कभी एक गाँव में एक कांग्रेसी नेता की भांति जाइए और वहां के ग्रामीणों से वार्तालाप कीजिये. दावा कीजिये कि मोदी सरकार कुछ प्रचलित भारतीय नागरिकों पर ‘जासूसी’ कर रही है. पता क्या है होगा? ग्रामीण कहेंगे, “निकलो बबुआ, किसी और को उल्लू बनाना!” या फिर ये भी हो सकता है कि वे सारी बातें वैसी ही भूल जाएं, जैसे ही आप उनकी दृष्टि से ओझल हो. आपको ज्ञात होगा कि पेगासस मामले पर कांग्रेस के दिशाहीन विपक्ष ने कैसे ढोल पीटा था, लेकिन इस मामले पर अब जो निकल कर सामने आया है, वह विपक्ष की कुत्सित मानसिकता और उनके झूठों दावों की पोल खोलता दिख रहा है.
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SC की जांच कमिटी ने कही ये बात
दरअसल, पिछले साल जुलाई में Pegasus के जरिए जासूसी का दावा किया गया था. दावा था कि केंद्र सरकार ने 300 लोगों की जासूसी की. हालांकि, इन आरोपों की जांच के लिए बनी कमेटी के पास अब तक सिर्फ दो लोगों ने ही अपने मोबाइल जमा कराए हैं. ध्यान देने वाली बात है कि पिछले साल जुलाई में खोजी पत्रकारों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने दावा किया था कि इजरायली सॉफ्टवेयर Pegasus के जरिए दुनियाभर के 50 हजार से ज्यादा लोगों की जासूसी की गई और दावा किया गया कि इन 50,000 में 300 नंबर भारतीय लोगों के हैं.
मामला सामने आने के बाद विपक्षियों ने जमकर बवाल काटा. इसे लेकर सड़क से संसद तक हंगामा मचा, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक कमिटी का गठन किया, जिसे 8 हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा गया. लेकिन स्थिति ऐसी हो गई है कि अब तक सिर्फ 2 लोगों ने ही जांच के लिए अपनी डिवाइस जमा की है. अब तक कुल 9 लोगों ने अपने बयान दर्ज करवाए हैं. इतनी धीमी प्रक्रिया होने से कमेटी की जांच में भी देरी हो रही है. लिहाजा कमेटी ने उन लोगों से सामने आने की अपील की है, जिन्हें अपनी जासूसी होने का शक है.
सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में पूर्व न्यायाधीश आरवी रवीन्द्रन के नेतृत्व में जांच करने का निर्णय किया था. इसी कमिटी ने 2 जनवरी को उक्त नागरिकों को एक नोटिस जारी किया था, जिसमें उन्हें अपने मोबाइल यंत्रों को जमा करने का निर्देश दिया गया. लेकिन अब तक मात्र 2 लोग ही अपने दावे को सत्य सिद्ध करने के लिए अपने अपना मोबाईल जमा करने सामने आये.
जांच कमिटी के सामने क्यों नहीं आ रहा विपक्ष?
अब ऐसे में सवाल उठता है कि पेगासस मामले को लेकर हंगामा मचाने वाली विपक्षी पार्टियां कहां विलीन हो गई है, अगर उनके जासूसी के दावे सच्चे थे, तो जांच कमिटी के सामने क्यों नहीं आ रही हैं? ध्यान देने वाली बात है कि वर्ष 2014 से ही विपक्ष के पास पीएम मोदी को घेरने हेतु कोई ठोस प्रमाण या अभियान नहीं है, लेकिन ‘सबूत’ को लेकर उनकी लालसा किसी से छिपी नहीं है. चाहे Demonetization से मिले लाभ का सबूत, GST के लाभ का ‘सबूत’, सर्जिकल स्ट्राइक या एयर स्ट्राइक का ‘सबूत’, विपक्ष कभी ‘सबूत’ मांगने से पीछे नहीं हटा है. आपको लग रहा होगा, कितना सयाना विपक्ष है, हर गलत विषय पर सरकार को घेरने का साहस रखता है, लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल परे है.
