राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (CNG) को पहली बार (1993) पेश किए जाने के लगभग तीन दशक बाद आज भी दिल्ली में प्रदूषण के खतरे से कोई राहत नहीं मिली है। आज भी दिल्लीवासी प्रदूषण का दंश झेल रहे हैं। जब CNG को जनता के सामने रखा गया था, तब इसे एक चमत्कारिक ईंधन करार दिया गया था। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में कई अध्ययनों ने साबित कर दिया है कि CNG कोई चमत्कारिक ईंधन नहीं है।
गुजरात सरकार ने साल 2016 में ईंधन पर एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, गुजरात उच्च न्यायालय को बताया था कि सभी वाणिज्यिक और निजी वाहनों में CNG का अंधाधुंध उपयोग करने से अनुमान से अधिक नुकसान हो सकता है।
राज्य सरकार ने एक हलफनामे में बताया था कि “ऑटो ईंधन नीति पर माशेलकर विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के अनुसार CNG वाहन एक मील के लिए डीजल वाहन की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के दृष्टिकोण से डीजल से CNG पर स्विच करने का निर्णय हानिकारक है।”
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रिपोर्ट में आगे कहा गया कि “CNG वाहन 80 फीसदी पार्टिकुलेट मैटर और 35 फीसदी कम हाइड्रोकार्बन उत्सर्जित करता है। हालांकि, कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्पादन डीजल की तुलना में पांच गुना अधिक है। यदि CNG का उपयोग किया जाता है, तो पार्टिकुलेट मैटर में कमी आएगी। लेकिन बढ़ा हुआ ग्राफ अन्य प्रदूषक का स्तर दिखाते हैं। वास्तव में CNG ईंधन के वृद्धि के साथ ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी वृद्धि हुई है।”
CNG नैनोपार्टिकल्स से हो सकता है कैंसर: CSIR
इसके अलावा, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के वैज्ञानिकों ने इस मसले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि CNG डीजल के धुएं की तरह जहरीली नहीं होती है, लेकिन CNG को जलाने से उत्पन्न गैसों में कार्बन नैनोकण होते हैं जो कैंसर का कारण बनते हैं। CSIR के पूर्व महानिदेशक एम ओ गर्ग ने ET को बताया था कि “यह combustion का एक परिणाम है, जो कार्बन के विघटन का कारण बनता है। हमें देखना होगा कि नैनोपार्टिकल्स CNG से निकलते हैं या इस्तेमाल किए गए लुब्रिकेंट से। मैं केवल यह कहने की कोशिश कर रहा हूं कि CNG तकनीक में काफी संभावनाएं हो सकती हैं, लेकिन नैनोकणों का एक नकारात्मक पहलू भी है।”
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दिल्ली ने खो दिया CNG क्रांति से होने वाला लाभ: EPCA
दिल्ली और एनसीआर के लिए EPCA यानी Environmental Pollution (Prevention and Control) Authority for Delhi & NCR की रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि दिल्ली ने शहर में तेजी से मोटरीकरण के कारण CNG वाहनों की शुरूआत से होने वाले शुरुआती लाभ को खो दिया है। रिपोर्ट में कहा गया, “साल 2002 और 2007 के बीच वार्षिक औसत PM 10 के स्तर में लगभग 16% की कमी आई थी। लेकिन उसके बाद तेजी से मोटरीकरण के साथ, Particulate Levels नाटकीय रूप से 75% तक बढ़ गया। साल 2002 और 2012 के बीच, वाहनों की संख्या में 97% तक की वृद्धि हुई, जिससे प्रदूषण में भारी बढ़ोत्तरी हुई।”
CNG को नहीं दिया जा सकता स्वच्छ ईंधन का तमगा
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भंबानी की पीठ ने साल 2019 में इसी तरह की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार से सवाल किया था। पीठ ने AAP सरकार से पूछा था कि क्या CNG वाहनों से वायु प्रदूषण होता है। गौरतलब है कि CNG वाहन विशेष रूप से बड़ी संख्या में बेहद सूक्ष्म कणों का उत्सर्जन करते हैं, जो 2.5 NM तक छोटे होते हैं। ये कण संभावित रूप से मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे हानिकारक हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें शरीर में गहराई से प्रवेश करने और मस्तिष्क कैंसर के बढ़ते जोखिम से जोड़ा गया है।
यदि 2.5 NM जैसे छोटे कणों को ध्यान में रखा जाए, तो CNG कारों और वैन द्वारा उत्सर्जित कणों की कुल मात्रा 100-500 गुना के बीच बढ़ जाती है। प्रौद्योगिकी के आगमन के साथ CNG और इसके उत्सर्जन को कम किया जा सकता है, लेकिन यह कहना कि CNG दिल्ली के प्रदूषण संकट का समाधान है, गलत हैं। CNG को स्वच्छ ईंधन का तमगा तो बिल्कुल भी नहीं दिया जा सकता है, जैसा कई लोग प्रचार करते हैं।
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