बाजार में मारिजुआना(गांजा) कई नामों से जाना जाता है। यह भारत में यह अवैध है और फिर भी आपके दोस्तों या आपसे जुड़े हर किसी साथी ने मारिजुआना के बारे में आपसे बात की ही होगी। आप में से कुछ लोगों ने इसका प्रयोग भी किया होगा। तो इसके चारों ओर इतना हव्वा क्यों? जब कोई ‘मारिजुआना’ अर्थात गाँजा शब्द का उच्चारण करता है तो लोग पागल क्यों हो जाते हैं? क्या यह सच में खराब है? और अगर यह खराब है, तो सिगरेट या शराब की उसी तरह निंदा क्यों नहीं की जाती? और उसे केवल एक ‘बात न करने’ वाला विषय बनाकर क्यों छोड़ दिया गया है?
मारिजुआना एक ऐसी औषधि है जो 1985 तक वैध थी मगर उसके बाद अमेरिका के दबाव में आकर राजीव गाँधी सरकार ने इसे भारत में बैन कर दिया था।
क्या है मारिजुआना?
मारिजुआना का मूल नाम कैनबिस सैटिवा है, जो एक पौधा है। इस पौधे की पत्तियों का उपयोग मारिजुआना बनाने के लिए किया जाता है, जिसे हम आम बोल-चाल की भाषा में गांजा और स्टफ कहते हैं। मारिजुआना मनुष्यों द्वारा प्रयोग की जाने वाली सबसे पुरानी दवाओं में से एक है, जिसका कम से कम 3500 वर्षों से उपयोग होता आ रहा है। पुरातन काल में, मारिजुआना का उपयोग इसके औषधीय गुणों के लिए किया जाता था। आयुर्वेद में भी मारिजुआना को दर्दनाशक और कई अन्य चिकित्सा लाभों के लिए प्रयोग किया जाता है।
(हम किसी भी रूप में मारिजुआना, तंबाकू या शराब के उपयोग का समर्थन नहीं कर रहे हैं)
अथर्ववेद में बताया गया है लाभकारी
यहां तक कि अथर्ववेद में कहा गया है कि ‘पांच सबसे पवित्र पौधों में से एक कैनाबिस सतीवा है।’ इसमें कहा गया है कि कैनबिस खुशी का स्रोत है और मुक्तिदाता है। यह भारतीय आयुर्वेदिक उद्योग की रीढ़ की हड्डी था और आयुर्वेदिक चिकित्सा के पेनिसिलिन के रूप में भी जाना जाता था। 1961 में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में अमेरिकी दबाव के तहत इसे सिंथेटिक दवा श्रेणी में डाल दिया गया लेकिन उस समय भारत ने इस मुद्दे पर हस्ताक्षर करने से माना कर दिया था।
मारिजुआना का बहुत चीजों में उपयोग किया जाता है। हेमप (मारिजुआना से बने) का बॉडी केयर प्रोडक्ट्स, फूड सप्लीमेंट्स, प्लास्टिक बनाने के लिए उपयोग होता है, जो अमेरिका में 2020 तक $ 44 बिलियन का आर्थिक श्रोत है। फोर्ब्स के अनुसार अमेरिका में भांग उद्योग आने वाले समय में कई नौकरियां पैदा करेगा।
आपको बता दें कि भारत में, कोकीन जैसी सिंथेटिक दवाओं की खपत में वृद्धि हुई है क्योंकि मारिजुआना पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अब जानते हैं कि भारत में मारिजुआना कैसे प्रतिबंध हो गया था। दरअसल, भारत में कैनबिस प्रतिबंध की जड़ अमेरिका से जुड़ी है। USA में मनोरंजक और औषधीय उद्देश्यों के लिए कैनबिस को वैध बनाया गया था। आपको बतादें कि 1960 के दशक में, अमेरिका ने कैनबिस पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक अभियान चलाया।
