मुनव्वर फारूकी अपने हिन्दू विरोधी रवैये और गुजरात दंगों पर किए गए उपहास से चर्चा में आया था। इसके पीछे उसे आलोचना से लेकर मुकदमें तक सब कुछ मिला। इतना ही नहीं, उसे कुछ समय जेल की हवा भी खानी पड़ी, क्योंकि उसे गोधरा काण्ड के पीड़ितों का उपहास उड़ाने में विशेष आनंद मिलता था। कुछ समय पूर्व दिग्विजय सिंह ने मुनव्वर को भोपाल में कॉमेडी-शो करने के लिए आमंत्रित किया, तबसे ही प्रदेश के सियासी गलियारों में हलचलें तेज हो गई। इस मसले पर राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मोर्चा संभालते हुए दिग्विजय सिंह पर जबरदस्त हमला भी बोला। ऐसे में जब मुनव्वर पर मध्य प्रदेश प्रशासन समेत कई जगह ताबड़तोड़ कार्रवाई होने लगी, तब बन्धु ने कहा था कि बस अब बहुत हुआ, अब मैं कॉमेडी से सन्यास ले रहा हूँ। लेकिन मुनव्वर फारूकी का स्वघोषित रिटायर्मेंट शाहिद आफरीदी के रिटायर्मेंट से भी कम टिक पाया। वामपंथियों के आह्वान पर ये एक बार फिर सेवा में हाज़िर हो गया और इस बार तो एक कदम आगे बढ़ते हुए Holocaust का ही उपहास उड़ाना शुरू कर दिया।
मुनव्वर फारूकी के हाल ही में प्रदर्शित वीडियो ‘Gujarati, Muslims and Global Warming’ में महोदय बोलते हैं, “अगर हिटलर गुजराती होता, तो वर्ल्ड वॉर II होता ही नहीं। मेरी एक थ्योरी है। उसका नाम हितेश होता, और उसकी जेठालाल जैसी मूंछें होती। हितेश बहुत ही साढू छोक्रों होता!”
अरे ठहरिये, ये तो अभी मात्र प्रारंभ है। मुनव्वर फारूकी ने आगे Holocaust के बारे में कहा, “आपको Holocaust के बारे में पता है? मैं बताता हूँ, वहां हिटलर ने यहूदियों को गैस चेम्बर में डालकर मार डाला था। परन्तु अपना हितेश ऐसा न करता। ये Holocaust नहीं, ‘Haalo Haalo Caust’ होता, जहाँ हितेश यहूदियों को इतना ढोकला-खाकरा खिला देता, कि वे गैस से ही मर जाते!”
मुनव्वर को अपने भाग्य को सराहना चाहिए कि वे ये सब भारत में बोल पा रहा है, जहाँ पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लगभग असीमित है, और शायद अनियंत्रित। यदि ये बात इन्होने यूरोप, विशेषकर किसी यहूदी प्रमुख राष्ट्र, जैसे पोलैंड, इजराएल इत्यादि में बोल दी होती, तो जेल छोडिये, इनका क्या हश्र होता, इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते।
Holocaust एक ऐसी त्रासदी है, जिसके बारे में किसी भी प्रकार का उपहास सुनना यहूदी स्वीकार नहीं करेंगे, और कोई भी हिन्दू जितना सहनशील तो है नहीं, कि कोई उनके जीवन से जुड़ी एक त्रासदी के बारे में कुछ ऐसा बोले, और वे चुपचाप स्वीकार लें। लेकिन शिष्टाचार की आशा भी किससे कर रहे हैं? मुनव्वर फारूकी से, जिसे एक ट्रेन में जीवित भस्म हुए ५६ निर्दोष प्राणियों का उपहास उडाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रतीत होता है?
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