मुख्य बिंदु
- कांग्रेस ने हरीश रावत की चुनावी सीट में किया फेरबदल, रामनगर निर्वाचन क्षेत्र की जगह नैनीताल जिले के लालकुआं से लड़ेंगे चुनाव
- कांग्रेस ने कई बार किया है हरीश रावत का अपमान
- पार्टी के अन्दर हरीश रावत की नहीं सुनी जा रही है, ऐसे में, उनका राजनीतिक भविष्य अंत की ओर है
“जैसी करनी-वैसी भरनी!” उत्तराखंड के पूर्व सीएम के लिए यही कहावत चरितार्थ हो गई है। कांग्रेस की तरफ से पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह को किनारे कर सिद्धू-चन्नी को सत्ता सौपनेवाले हरीश रावत अब खुद उसी संकट में फंस गए हैं। कांग्रेस आलाकमान उनकी एक बात नहीं मान रही और न ही पार्टी में उनकी सुनी जा रही है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि उनका राजनीतिक करियर अवसान पर है। शायद, इसीलिए हरिद्वार ग्रामीण से उनकी बेटी को टिकट देकर कांग्रेस ने क्षतिपूर्ति करने की कोशिश की और बार-बार मांगने पर भी उन्हें रामनगर की सीट नहीं मिली।
हरीश रावत के चुनावी सीट में हुआ फेरबदल
इस बीच आगामी उत्तराखंड चुनावों के लिए अपने उम्मीदवारों की तीसरी सूची जारी की है। कांग्रेस ने पहले एक आश्चर्यजनक कदम उठाते हुए हरीश रावत की चुनावी सीट को रामनगर निर्वाचन क्षेत्र से नैनीताल जिले के लालकुआं में स्थानांतरित कर दिया। ऐसा लगा कि पूर्व मुख्यमंत्री को अब अंततः रामनगर निर्वाचन क्षेत्र के लालकुआं से लड़ेंगे। वहीं, उन्हेंं संध्या दलकोटी की जगह टिकट दिया गया है। इसके अलावा, रावत की बेटी अनुपमा रावा को हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र से मैदान में उतारा गया है।
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स्वयं सोचिए, इतना बड़े नेता को अगर खुद उसकी मनपसंद सीट नहीं मिले तो इसका मतलब क्या है? इसके दो ही मतलब है। प्रथम, या तो उन्हेंं हारने का डर है, जो की सत्य प्रतीत होता है क्योंकि उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत 3 बार विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। दूसरा, उनका राजनैतिक कद कम हो गया है, ये बात भी सत्य प्रतीत होती है क्योंकि उत्तराखंड चुनाव अभियान को चलाने में जिस तरह की आजादी चाहते हैं, वो उसे नहीं दिए जाने से नाराज हैं।
कांग्रेस पार्टी में रावत की एक नहीं चलती
वहीं, रावत के एक करीबी नेता कहते हैं, ”पार्टी प्रभारी देवेंद्र यादव 2-3 नेताओं की मंडली के जरिए चीजें को चला रहे हैं। राज्य के नेताओं को दरकिनार किया जा रहा है और यही समस्या की असल जड़ है।” रावत अपने एक पुराने ट्विटर थ्रेड में अपने दर्द को बयां करते हुए कहते हैं, “जिन लोगों के आदेश के तहत मुझे 2022 के चुनावी भंवर में तैरना है, उनके ही प्रतिनिधियों ने मेरे हाथ और पैर बांध दिए हैं।” ऐसा कहा जाता है कि उनका इशारा कांग्रेस उत्तराखंड प्रभारी देवेंद्र यादव की तरफ था। हरीश रावत के समर्थकों का कहना है कि पहले उन्हें गलत तरीके से पंजाब का प्रभारी बनाया गया जबकि पार्टी आलाकमान को पता था कि पंजाब और उत्तराखंड में एक ही समय में चुनाव होने हैं।
रावत के समर्थन में एक अन्य गुट का कहना है, ”रावत ने अमरिंदर सिंह को हटाने का इतना कठिन काम किया, चरणजीत चन्नी को नियुक्त किया और नवजोत सिंह सिद्धू को अपनी पूरी क्षमता से प्रबंधित किया अतः उन्हें उनके गृह राज्य में और अधिक स्वतंत्रता दी जानी चाहिए थी।” हालांकि, पार्टी नेतृत्व की प्रतिक्रिया यह है कि रावत को वह मिला जो वे चाहते थे।
पार्टी के उत्तराखंड अभियान में उनका एक प्रमुख स्थान है और उनके उम्मीदवार गणेश गोदियाल को राज्य कांग्रेस का प्रमुख बनाया गया था। लेकिन रावत के समर्थकों का कहना है कि गोडियाल का भी कुछ खास असर नहीं है क्योंकि बाकी टीम पुरानी सरकार से संबंधित है, जिसका नेतृत्व राज्य विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रीतम सिंह कर रहे थे, जो कि पूर्व राज्य इकाई के प्रमुख थे। रावत खेमे की शिकायत यह है कि उन्हें टिकट वितरण या पार्टी के प्रमुख कार्यक्रमों में पर्याप्त जगह नहीं दी जा रही है।
रावत का राजनैतिक भविष्य अंत की ओर
गौरतलब है कि हरीश रावत के इस असंतोष का एक इतिहास भी है। एक बार नहीं बल्कि दो बार मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए उनकी अनदेखी हो चुकी है। पहली बार 2002 में, जब कांग्रेस ने एनडी तिवारी को सीएम के रूप में चुना था, न कि रावत को। उनकी वरिष्ठता को देखते हुए रावत ने यह अपमान सहन कर लिया। 2012 में पार्टी ने रावत के बजाय विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री नियुक्त किया। बहुगुणा उत्तराखंड की राजनीतिक में उतना जनाधार नहीं रखते थे और उत्तराखंड की तुलना में दिल्ली में अधिक देखे गए। हालांकि, इस फैसले पर भी रावत को दिक्कत नहीं हुई। बहुगुणा को 2013 के उत्तराखंड बाढ़ के विनाशकारी संचालन के कारण हटा दिए जाने के बाद रावत अंततः मुख्यमंत्री बने परन्तु रावत पूरे समय कांग्रेस के प्रति वफादार रहे।
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वह वर्तमान में राज्य में पार्टी के सबसे लोकप्रिय सीएम चेहरा हैं। सी-वोटर के चुनाव ट्रैकर के अनुसार, उत्तराखंड में 33.5 प्रतिशत मतदाता चाहते हैं कि रावत उनके अगले मुख्यमंत्री हों जबकि भाजपा के मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर धामी 26.6 प्रतिशत से आगे हैं। कांग्रेस से कोई और नेता दहाई अंक में भी नहीं है। हालांकि, कांग्रेस में एक वर्ग है, जो मानता है कि रावत को मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने से पार्टी के भीतर प्रतिद्वंद्वी गुटों में नोंक-झोंक हो सकती है। रावत के करीबी लोगों का कहना है कि जब वह नाराज होते हैं, तो भी वह पार्टी के प्रति इतने वफादार होते हैं कि वे बगावत नहीं कर सकते, इसलिए उन्हेंं उम्मीद है कि पार्टी नेतृत्व उनकी चिंताओं को दूर करेगी परन्तु रावत की स्थिति को देखते हुए ऐसा लगता है कि उनका राजनीतिक भविष्य अंत की ओर है।