कहा जाता है कि ‘सुबह का भुला शाम को अगर घर लौट आए तो उसे भुला नहीं कहते।‘ नेपाल भी अब घर लौट आया है। नेपाल अब वह हिमालयी राष्ट्र नहीं है, जिसने ना-कभी चीनी निवेश का स्वागत किया था बल्कि सत्तारूढ़ चीनी साम्यवादी दल (CCP) के करीब भी रहा था। दरअसल, नेपाल में चीन की राजदूत Hou Yanqi नेपाल के पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली के कार्यालय और आधिकारिक आवास पर अक्सर VVIP मेहमान हुआ करती थीं लेकिन Yanqi को अब वह आतिथ्य नहीं मिलता है, जो उन्हें ओली के शासन के दौरान मिलता था। राजदूत Hou Yanqi द्वारा तीव्र पैरवी और बैठकों के बावजूद कहा जा रहा है कि नेपाल में 90 प्रतिशत से अधिक चीनी परियोजनाएं पिछले 6-7 महीनों में ठप पड़ चुकी हैं। इसके अलावा चीनी राजदूत ने भी अपना तथाकथित विशेषाधिकार खो दिया है।
नेपाल में खत्म हो रहा चीनी निवेश
हाल के दिनों में नेपाल में चीनी निवेश को स्थानीय नेपाली लोगों के तीव्र प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। नेपाल के अधिकांश नागरिक बुनियादी ढांचे के विकास के बारे में बीजिंग के वादों को धोखाधड़ी और कर-जाल समझते हैं। उन्हेंं लगता है कि वे नेपाली हितों को नुकसान पहुंचा कर केवल चीन को फायदा पहुंचा रहे हैं। सिंगापुर पोस्ट के अनुसार, नेपाल के दार्चुला जिले में चीन द्वारा निर्मित चमेलिया जलविद्युत परियोजना के सामने आने वाली चुनौतियों के कारण परियोजना निष्पादन में देरी हो रही है, जिसके कारण लागत में वृद्धि हुई है। यह चीन के लिए सबसे बड़ा झटका है क्योंकि सिर्फ 30 मेगावाट की चमेलिया जलविद्युत परियोजना इस देश की सबसे महंगी चीनी परियोजना बन चुकी है।
और पढ़ें : चीनी निवेशकों की नज़र भारतीय बाजारों पर किन्तु भारत इतना भी भोला नहीं
सिंगापुर पोस्ट ने बताया- “रन-ऑफ-द-रिवर प्रोजेक्ट 2010 में शुरू किया गया था और तीन साल के लक्ष्य के मुकाबले इसे पूरा करने में 10 साल लग गए। इसके अलावा, प्रारम्भ में चमेलिया परियोजना की लागत 6 मिलियन नेपाली रुपये होने का अनुमान लगाया गया था, जो नागरिकों के प्रतिरोध के कारण बढ़कर 16 मिलियन रुपये हो चुकी है। हाल ही में, परियोजना के लिए सिविल ठेकेदार के रूप में काम करने वाली चीनी कंपनी चाइना गेझोउबा ग्रुप (सीजीजीसी) ने परियोजना राशि और प्रतिरोध के अलावा कई मुद्दे नेपाल के समक्ष उठाए है।” इसके साथ-साथ नेपाल ने चीन का आयुध क्रेता बनाने से भी इंकार कर दिया है। नेपाल ने चीनी विमान के खरीद को खारिज कर दिया है। नेपाल ने उन्हें कम गुणवत्ता वाला बताया था। वहीं, रखरखाव की भारी लागत और उच्च कर्ज को भी इंकार का कारण बताया था।
चीनी साम्राज्यवाद को खत्म करते शेर बहादुर देउवा
नेपाल में अब प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउवा और उनकी सरकार ही हैं, जो चीनी निवेश को अपने देश से बाहर निकाल रही है। ओली के राज में चाँदी काटने वाले चीन को अब प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउवा और उनकी सरकार ठिकाने लगा रही है। जब ओली देश के पीएम थे, तब नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ने बीजिंग के करीब जाने की कोशिश की थी। इसी कारण चीन के निर्देशन पर उन्होंने भारत के साथ सीमा संबंधी विवादों का निर्माण किया था, जिसमें कालापानी महत्वपूर्ण था। इसके साथ-साथ उन्होंने बीजिंग की मदद करने के लिए साम्यवादी प्रभावित कूटनीति का आह्वान भी किया था।
देउवा की नेपाली कांग्रेस ने अपने पांच गठबंधन सहयोगियों के साथ हाल ही में एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम (CMP) शुरू किया है। CMP राजनयिक माध्यमों से लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेक क्षेत्र से संबंधित भारत के साथ मुद्दों को हल करने की आवश्यकता पर बल देता है, जो भारत के कूटनीतिक और रणनीतिक अधिकार क्षेत्र का समर्थन करता है। पूर्व वित्त राज्य मंत्री और नेपाली कांग्रेस के सदस्य उदय शमशेर राणा ने कहा, “नेपाल, इस नवगठित सरकार के नीतियों के तहत अपने सभी पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने में रुचि रखेगा। नेपाल को बीजिंग की जरूरत है और चीन हमारा अच्छा पड़ोसी रहा है, लेकिन भारत हमेशा खास रहेगा। चीन भारत की जगह नहीं ले सकता।”
देउवा की भारत यात्रा: बीजिंग के लिए एक और झटका
गौरतलब है कि देउवा सरकार के भारत के साथ घनिष्ठ संबंध चीन को सीधे नुकसान पहुंचा रहे हैं। देउवा भारत आने और वाइब्रेंट गुजरात समिट में भाग लेने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। भारत में नेपाल के पूर्व राजदूत दीप कुमार उपाध्याय के अनुसार, नेपाली पीएम की भारत यात्रा से काठमांडू और नई दिल्ली को बातचीत फिर से शुरू करने और चीन के इशारे पर ओली शासन द्वारा निर्मित कालापानी विवाद को सुलझाने का सुनहरा अवसर मिलेगा।
और पढ़ें : चीनी विमानों की कार्यक्षमता का एहसास करने के बाद अब नेपाल उन्हेंं डंप करने हेतु पूरी तरह तैयार है
यदि नई दिल्ली और काठमांडू देउवा की भारत यात्रा के दौरान एक-दूसरे के साथ जुड़ने और पारस्परिक सहभागिता को बनाए रखने में सक्षम होते हैं, तो यह नेपाल में चीनी वर्चस्व को ना सिर्फ खत्म कर देगा बल्कि भारत के कूटनीतिक जीत का भी प्रतीक होगा। वहीं, भारत नेपाल की विकास गाथा को सशक्त बनाने के लिए अगर पारस्परिक रूप से सहमत क्षेत्र का मसौदा तैयार करने में सक्षम होता हैं, तो यह हिमालयी राष्ट्र से चीनी मकड़जाल को पूरी तरह से समाप्त कर देगा। लिहाजा, नेपाल के इस कूटनीतिक पुनर्जागरण और प्रबोधन के पुरोधा देउवा ने चीनी परियोजनाओं को पूरी तरह से खारिज कर इसका शुभारंभ कर दिया है।