई देशों के हथियार चलाने का अनुभव है और दूसरी बात यह है कि युद्ध हथियार से अधिक मानसिक बल और दृढ़ता से लड़ा जाता है।

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स्वयं को सांत्वना देने के लिए ग्लोबल टाइम्स ने किसी विशेषज्ञ के माध्यम से यह लिखा कि पुतिन का यह दौरा चीन विरोधी ना होकर अमेरिका विरोधी है। लेकिन सत्य यह है कि रूस की स्वतंत्र विदेश नीति चीन को पसंद नही है और चीन उससे डरता भी है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी चाहती है कि रूस की विदेश नीति चीन के हितों पर विशेष जोर दे। जबकि रूस के राष्ट्रपति चीन का प्रयोग एक्सपोर्ट मार्केट के रूप में करना चाहते हैं। अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण रूस वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ा हुआ है। ऐसे में चीन उसके लिए हथियारों, नेचुरल गैस और पेट्रोलियम का बड़ा बाजार है। रूसी राष्ट्रपति इस बाजार का उपयोग भी करना चाहते हैं और रूस का वैश्विक स्तर पर प्रभाव बढ़ाना भी चाहते हैं। पुतिन एक महत्वकांक्षी राष्ट्रपति हैं और वो किसी भी कीमत पर यह स्वीकार नहीं करेंगे कि रूस, चीन का पिछलग्गू बने।

सभी देशों के लिए घातक है चीन की महत्वाकांक्षाएं

रूस इस बात के प्रति पूरी तरह सतर्क है कि चीन की महत्वाकांक्षा बहुत अधिक है। चीन की आदत दूसरे देशों के प्रभाव को समाप्त कर हर क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना है। फिर वह दक्षिण एशिया में भारत हो या मध्य एशिया में रूस या वैश्विक स्तर पर अमेरिका, चीन की महत्वाकांक्षाएं सभी के लिए घातक हैं। ऐसे में चीन को नियंत्रित करने के लिए रूस उसके विरोधियों को हथियार भी बेचता है और उनके साथ सैन्य सहयोग भी बढ़ा रहा है। भारत को S-400 की आपूर्ति और आसियान देशों के साथ नौसैनिक ड्रिल इसके उदाहरण हैं। वैसे भी अंततः आर्थिक हित सबसे ऊपर हैं और रूस, चीन के चक्कर में भारत जैसे बड़े बाजार को क्यों खोना चाहेगा। चीन ने रूस के हथियारों के बाजार में भी सेंध लगानी चाही है, जिससे दोनों के बीच एक अघोषित संघर्ष चल रहा है।

S-400 पर की गई टिप्पणी कोरी बकवास है, चीन तो स्वयं ही इसका उपयोग करता है। S-400 की तैनाती पाकिस्तान के एक तिहाई हवाई क्षेत्र के प्रयोग से पाकिस्तान की सेना को ही वंचित करने में सक्षम है। अगर भारत पंजाब सीमा पर इसे तैनात करेगा, तो पाकिस्तानी जहाज लाहौर, इस्लामाबाद, रावलपिंडी में भी उड़ नहीं सकेंगे, सीमा के समीप आना तो दूर की बात है। रूस और भारत अफगानिस्तान पर एकमत हैं, दोनों देश नहीं चाहते कि मध्य एशिया में किसी प्रकार की अस्थिरता आए। ये सभी पहलू सीधे तौर पर चीन के हितों के विरोधी हैं। ऐसे में चीनी विशेषज्ञ और ग्लोबल टाइम्स की बकवास उसके रोते राष्ट्रपति जिनपिंग के लिए झुनझुना के समान है!

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