क्या आप जानते है कि ‘राफेल’ का फर्जी घोटाला किसने बनाया था? ये वही विपक्ष है, जिसने गलवान घाटी में हमारे सैनिकों के शौर्य तक पर प्रश्न चिन्ह लगाने से पूर्व एक बार भी नहीं सोचा था. वैसे ही विपक्ष ने पेगासस के झूठे मामले को लेकर खूब बवाल काटा, जासूसी का राग अलापा, ताकि अपने सोये हुए भाग्य को जगा सके और देश की जनता इन्हें भाव दें. लेकिन यह दांव भी उन पर उल्टा ही पड़ गया है.
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पेगासस पर NYT ने भी उठाए थे सवाल
गौरतलब है कि जुलाई 2021 में व्हाट्सएप के CEO WillCathcart ने ट्विटर पर एक लंबा थ्रेड पोस्ट साझा कर लिखा कि, NSO कंपनी जो पेगासस मालवेयर बनाती है, उसके ऊपर प्रतिबंध लगाने की सख्त जरूरत है. उन्होंने आगे लिखा, आज पूरी दुनिया को NSO जैसी संस्थाएं के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना चाहिए, क्योंकि पेगासस के होने से हमारा डेटा सुरक्षित नहीं है. CEO ने बताया कि उन्होंने वर्ष 2019 में NSO के ऊपर डेटा चोरी करने के लिए मुकदमा भी किया था.
दूसरी ओर पेगासस को लेकर न्यू यॉर्क टाइम्स ने भारत के UN प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन पर आरोप लगाया था. वहीं, एक अन्य रिपोर्ट में NYT ने इजरायल-भारत की दोस्ती और NSO को लेकर सवाल उठाया था. NYT की रिपोर्ट में कहा गया था कि “जुलाई 2017 में, भारतीय प्रधानमंत्री इज़राइल की यात्रा करने वाले पहले राष्ट्राध्यक्ष बने. एक लंबे समय तक भारत ने “फिलिस्तीनी कारणों के प्रति प्रतिबद्धता” की नीति को बनाए रखा था और इज़राइल के साथ संबंध ठंडे रखे थे. भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा, विशेष रूप से सौहार्दपूर्ण थी, जो उनके और तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के एक स्थानीय समुद्र तट पर नंगे पांव चलने के साथ पूरी दुनिया को दिखी भी.”
रिपोर्ट में आगे ये भी लिखा गया था कि “अपने लाभ के लिए इज़राइल की खोज और मुनाफे के लिए NSO के अभियान के संयोजन ने भी शक्तिशाली जासूसी उपकरण को दुनिया भर में राष्ट्रवादी नेताओं की एक नई पीढ़ी के हाथों में रख दिया है. मानव अधिकारों पर संदिग्ध रिकॉर्ड के बावजूद, पेगासस को पोलैंड, हंगरी और भारत को बेच दिया गया है.” लेकिन NYT का यह झूठा दावा एक दिन भी नहीं टिक पाया. सैयद अकबरुद्दीन ने न्यूयॉर्क टाइम्स की उस रिपोर्ट को “पूरी तरह बकवास” बताकर उनके दावों को रद्द कर दिया था.
झूठ पर टिका था विपक्ष का दावा!
आपको बता दें कि मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट की कमिटी ने इस मामले को लेकर पूरी तरह से स्थिति स्पष्ट कर दी है. जिसके बाद यह तो तय हो गया है कि पेगासस मामले को जिस तरह से विपक्षियों ने बढ़ाया था, वो एक झूठ पर टिका हुआ था. ऐसे में जिस प्रकार से कांग्रेस समर्थित विपक्ष और उनके चाटुकारों की पोल सुप्रीम कोर्ट के नेतृत्व वाली कमिटी ने खोली है, वह उनके खोखलेपन को दर्शाता है.
बताते चलें कि पेगासस स्पाइवेयर इजरायली साइबर इंटेलिजेंस फर्म NSO ग्रुप द्वारा बनाया गया है, जो निगरानी रखने का काम करता है. NSO ग्रुप का दावा है कि इस फर्म का काम इसी तरह का जासूसी सॉफ्टवेयर बनाना है और इन्हें अपराध और आतंकवादी गतिविधियों को रोकने और लोगों के जीवन बचाने के एकमात्र उद्देश्य के लिए सरकारों की खुफिया एजेंसियों को बेचा जाता है. पेगासस एक ऐसा सॉफ्टवेयर है, जो बिना सहमति के आपके फोन तक पहुंच हासिल करने तथा व्यक्तिगत और संवेदनशील जानकारी इकट्ठा कर जासूसी करने वाले यूज़र को देने के लिए बनाया गया है.