भारत ने हमेशा अफ्रीका की समस्याओं को लेकर अफ्रीकी समाधान का समर्थन किया है। एक बार फिर से इसी नीति का पालन करते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में इथियोपिया के खिलाफ जांच के लिए अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की टीम के प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया। भारत का इस तरह से पश्चिमी देशों के खिलाफ इथियोपिया जैसे देश का समर्थन करना दिखाता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के नेतृत्व में पश्चिमी देश जो चाहे वो नहीं कर सकते हैं और भारत मानवाधिकार के नाम पर किसी भी देश का शोषण नहीं होने देगा।
दरअसल, भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के उस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, जिसमें इथियोपिया पर विशेषज्ञों की एक अंतरराष्ट्रीय आयोग की स्थापना करने की बात कही गयी थी। इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद अंतरराष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाता, जो इस अफ्रीकी देश के सभी पक्षों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन और दुर्व्यवहार के आरोपों की जांच करता। अफ्रीकी महाद्वीप के साथ भारत और अन्य देशों ने इथियोपिया संकट पर यूरोपीय यूनियन द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव को अस्वीकार करने के लिए मतदान किया।
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UNHRC में इथियोपिया को भारत का समर्थन
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 47 सदस्यीय निकाय के सदस्यों ने जिनेवा में आयोजित एक विशेष सत्र में इथियोपिया के भीतर अत्याचारों की जांच करने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम के लिए यूरोपीय संघ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी। यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, जापान और दक्षिण कोरिया सहित 47 सदस्यों में से इक्कीस ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, लेकिन पूरे अफ्रीकी प्रतिनिधिमंडल ने इसके खिलाफ मतदान किया या अनुपस्थित रहें।
वहीं, भारत और रूस ने भी इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। भारतीय विदेश सचिव रीनत संधू ने उस समय परिषद में कहा कि मानवाधिकारों के विश्वव्यापी प्रचार और संरक्षण के लिए भारत का दृष्टिकोण “एक बहुलवादी और समावेशी समाज और गतिशील लोकतंत्र के रूप में हमारे अपने अनुभव” पर आधारित है। उन्होंने आगे कहा, “हम मानते हैं कि देशों के बीच संवाद, परामर्श और सहयोग के माध्यम से तथा तकनीकी सहायता और क्षमता निर्माण के प्रावधान के माध्यम से मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण का सर्वोत्तम अनुसरण किया जाना चाहिए।”
गृह युद्ध में झुलस रहा है इथियोपिया
बता दें कि अफ्रीकी देश इथियोपिया में हालात बिगड़ चुके हैं और यह देश गृह युद्ध में झुलस रहा है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए वहां की कैबिनेट ने देशभर में आपातकाल घोषित कर दिया था। ये फैसला तब लिया गया था, जब तिग्रे क्षेत्र पर कब्जा जमाने के बाद आतंक मचाने वाले विद्रोहियों ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण दो शहर देस्सी और कॉमबॉलचा पर कब्जा कर राजधानी की ओर बढ़ गए थे। इस आपातकाल के मद्देनजर सरकार ने कई लोगों को गिरफ्तार किया था, जिसमें कुछ पत्रकार भी हैं। इसी कारण से इथियोपिया पश्चिमी देशों के निशाने पर आ गया है और सामूहिक गिरफ्तारी को लेकर उसके खिलाफ अंतराष्ट्रीय आयोग बैठा कर जांच की कोशिश की जा रही है। आपातकालीन नीति के तहत बिना आरोप के हिरासत में लिए लोगों पर TPLF का समर्थन करने का आरोप है, जिसे स्थानीय सरकार पहले ही आतंकी संगठन घोषित कर चुकी है।
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गृह युद्ध से है अमेरिका को फायदा
बता दें कि इस क्षेत्र में अमेरिका की गहरी रुचि है। यह क्षेत्र हॉर्न ऑफ अफ्रीका में आता है, जहां से वैश्विक व्यापार का एक बड़ा हिस्सा गुजरता है। इस क्षेत्र में स्थित Bab-el-Mandeb Strait लाल सागर को अदन की खाड़ी से जोड़ता है। इथियोपिया में हिंसा में वृद्धि जल्दी से पड़ोसी देशों जैसे इरिट्रिया, सूडान और सोमालिया में फैल सकती है और Bab-el-Mandeb Strait के माध्यम से वैश्विक व्यापार को बाधित कर सकती है।
इस तरह इथियोपिया में एक अंतरराष्ट्रीय जांच आयोग के माध्यम से अमेरिका Bab-el-Mandeb Strait को नियंत्रित कर सकता है, जिसके माध्यम से वह दुनिया के अधिकांश व्यापार को भी अपने नियंत्रण में ले सकता है। अमेरिका इस स्ट्रेट को तभी नियंत्रित कर सकता है, जब वह हॉर्न ऑफ अफ्रीका को भी नियंत्रित करे। यहीं कारण है कि वह इस क्षेत्र में स्थित इथियोपिया जैसे देशों को गृहयुद्ध के लिए मजबूर कर रहा है!
यह सभी को पता है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) पर किस प्रकार से अमेरिका की पकड़ है। इथियोपिया संकट पर पश्चिमी देश अमेरिका के साथ दिख रहे हैं, लेकिन भारत ने जो बाइडन को एक कड़ा संदेश भेजा है कि नई दिल्ली विशेष रूप से इथियोपिया और सामान्य रूप से अफ्रीका को अस्थिर करने का समर्थन नहीं करेगी। भारत ने अपने नवीनतम कार्रवाइयों से अफ्रीका के लिए अफ्रीकी समाधान पर जोर दिया है, न कि पश्चिमी समाधान पर। अब अमेरिका की जो बाइडन सरकार को भी यह समझना चाहिए कि भारत, अमेरिका के किसी भी दुस्साहस का कड़ा प्रतिकार देगा।
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