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पश्चिम का अनुकरण अब और नहीं, भारत ने इस बार गणतंत्र दिवस परेड में किये थे बड़े बदलाव

झांकियों से लेकर बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी तक, हर ओर दिखी भारतीय संस्कृति की झलक

Yashwant Singh
द्वारा Yashwant Singh
27 जनवरी 2022
in मत
0
गणतंत्र दिवस झांकी
160
व्यूज़
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भारत ने कल अपना गणतंत्र दिवस हर्षोल्लास से मनाया। राजपथ पर भारत ने कल अपना दम पूरे विश्व को दिखाया। कल के गणतंत्र दिवस पर बहुत सी चीजें नई थी। जैसे कि पहली बार हवाई शो में कॉकपिट एंगल से चीजों को दिखाया गया है। लेकिन यह तो सिर्फ वो चीज है जो लोगों की नजर में आई। बहुत-सी ऐसी चीजें हुई जो बदलते भारत की झांकी थी। बहुत सी चीजें सनातनी भारत का संकेत दे रही थी, तो बहुत सी चीजें उपनिवेशवाद से मुक्ति दिलाने वाली थी। कल गणतंत्र दिवस के अवसर पर जब राज्यों की झांकियां निकलनी शुरू हुई तो बहुत सी चीजें जनता के सामने पहली बार आई थी और इनका सम्बंध हिन्दू संस्कृति से सीधे-सीधे जुड़ा हुआ था।

जम्मू-कश्मीर की गणतंत्र दिवस झांकी को ही देख लीजिये। झांकी के आगे के हिस्से में जम्मू की त्रिकुटा पहाड़ियों में कटरा स्थित विश्व प्रसिद्ध माता वैष्णो देवी भवन को दर्शाया गया था। इसके पिछले हिस्से में इस केंद्रशासित प्रदेश में बनाए जा रहे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, भारतीय प्रबंधन संस्थान, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को दर्शाया गया।

सरकार ने इस झांकी की तस्वीर को सार्वजनिक करते हुए लिखा, “जम्मू और कश्मीर की झांकी एक विकासात्मक परिदृश्य की पृष्ठभूमि में केंद्र शासित प्रदेश के बदलते चेहरे को दर्शा रही थी। इसके सामने के हिस्से में माता वैष्णो देवी भवन को भी प्रदर्शित किया गया है”

#गणतंत्रदिवस #RepublicDayIndia

The tableau from Jammu and Kashmir depicts the changing face of the UT in the backdrop of a developmental scenario

It also showcases the Mata Vaishno Devi Bhawan on its front portion#RepublicDay #RepublicDayIndia pic.twitter.com/fpzT7T8MkF

— PIB India (@PIB_India) January 26, 2022

 

गणतंत्र दिवस पर जम्मू-कश्मीर की झांकी में माता वैष्णो देवी भवन, भारतीय प्रबंधन संस्थान, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, एम्स और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के साथ एक ‘विकसित’ कश्मीर के उदय को दिखाया गया था। कर्नाटक की झांकी में मैसूर शीशम से बने हस्तशिल्प और चन्नापटना के खिलौनों को प्रदर्शित किया गया। इसे वहां की लोककला को प्रोत्साहित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।

वहीं उत्तराखंड की झांकी में हेमकुंड के तट पर 4,329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब को दर्शाया गया। यह गुरुद्वारा दुनिया के सबसे ऊंचाई पर स्थित गुरुद्वारों में से एक है।

इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस को जब उत्तरप्रदेश की झांकी में सम्मिलित किया गया तब तो भारतीयों के दिल खुशी से झूम उठे।

अचीवमेंट्स@75 पर आधारित यूपी की झांकी में बनारस के घाटों और योगी आदित्यनाथ सरकार की ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ स्कीम को दिखाया गया। पिछले साल, यूपी ने राम मंदिर की प्रतिकृति प्रदर्शित की थी, जिसे गणतंत्र दिवस पर सर्वश्रेष्ठ झांकी घोषित किया गया था। यही नए भारत की पहचान है। यहां पर अब अपने धर्म को अब सार्वजनिक रूप से स्वीकार्य कर रहे हैं।

उपनिवेशवाद को किया गया बाय-बाय

इसके अलावा भारत सरकार ने कल गणतंत्र दिवस के दौरान दो बड़े अनूठे कार्य किये। बुधवार को गणतंत्र दिवस परेड में भारतीय नौसेना की झांकी में 1946 के नौसैनिक विद्रोह को दर्शाया गया, जिसने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान दिया था और इसके मार्चिंग दल का नेतृत्व एक महिला अधिकारी ने किया।