संयुक्त राष्ट्र में नारकोटिक दवाओं, 1961 पर एकल सम्मेलन के अनुच्छेद 28 के तहत, कैनबिस को हस्ताक्षरकर्ता राज्य द्वारा अत्यधिक विनियमित करने के लिए पदार्थों की सूची में रखा गया था। सम्मेलन के दौरान किए गए निर्णयों के अनुसार, केवल लाइसेंस प्राप्त कर्मी ही कैनबिस की खेती या सौदा कर सकते हैं।आपको बता दें कि कम मात्रा में मारिजुआना का सेवन करना हानिकारक नहीं है जबकि हैश, राल और कैनबिस के सैप से बना है। हैश तेल में अन्य कैनबिस उत्पादों के 12 प्रतिशत THC स्तर की तुलना में लगभग 9% THC हो होता है।
आपको बता दें कि तंबाकू के साथ-साथ दवा उद्योग को डर है कि वैधता मिलने के बाद मारिजुआना उद्योग पूरी तरह से तम्बाकू व्यापार को बर्बाद कर सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका और इसके तंबाकू लॉबी ने भारत में मारिजुआना उत्पादन और खपत पर प्रतिबंध लगाने में कामयाब रहे लेकिन अब, अमेरिका के 18 से अधिक राज्यों ने इसे मनोरंजन उद्देश्यों के लिए वैध बना दिया है जबकि 36 से अधिक राज्यों इसकी चिकित्सा बिक्री के लिए अनुमति देते हैं।
नए फ्रंटियर डेटा के मुताबिक अमेरिकी मारिजुआना उद्योग 201 9 में 13.6 अरब डॉलर का अनुमान लगाया गया था, जिसमें 340,000 नौकरियां पौधों के रखरखाव के लिए समर्पित थीं। 2020 में, फोर्ब्स की रिपोर्ट के मुताबिक, मारिजुआना की बिक्री ने 17.5 अरब डॉलर की कमाई की थी, वहीं 2019 से 46% की वृद्धि हुई।
सीमित खुराक में ली गई मारिजुआना पूरी तरह से ठीक है और सिगरेट के एक पैक की तुलना में मारिजुआना कई गुना अधिक स्वस्थ है। हैशिश, कोकीन, हेरोइन, और अन्य सिंथेटिक दवाएं हैं जहां समस्या निहित है लेकिन दुनिया भर की सरकारें उस चर्चा के लिए तैयार नहीं हैं।
बढ़ाया जाता है इसपर टैक्स
आपने देखा होगा कि दुनियाभर की सरकारें ऐसे पदार्थों पर भर-भरकर टैक्स लगती हैं। हम एक पूंजीवादी समाज में रहते हैं और सरकार को ऐसे पदार्थों पर नैतिक ज़िम्मेदारी लेनी पड़ती है, इसलिए इनके दाम बढ़ाने पर तर्क दिया जाता है कि ये लोगों की पहुँच से दूर रहे इसलिए ऐसा किया गया है। लेकिन इसका सेवन करने वाले तो करेंगे ही। हालांकि, प्रतिबंध के पीछे कारण नशीले पदार्थों की खेती और वितरण में दवाओं के उपयोग और संगठित अपराध की भागीदारी को नियंत्रित करने के लिए सूचीबद्ध किया गया था, ऐसा माना जाता है कि प्रतिबंध के पीछे के कारणों में से एक पौधे के संभावित औद्योगिक अनुप्रयोग थे। कैनबिस और हेमप जैसे संयंत्र के विभिन्न हिस्सों का उपयोग कपड़े, दवाएं, चारा, और अन्य उत्पादों को बनाने में किया जा सकता है।
भारत कैनबिस समेत नशीले पदार्थों पर प्रतिबंध लगाने के लिए राष्ट्रों के बीच हुई 1961 की संधि का हस्ताक्षरकर्ता सदस्य नहीं था। हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका के दबाव में, राजीव गांधी ने सरकार ने 1985 में नारकोटिक दवाओं और मनोविज्ञान पदार्थ अधिनियम पारित किया था। इस कानून के तहत, सरकार ने चरस, Ganja पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। इसके तहत, राज्य सरकारों को उत्पादन, निर्माण, कब्जे, परिवहन, अंतर-राज्य आयात और संयंत्र के निर्यात के साथ कैनबिस संयंत्रों की खेती को अनुमति, नियंत्रण और विनियमित करने की शक्ति मिली। केवल राज्य सरकार और उसके अधिकृत कर्मियों को ही इस पौधे की खेती करने की अनुमति है।
