- स्वामी प्रसाद मौर्या के खिलाफ जारी हुआ वारंट
- भाजपा में हैं सबसे ज्यादा दल बदलू नेता- ADR
- काम न करने वाले भाजपा विधायकों का कटा टिकट
हाल ही में आपने सुना होगा कि स्वामी प्रसाद मौर्या ने भाजपा का दामन छोड़ दिया। यह वही स्वामी प्रसाद मौर्या हैं, जो 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बहुजन समाज पार्टी से बीजेपी में शामिल हो गए थे और पार्टी प्रमुख मायावती पर भ्रष्टाचार और सीटों की “नीलामी” का आरोप लगाया था। उन्होंने बीते मंगलवार को अपना इस्तीफा ट्विटर पर पोस्ट किया। अपने पत्र में उन्होंने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पर दलितों, किसानों, छोटे और मध्यम व्यवसायों और बेरोजगार युवाओं के प्रति लापरवाही का आरोप लगाया।
स्वामी प्रसाद मौर्या द्वारा सोशल मीडिया पर अपना इस्तीफा पोस्ट करने के कुछ मिनट बाद समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने नेता के साथ एक तस्वीर ट्वीट की और अपनी पार्टी में उनका स्वागत किया। अखिलेश यादव ने ट्वीट में कहा, “मौर्या हमेशा न्याय के लिए खड़े रहे हैं और जनता के बीच एक जाना-पहचाना चेहरा हैं। मैं उनका और अन्य सभी नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों का समाजवादी पार्टी में स्वागत करता हूं।”
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इसके बाद तो खुद मौर्या का भी बयान आने लगा, जिसमें उनका घमंड बखूबी दिखाई दे रहा था। स्वामी प्रसाद मौर्या ने एनडीटीवी को बताया कि भाजपा “पिछड़े वर्गों की समस्याओं के लिए बहरी हो गई थी और पार्टी ने मुझे मंत्री बनाकर कोई उपकार नहीं किया। वास्तव में भाजपा को उनके 14 साल के बनवास (निर्वासन) को समाप्त करने के लिए उनका आभारी होना चाहिए।” खैर बयान दिए जाने के कुछ घण्टे बाद ही स्वामी प्रसाद यादव के नाम पर एक वारंट भी जारी हो गया।
सात साल पुराने एक मामले में स्वामी मौर्या के खिलाफ वारंट जारी किया गया है। यह वारंट 2014 के एक मामले से संबंधित है, जिसमें मौर्या ने कथित तौर पर देवताओं के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इस मामले की सुनवाई 24 जनवरी को विशेष एमपी-एमएलए कोर्ट में होनी है। यह हिसाब किताब पिछले कुछ दो दिनों के भीतर हुआ है। पर क्या भाजपा को इस बात से चिंतित होने की आवश्यकता है? जवाब है बिल्कुल नहीं!
‘जहां देखा दम, वहां खिसके हम’
चुनावी मौसम में दल बदल आम बात है, चुनाव के दौरान मौका देखकर एक दल से दूसरे दल में जाने वाले नेता हमेशा से पार्टियों के लिए संकट खड़ा करते रहे हैं। उनका एक ही मकसद होता है यदि हम न खा पाए, तो दोना लुढ़का देंगे। लेकिन कुछ नेता ऐसे होते हैं, जो हर चुनाव में गिरगिट की भांति अपना रंग बदलते हैं, विचारधारा बदलते हैं, टिकट के लिए पार्टी पर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं और जब उनकी चाल नाकामयाब हो जाती है तो दूसरी पार्टियों में पलायन कर जाते हैं। यूपी के स्वामी प्रसाद मौर्या इसके हालिया उदाहरण है। उनके लिए जहां देखा दम, वहां खिसके हम वाली कहावत कही जा रही है लेकिन सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है। उन्हें आज नहीं तो कल पार्टी से जाना ही था, क्योंकि टिकट तो उन्हें वैसे भी मिलने वाली नहीं थी।
वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि गोवा के मंत्री माइकल लोबो और उत्तर प्रदेश में स्वामी प्रसाद मौर्या के पार्टी से जाने की आशंका थी। उन्होंने कहा कि भाजपा दोनों राज्यों में अपने लगभग एक तिहाई विधायकों को टिकट देने से इनकार कर सकती है। पांच राज्यों में फरवरी-मार्च विधानसभा चुनाव से पहले मंत्रियों और विधायकों सहित कुछ नेताओं के बाहर होने से भारतीय जनता पार्टी बेफिक्र नजर आ रही है। खबरों के अनुसार, इनमें से अधिकांश नेताओं को टिकट से वंचित किए जाने की संभावना थी और इस लिए दल बदल का खेल हुआ है।
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काम न करने वालों का कटेगा टिकट
