दुनिया में दो प्रकार के ऋणी है। एक वो जो अपने ऋण मूल्यों का सदुपयोग करते हुए उसे कल्याणकारी कार्यों में निवेश करते है और यथोचित समयानुसार ब्याज सहित ऋणदाता को लौटा देते है। परंतु, कुछ लोग “ऋण लो, घी पियो, उधार दो या ना दो” के निकृष्ट परंपरा का पालन करते हैं। लोगों के स्वभाव से इतर ये कथन राष्ट्र पर भी समान रुप से लागू होते हैं। ऋण प्रबंधन में ये दो भिन्न दृष्टिकोण भारत और चीन को क्रमशः दर्शाते हैं।
महामारी के दौरान कर्ज की एक विशाल सुनामी ने दुनिया को प्रभावित किया है और उधारी नियंत्रण से बाहर हो गई है। दुनिया कुल 226 ट्रिलियन डॉलर के कर्ज में है। यह दूसरे विश्व युद्ध के बाद से सबसे बड़ी उछाल है। लगभग 20 ट्रिलियन डॉलर के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका ऋण के मामले में उच्चतम स्तर पर विराजमान है, जिसका ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 100 प्रतिशत से भी अधिक है। जापान की स्थिति भी चिंताजनक है। इस देश ने 9 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का उधार लिया है, जो जापान के सकल घरेलू उत्पाद के 230 प्रतिशत से अधिक है।
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भारत द्वारा समस्या का निवारण
कुछ साल पहले भारत को भी एक ऐसी ही समस्या का सामना करना पड़ा। ऋण समस्या से जूझता भारत का बैंकिंग क्षेत्र NPA-बीमारी से अपंग था। माल्या, मेहुल, नीरव और सुब्रत जैसे ऋणी जो ऋण चुकाने में विफल रहे, उन्होंने एनपीए समस्या को और जटिल बना दिया। लेकिन, भारत इस जकड़ से उसी तरह निपटा जैसे एक लोकतांत्रिक व्यवस्था निपटती है। भारत ने न केवल समस्या को हराया, बल्कि इसे फिर से होने से रोकने के लिए एक कार्यात्मक प्रणाली भी बनाई और इससे भारत के बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ।
इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड (IL&FS) का उदाहरण ले लीजिये। यह गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) या ‘शैडो बैंक’ वर्ष 2018 में भारी कर्ज के नीचे दब गई। भारत सरकार ने समस्या से दूर भागने से इतर इस मामले के समाधान के लिए तेजी से काम किया। सरकार द्वारा नियुक्त बोर्ड ने अंततः IL&FS की 61% वसूली सुनिश्चित कर इसे डूबने से बचा लिया। सरकार ने इसी तरह से Axis बैंक के वित्तीय संकट का साहसिक निवारण करते हुए न सिर्फ ग्राहको और निवेशकों के पैसे सुरक्षित किए, बल्कि सरकारी बैंक SBI को इसके लिए नियुक्त किया।
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साथ ही, भारत ने “बैड लोन” की समस्याओं को कम करने के लिए अन्य उपायों पर भी भरोसा किया, जिसका सामना बैंकिंग क्षेत्र कर रहा था। उदाहरण के लिए दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) ने 45 फीसदी वसूली दर को सक्षम बनाया और बैंकों ने रूपये की भारी वसूली की तथा बड़े बकायदारों की संपत्ति की बिक्री से भी 13,100 करोड़ जुटाये गए।
चीन ने मामले को उलझाया
दूसरी ओर कर्ज में डूबे चीन की समस्या उसकी Evergrande के पतन से कहीं अधिक बड़ी है। पिछले साल के अंत में चीन की स्थानीय सरकार का कर्ज आधिकारिक तौर पर 3.97 ट्रिलियन डॉलर था। विशेषज्ञ महसूस करते हैं कि वास्तविक आंकड़ा इससे काफी अधिक है। इसी तरह चीन पर 5 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का राष्ट्रीय कर्ज है, जो उसके सकल घरेलू उत्पाद का 50 प्रतिशत से अधिक है।
परंतु, चिंता का सबसे बड़ा कारण है चीन का रवैया! क्योंकि धृष्टता दिखाते हुए चीन कब कर्ज़ चुकाने से मना कर दे, कुछ कहा नहीं जा सकता। Evergrande के रूप में ऐसा एक कुकृत्य चीन विश्व के सामने कर चुका है। चीन का कर्ज सकल घरेलू उत्पाद के 250 प्रतिशत से भी अधिक हो चुका है, उसका ऋण जीडीपी अनुपात में संयुक्त राज्य अमेरिका से भी अधिक है।
बताते चलें कि स्थानीय सरकारें वित्त पोषण साधनों के माध्यम से ऑफ-बैलेंस-शीट उधार पर निर्भर थी, जो केवल पैसे उधार लेने और स्थानीय बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश करने के उद्देश्य से बनाई गई हैं। इस तथ्य के बावजूद कि स्थानीय सरकार अंततः ऋण के लिए जिम्मेदार है, यह ऋण स्थानीय सरकार के बजाय वित्त साधनों के खातों में दर्ज किया जाता है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि चीन का कर्ज उस गति से बढ़ा है, जो आमतौर पर वित्तीय संकट और आर्थिक मंदी का कारण बनता है। बीजिंग की उधारी केवल समस्या को बढ़ा रही है। वैश्विक ऋण 28 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ गया है और इस बढ़ोतरी में उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और चीन के पास विश्व का 90 प्रतिशत से अधिक उधार है। चीन की इस भागने वाली नीति ने विश्व के लिए आर्थिक संकट पैदा कर दिया है।