अब जो साम्राज्यवादी ब्रिटेन के समर्थक हैं, उनको यह देख दुख हुआ होगा क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से भारत ने ब्रिटेन को ठेंगा दिखाया है। आपको बताते चलें कि 18 फरवरी, 1946 को रॉयल इंडियन नेवी के ‘तलवार’ जहाज के नाविकों द्वारा विद्रोह शुरू किया गया था और फिर यह 78 जहाजों तक फैल गया। गणतंत्र दिवस पर झांकी में नौसेना की थीम ‘कॉम्बैट रेडी, क्रेडिबल एंड कोसिव’ को दिखाया गया। नौसैनिक दल में 96 पुरुष, तीन प्लाटून कमांडर और एक आकस्मिक कमांडर शामिल थे। इसका नेतृत्व लेफ्टिनेंट कमांडर आंचल शर्मा ने किया, जो भारतीय नौसेना वायु स्क्वाड्रन (आईएनएएस) 314 में तैनात पर्यवेक्षक अधिकारी हैं।

Abide by Me के जगह ए मेरे वतन के लोगों

इन सबके अलावा बड़ा बदलाव करते हुए भारत सरकार ने बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी को बदल दिया है। सरकार ने बीटिंग रिट्रीट समारोह के समापन का संकेत देने वाले उपनिवेशवादी गाने ‘एबाइड विद मी’ को छोड़ने का फैसला किया है।

यह गीत एक सदियों पुरानी सैन्य परंपरा का भाग है, जो युद्ध में लड़ाई के अंत को चिह्नित करती है, जिसमें सैनिक हथियार रखते हैं और युद्ध के मैदान से पीछे हटते हैं।

भारत में, हर साल 29 जनवरी की शाम को दिल्ली के विजय चौक पर आयोजित बीटिंग रिट्रीट समारोह, गणतंत्र दिवस उत्सव के अंत का प्रतीक होता है। हकीकत यह है कि बीटिंग रिट्रीट समारोह अपनी औपनिवेशिक विरासत के बावजूद अब तक भारत में बनी हुई है। लेकिन अब भारत हर पश्चिमी गीत को आधुनिक भारतीय मार्शल धुनों के सामने पीछे छोड़ रहा है।

‘एबाइड विद मी’, जो महात्मा गांधी का भी पसंदीदा गीत था, यह ईश्वर से जीवन और मृत्यु के दौरान नैतिक बने रहने की प्रार्थना है। यह 1847 में स्कॉटिश एंग्लिकन हेनरी फ्रांसिस लाइट द्वारा लिखा गया था जब वह खुद तपेदिक से मर रहा था।

सरकारी सूत्रों ने इस बदलाव पर रविवार को स्पष्ट किया कि “ऐ मेरे वतन के लोगो” एक मार्मिक गीत हैं जो “विविधता में एकता” को उजागर करता है। इसमें  भारतीय सैनिकों का भी पहलू है और इसका बहुत ही मंत्रमुग्ध करने वाला और गंभीर प्रभाव है।

लोकप्रिय गीत ‘एबाइड विद मी’ को छोड़ने का निर्णय सरकार द्वारा इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति से ‘शाश्वत ज्वाला’ को पास के राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में ‘स्थानांतरित’ करने के एक दिन बाद आया।

और पढ़ें: Future Group ने Amazon के सामने झुकने से किया इनकार

इतना ही नहीं, भारत सरकार इस समय पूरी ताकत से बोस की लिगेसी के साथ न्याय करने को प्रतिबद्ध है। यह सरकार की एक सकारात्मक इच्छाशक्ति का प्रमाण है। हालांकि, यह माना जा रहा है कि इंडिया गेट पर मूल लौ बनी रहेगी l सरकारी सूत्रों ने इस मामले पर कहा है, “इंडिया गेट पर केवल कुछ ही शहीदों के नाम हैं जो प्रथम विश्व युद्ध और एंग्लो-अफगान युद्ध में अंग्रेजों के लिए लड़े थे और इस प्रकार यह हमारे औपनिवेशिक अतीत का प्रतीक है। वहीँ राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में सभी शहीद सैनिकों के नाम है जो उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है”

भारत सरकार ने  यह भी कहा कि वहां बोस की एक मूर्ति भी लगाई जाएगी। कल परेड में भी इस बिंदु पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने बोस का सम्मान किया। सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर CPWD की झांकी में बुधवार को गणतंत्र दिवस परेड के दौरान नेताजी और भारतीय राष्ट्रीय सेना के योद्धाओं को दर्शाया गया। फूलों से सजी इस नाव के किनारों पर ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ का नारा लिखा था। गणतंत्र दिवस पर झांकी के सामने के हिस्से में बोस की प्रतिमा को सलामी मुद्रा में दर्शाया गया जबकि INA के नायकों को पुरानी तस्वीरों के माध्यम से चित्रित किया गया। झांकी के मध्य भाग में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज दिखाया गया।

राजपथ पर नेताजी का एक ऑडियो क्लिप चलाया गया, जिसमें लोगों से देश के लिए आगे आने और उसकी प्रगति में भागीदार बनने का आह्वान किया गया था।  ये सब संकेत देते हैं कि भारत अब उपनिवेशवाद को छोड़, अपनी संस्कृति और इतिहास को खुलेआम अपना रहा हैl

Tags: गणतंत्र दिवसभारतीय संस्कृतिसनातन संस्कृतिसुभाष चंद्र बोस
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