मुख्य बिंदु
- 12 विधायकों को एक साल की अवधि के लिए निलंबित करने के महाराष्ट्र विधानसभा के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द
- सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा के सत्र की शेष अवधि से परे निलंबन को कानून में असंवैधानिक और तर्कहीन बताया
- फैसले के बाद भाजपा फिर से राज्य की राजनीति में महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए हुई एकजूट
शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक दुसरे के सबसे पुराने सहयोगियों में से एक थे और वे लगभग 25 वर्षों की एकजुटता साझा करते रहे। इन दोनों दलों ने सत्ता और विपक्ष में एक साथ मंच साझा किया था। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान, दोनों पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे की अनसुलझी गाँठ और चुनाव के बाद शिवसेना और उद्धव के मन में मुख्यमंत्री पद ली लालसा के कारण इनके बीच दरार पड़ गई। वहीं, भाजपा और शिवसेना की राजनीतिक लड़ाई तब और बढ़ गई थी जब विधान सभा के सदन में भाजपा के विधायकों को निलंबित कर दिया गया था।
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विधायकों के निलंबन के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द
दरअसल, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 12 विधायकों को 5 जुलाई, 2021 से शुरू होने वाली एक साल की अवधि के लिए निलंबित करने के महाराष्ट्र विधानसभा के फैसले को रद्द कर दिया है। शीर्ष अदालत ने विधानसभा के सत्र की शेष अवधि से परे निलंबन को कानून में असंवैधानिक और तर्कहीन बताया। प्रस्ताव को अवैध बताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि “यह विधानसभा की शक्तियों से परे था।”
बता दें कि 12 विधायक जिनमें संजय कुटे, आशीष शेलार, अभिमन्यु पवार, गिरीश महाजन, अतुल भटकलकर, पराग अलवानी, हरीश पिंपले, योगेश सागर, जय कुमार रावत, नारायण कुचे, राम सतपुते और बंटी भांगड़िया को 5 जुलाई, 2021 को निलंबित कर दिया गया था। बताते चलें कि 5 जुलाई, 2021 को विधानसभा में पीठासीन अधिकारी के साथ कथित रूप से दुर्व्यवहार करने के आरोप में भाजपा विधायकों को एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया था।
भाजपा नेताओं ने किया सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के बाद, भाजपा विधायक गिरीश महाजन ने कहा, “सुप्रीमकोर्ट का फैसला महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार की दलगत राजनीति को उजागर कर दिया है। निलंबन प्रतिशोध की कार्रवाई थी। वे स्पीकर के चुनाव से दूर रहना चाहते थे और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निष्पक्ष फैसले का स्वागत किया।” साथ ही इस फैसले के बाद विधायक अब पिछले साल जुलाई में सत्र के समापन के बाद सभी परिणामी लाभों के हकदार होंगे।
वहीं, इस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सुप्रीम कोर्ट को धन्यवाद दिया और कहा कि सत्तारूढ़ शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस की महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (MVA) सरकार के चेहरे पर एक और कड़ा तमाचा है। उन्होंने आगे कहा “हम शुरू से ही कह रहे थे कि कृत्रिम बहुमत बनाने के लिए हमारे विधायकों को इतनी लंबी अवधि के लिए निलंबित करना पूरी तरह से असंवैधानिक और सत्ता का घोर दुरुपयोग था।” बताते चलें कि अदालत में कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने सुनवाई के दौरान कहा था, “बिना सुनवाई के सदन के फैसले में प्राकृतिक न्याय का अभाव है और यह बेहद तर्कहीन है। वे एक साल के लिए एक विधायक को निलंबित नहीं कर सकते… यह मनमाना है।”
कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने भी कहा कि निलंबन का इरादा अनुशासन के लिए होना चाहिए था। दलीलों के दौरान, जस्टिस AM खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा था कि 12 विधायकों का निलंबन प्रथम दृष्टि में असंवैधानिक था। वहीं, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत किया है।
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शिवसेना पर भाजपा ने बोला राजनीतिक हमला
गौरतलब है कि आज के परिदृश्य में शिवसेना अपनी विचारधारा को पूरी तरह धूमिल कर चुकी है। राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी से शिवसेना की शत्रुता इतनी विराट हो गई है कि पार्टी अब कांग्रेस को प्रत्येक विषय पर आंख बंद करके समर्थन दे रही है। शिवसेना ने एनसीपी एवं कांग्रेस के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी गठबंधन के अंतर्गत उद्धव ठाकरे को सीएम तो बनवा लिया, किन्तु वर्तमान परिवेश पर ध्यान दें, तो ये कहा जा सकता है कि पार्टी अपनी मूल हिन्दुत्व की विचारधारा को त्याग चुकी है एवं उसके क्रियाकलाप स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि शिवसेना का कांग्रेसीकरण हो चुका है। ऐसे में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला आने के बाद अब फिर से भाजपा ने शिवसेना पर राजनीतिक हमला बोला है। आने वाले दिनों में भाजपा फिर से राज्य की राजनीति में महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए एकजूट हो गई है।