खबरों के मुताबिक सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने के प्रयास में, भाजपा यूपी और गोवा दोनों में अपने लगभग एक तिहाई विधायकों को टिकट न देने के प्लान में है। बताया जा रहा है कि जो लोग पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं, वे जानते थे कि परिवार के सदस्यों को टिकट देने की उनकी अनुचित मांगों को पूरा नहीं किया जाएगा और इसीलिए उन्होंने विपक्षी खेमे के साथ बातचीत शुरू कर दी। गोवा में मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने खुद इस मामले को लेकर ट्वीट किया। उन्होंने लिखा, “भारतीय जनता पार्टी एक बड़ा परिवार है, जो पूरी निष्ठा के साथ मातृभूमि की सेवा करता रहता है! लालच और व्यक्तिगत हितों के एजेंडे को पूरा करने के लिए कुछ दल बदल, सुशासन के हमारे एजेंडे को रोक नहीं सकते।”
स्वामी प्रसाद मौर्या मामले पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “यह वास्तव में एक झटका है। उसकी गतिविधियों से यह स्पष्ट था कि वह छोड़ पार्टी छोड़ेंगे। पार्टी ने उन्हें कैबिनेट पद से लेकर सांसद के टिकट तक उनकी बेटी को सब कुछ दिया। इसके लिए हम तैयार थे। बहुत से लोग पार्टी छोड़ रहे होंगे, क्योंकि वे जानते हैं कि उन्हें भी टिकट से वंचित कर दिया जाएगा। टिकट सुरक्षित करने के लिए, सबको काम करने की जरूरत है।”
यह तो कुछ भी नहीं है। गोवा में अस्थिर राजनीतिक स्थिति को देखते हुए, भाजपा और कांग्रेस द्वारा अपने उम्मीदवारों की अंतिम सूची जारी करने के बाद, अधिक नेताओं और विधायकों के इस्तीफा देने या पक्ष बदलने की उम्मीद है। अधिकांश दलबदल इसलिए हुए हैं, क्योंकि विधायक जनता की सेवा के बदले अपने राजनीतिक और व्यक्तिगत लाभ की रक्षा करना चाहते हैं।
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भाजपा में हैं सबसे ज्यादा दलबदलू नेता
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा विश्लेषण किए गए आंकड़ों से पता चला है कि लगभग 45 फीसदी विधायक जिन्होंने 2016 और 2020 के बीच फिर में पार्टियां बदल ली और चुनाव लड़ा, वे भाजपा में शामिल हो गए हैं। दूसरी ओर, दलबदल करने वाले 42 फीसदी विधायकों ने कांग्रेस का साथ छोड़ा है। ADR ने 443 विधायकों और सांसदों के चुनावी हलफनामों का विश्लेषण करते हुए एक रिपोर्ट जारी की, जिन्होंने पांच वर्षों में पार्टियों को बदल दिया और फिर से चुनाव लड़ा।
रिपोर्ट में बताया गया कि दलबदल करने वाले 405 विधायकों में से 170 (42 फीसदी) कांग्रेस के थे। भाजपा 18 विधायकों के दलबदल के साथ नीचे से दूसरे स्थान पर थी। आंकड़ों से पता चलता है कि भाजपा स्पष्ट रूप से उन विधायकों की पसंद की पार्टी थी, जिन्होंने दोबारा चुनाव लड़ा था। रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश, मणिपुर, गोवा, अरुणाचल प्रदेश और कर्नाटक में इन पांच वर्षों के दौरान विधायकों के दलबदल के कारण सरकारें गिर गई थी।
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काश बंगाल में भी भाजपा कर पाती यह काम
स्वामी प्रसाद मौर्या जैसे जितने भी नेता हैं, जो विचार के कारण नहीं, लोभ के कारण इधर-उधर जा रहे हैं, उनके द्वारा पार्टी छोड़ने में ही सबकी भलाई है। भाजपा को सही समय पर यह काम करना चाहिए था, ताकि बंगाल से ऐसे नेताओं को बाहर किया जा सके और बंगाल में सरकार बनाई जा सके। जो विचार का नहीं है, उसको परिवार में शामिल करने में कोई भलाई नहीं है। इसलिए यह आवश्यक है कि उचित समय में ऐसे नेताओं से निपटा जाए। बंगाल में पार्टी की वफादारी हमेशा संदेह के घेरे में रही है। प्रक्रिया 2011 में शुरू हुई, जब टीएमसी ने 34 साल से राज्य में शासन कर रही वाम मोर्चा सरकार को हराया और वामपंथी कार्यकर्ताओं के बड़े वर्ग, यहां तक कि निर्वाचित प्रतिनिधियों ने भी TMC का दामन थाम लिया।
इसके बाद, जब भाजपा ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादियों (CPI-M) को TMC के प्रमुख विरोधी के रूप में बदल दिया, तो TMC के कई कार्यकर्ता और नेता इस नई पार्टी में आ गए। ममता बनर्जी के भरोसेमंद सहयोगी मुकुल रॉय ने टीएमसी छोड़ दी और 2017 में बीजेपी में शामिल हो गए। तीन साल बाद अपनी हार के बाद, रॉय 2021 में टीएमसी में फिर से शामिल हो गए। ऐसे ही कई नेता और भी हैं, जिन्होंने बंगाल चुनाव से पहले भाजपा का दामन थामा था लेकिन फिर वापस टीएमसी में लौट गए हैं। ऐसे में भाजपा नेतृत्व को इस बात पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है कि पार्टी की विचारधारा का सम्मान करने वाले और भरोसेमंद नेताओं को ही पार्टी में शामिल किया जाए, जो अपने स्वार्थ से इतर लोगों की भलाई के लिए काम करें और पार्टी लाइन का पालन करें।
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