दिलचस्प बात यह है कि सरकार के पास 1985 से कैनबिस की खेती करने के लिए लाइसेंसिंग का प्रावधान है। गौरतलब है कि 2018 में पहला लाइसेंस दिया गया था जहां भारतीय औद्योगिक हेमप एसोसिएशन को भांग पैदा करने का पहला लाइसेंस मिला था।
दुनिया के बिग टोबैको कंपनियों ने मारिजुआना को लेकर बहुत भ्रम फैलाया था। मारिजुआना के बहुत सारे उपयोग पहले हीं हम आपको बता चुके हैं। आज के टोबैको कम्पनीज यह नहीं चाहते थे कि उनकी मार्केट वैल्यू गिरे क्योंकि मारिजुआना के मुकाबले सिगरेट उन्हेने कई गुना अधिक आर्थिक लाभ देती है वहीं मारिजुआना अथवा भांग एक नेचुरल प्लांट है जो आसानी से उग सकता है और उसके निर्माण में अधिक समस्या और खर्च नहीं आता। इसपर कोई टैक्स भी नहीं लगता । इस वजह से बहुत सारे बड़ी तम्बाकू कंपनियों ने मारिजुआना का दुष्प्रचार किया, ताकि इसका सेवन सिगरेट के मुकाबले लोग कम कर सकें।
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विश्व में तम्बाकू कंपनियां सिगरेट बेचकर मोटी कमाई करती है। आपको ज्ञात हो की तम्बाकू उत्पादों पर उच्च करों से सरकार का राजकोष भर जाता है। आप ज़रा दिमाग पर ज़ोर डालें तो आपको याद आयेगा कि अधिकांश स्टेडियमों को तंबाकू कंपनियों के विज्ञापनों के साथ पाट दिया जाता हैं। तंबाकू कंपनियां समझती हैं कि एक बार जब उन्होंने किसी को अपने घातक उत्पादों का स्वाद चखा दिया है, तो उससे वो हर बार मोटी रकम कमाते रहेंगे। सरोगेट विज्ञापन इस समय अपने चरम पर हो सकता हैं लेकिन अतीत में, बेंसन और हेजेज जैसी बड़ी तंबाकू कंपनियों ने 1985 और 1992 क्रिकेट विश्व कप की मेजबानी की थी और किसी ने भी विरोध में कोई आवाज़ नहीं उठाई थी।
हम जानते हैं कि सिगरेट का सेवन कितना हानिकारक होता हैं, लेकिन अतीत में, इन तंबाकू उत्पादों को स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में देखा जाता था। फिल्मों में महिला अभिनेता भी सिगरेट को पफ करती थी।आज के परिदृश्य में “पर्याप्त साक्ष्य” है कि मारिजुआना कई प्रकार के दर्द के इलाज के लिए अच्छा है। मारिजुआना के चिकित्सा उपयोग के लिए यह सबसे आम कारणों में से एक है – रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया कि मारिजुआना पुराने दर्द का भी इलाज कर सकता है। और यह इसे अधिक खतरनाक, घातक ओपियोइड दर्द निवारक का भी कार्य करता है। एक अध्ययन के अनुसार शोधकर्ताओं ने बताया कि मारिजुआना की तुलना में तंबाकू से किया गया धूम्रपान अधिक खतरनाक है। लेकिन आज सिगरेट की मार्केट वैल्यू का आर्थिक लाभ लेने के लिए मारिजुआना के सेवन की बलि दी गई है। ऐसे में ये सभी बातें हमें सोचने पर विवश कर देती हैं कि कैसे तंबाकु और सिग्रेट के लिए मारिजुआना को अछूत बना दिया गया है।