भारत में बहुत बड़ा कानूनी बदलाव होने जा रहा है। यह बदलाव समान आचार संहिता से संबंधित तो नहीं है, हां किन्तु उससे भी जरूरी बदलाव है। यह बदलाव भारतीय लोकतंत्र से जुड़ा हुआ है। भारतीय संविधान के अनुसार भारत के नागरिकों को कुल छह मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। वहीं, इन मौलिक अधिकारों की सूची में वोट देने का अधिकार शामिल नहीं होता है। यह सर्वविदित है। वोट देने का अधिकार भारतीय नागरिकों को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत प्राप्त होता है।
यह वही अधिनियम है, जिसमें सुब्रमण्यम स्वामी कभी वकालत किया करते थे कि जो मुसलमान अपना जड़ हिंदुस्तान में ना माने, उसको ये अधिकार नहीं प्राप्त होना चाहिए। हालांकि, उनका यह कथन वर्ष 1970-80 का था, जिसे बीते अरसा हो गया है। वहीं, इस जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950-51 में अब एक नया बदलाव होने जा रहा है। जल्द ही कानून मंत्री किरेन रिजिजू 20 दिसंबर 2021 को लोकसभा में चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश करेंगे, जिसके आधार पर जन प्रतिनिधित्व (PRA) अधिनियम 1950 की धारा 23 में संशोधन होगा।
अब फर्ज़ी वोटरों पर नकेल कसेगा यह कानून
बता दें कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन के लिए विधेयक में आधार के साथ मतदाता पहचान पत्र को स्वैच्छिक रूप से जोड़ने सहित प्रमुख सुधार लाने का प्रयास किया जा सकता है, ताकि मतदाता सूची में फर्ज़ी प्रविष्टियों को हटाया जा सके। इस मामले को सोमवार (20 दिसंबर 2021) के लिए निचले सदन के विधायी कार्य में सूचीबद्ध किया गया है। विधेयक में यह भी प्रावधान है कि इस संशोधन से किसी भी मतदाता को कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिए किसी भी आवेदन को अस्वीकार नहीं किया जाएगा और किसी व्यक्ति द्वारा आधार प्रस्तुत करने या सूचित करने में असमर्थता के लिए मतदाता सूची में कोई प्रविष्टि नहीं हटाई जाएगी। ऐसे लोगों को विधेयक के अनुसार निर्धारित अन्य वैकल्पिक दस्तावेज प्रस्तुत करने की अनुमति होगी।
आपको बताते चलें कि आने वाला संशोधन प्रत्येक वर्ष की मौजूदा 1 जनवरी के स्थान पर चार योग्यता तिथियों पर नए मतदाताओं का पंजीकरण भी प्रदान करेगा। वर्तमान में, 1 जनवरी को या उससे पहले 18 वर्ष का होने वाला कोई भी व्यक्ति मतदाता के रूप में पंजीकृत होने के लिए पात्र होता है। 1 जनवरी के बाद जन्मे किसी भी व्यक्ति को एक साल बाद ही आवेदन करना होता है। आने वाले विधेयक के अनुसार, प्रत्येक कैलेंडर वर्ष में 1 जनवरी के साथ-साथ तीन अन्य योग्यता तिथियां- 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर भी शामिल होंगी।
इस कानून से मतदान प्रक्रिया होगी लिंग तटस्थ
इसके साथ ही प्रस्तावित संशोधन में सेवा मतदाताओं के लिए चुनाव को लिंग तटस्थ बनाने की अनुमति दी गई है। संशोधन से उल्लेखित ‘पत्नी’ शब्द को ‘पति/पत्नी’ शब्द से बदलने में मदद मिलेगी, जिससे क़ानून ‘लिंग तटस्थ’ हो जाएगा। उदाहरण के तौर पर समझें तो वर्तमान में, सेना के एक जवान की पत्नी सेवा मतदाता के रूप में नामांकित होने की हकदार है, किन्तु सेना का जवान इस स्थिति में उस महिला का पति नहीं है। ‘पत्नी’ के स्थान पर ‘पति/पत्नी’ शब्द आने से यह स्थिति बदल जाएगी।
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ऐसे में, भारतीय लोकतंत्र में सबसे बड़ी चुनौती फर्ज़ी मतदाता की है। लोग फर्ज़ी कार्ड लेकर वोट करते रहते हैं। एक निष्पक्ष मतदान प्रक्रिया में इसे गैर- क़ानूनी कृत्य करार देने की आवश्यकता है। वहीं, इस विधेयक के आने से फर्ज़ीवाड़े का नामोनिशान मिट जाएगा और एक स्वस्थ लोकतान्त्रिक व्यवस्था की नींव रखी जाएगी।