भारत का दक्षिणी क्षेत्र उत्तर भारत से अलग है, यह धारणा वामपंथी इतिहासकारों द्वारा बार-बार आगे बढ़ाई गई। इसे सिद्ध करने के लिए विभिन्न प्रकार की अवधारणाओं को प्रतिपादित किया गया, जैसे कि सैंधव सभ्यता के निर्माता द्रविड़ मूल के थे। यह कथित द्रविड़ पहचान दक्षिण भारतीय राज्यों में रहने वाले लोगों की है, जो कन्नड़, तमिल, तेलुगू जैसी भाषाएं बोलते हैं। हालांकि, इस मामले में जो भी अवधारणाएं फैलाई गई हैं, उन्हें ठोस तार्किक आधार देने का प्रयास हुआ है। किंतु सत्य यह है कि उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोग भारत की मूल संतति हैं। हिंदुस्तान केवल उत्तरी भागों तक सीमित है, यह अवधारणा मुस्लिम शासन काल में दरबारी इतिहासकारों द्वारा फैलाई गई।
उदाहरण के लिए मिन्हाज उस सिराज और अमीर खुसरो जैसे मुस्लिम लेखकों को ही ले लीजिए। उन्होंने हिंदुस्तान की परिभाषा देते हुए इस क्षेत्र के अंदर केवल पंजाब, सिंध, हरियाणा, सहित गंगा-यमुना का दोआब क्षेत्र शामिल किया। जबकि सत्य यह है कि मिन्हाज क्या, इस्लाम के उदय से पहले ही एक भारत की संकल्पना जन्म ले चुकी थी। यही कारण था कि उत्तर भारत में जन्में सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने दक्षिण भारत में समाधि ली।
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गलत है मैक्समूलर की अवधारणा!
ध्यान देने वाली बात है कि दक्षिण भारत का सबसे संवृद्ध साहित्य तमिल साहित्य है, जो स्वीकार करता है कि भारत के दक्षिण में सभ्यता के विकास के लिए भगवान शिव ने ऋषि अगस्त्य को भेजा था। यदि भारत के ये दो क्षेत्र अलग थे, तो उत्तर भारत में लिखा गया ग्रंथ रामायण, अपनी कथा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा भारत के दक्षिणी राज्यों में क्यों व्याख्यायित करता है।
सैंधव सभ्यता के लोग आर्य ही थे, इसके कई प्रमाण हैं। सबसे पहला तो यह है कि आर्य ग्रंथ, वेद आदि की रचना उस काल में हुई, जब सिंधु सभ्यता अपने परिपक्व अवस्था में थी। मैक्समूलर की अवधारणा के अनुसार वेद 1500 ईसा पूर्व में लिखे गए, लेकिन यह अवधारणा इसी आधार पर गलत हो जाती है कि वेद में सरस्वती नदी का वर्णन है, जिसे सबसे चौड़ी नदी के रूप में बताया गया है, जो कहीं-कहीं 8 किलो मीटर तक चौड़ी है। भूगर्भीय साक्ष्य सिद्ध कर चुके हैं कि सरस्वती नामक नदी हरियाणा, पंजाब, गुजरात आदि क्षेत्रों में बहती थी और उसका पतन करीब 2000 ईसा पूर्व में हुआ।
ऐसे में 1500 ईसा पूर्व तक सरस्वती सूख गई थी, तो आर्य उसकी व्याख्या कैसे कर सकते हैं। वहीं, एस. वी. दीक्षित, तिलक जैसे विद्वानों ने यह तथ्यात्मक रूप से सिद्ध किया है कि ब्राह्मण ग्रंथों की रचना 3000 ईसा पूर्व से 2500 ईसा पूर्व के बीच हुई है। ब्राह्मण ग्रंथ वेदों के बाद लिखे गए थे, तो चारों वेद कम से कम 3000 ईसा पूर्व के पहले लिखे गए होंगे।
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आर्य और सैंधव सभ्यताओं में 90 फीसदी समानता
इसके अतिरिक्त सैंधव सभ्यता के क्षेत्रों में मिली यज्ञ वेदिका, अश्व की हड्डियां और कृषि के साक्ष्य दोनों सभ्यताओं, सैंधव और आर्य, जिन्हें अलग अलग दिखाया जाता है, उनके बीच साम्य स्थापित करता है। वामपंथी इतिहासकारों की अवधारणा है कि आर्यों के कथित आक्रमण अथवा आगमन के बाद सैंधव सभ्यता के मूल निवासी द्रविड़ दक्षिण भारत में पलायन कर गए। लेकिन अब यह सिद्ध हो चुका है कि आर्य और सैंधव सभ्यताओं में 90 फीसदी से अधिक समानता है।
प्रसिद्ध तमिल पुरातत्व विभाग डॉ. आर नागास्वामी का मानना था कि तमिल संस्कृति सनातन संस्कृति से अलग नहीं है, बल्कि वैदिक संस्कृति का तमिल स्वरूप मात्र है। संस्कृति का आधार क्या होना चाहिए? केवल भाषाई भिन्नता को सांस्कृतिक अलगाव का कारण कैसे माना जा सकता है, जबकि कथित आर्य संस्कृति और द्रविड़ संस्कृति की धार्मिक मान्यताएं, यज्ञ हवन, पूजा पद्धति, त्योहार सब एक जैसे हैं। भगवान विष्णु को वेंकटेश्वर नाम से पूजना, कार्तिकेय को मुरुगन नाम से पूजने से सांस्कृतिक अलगाव कैसे सिद्ध हो सकता है।
एक लेख में उन सभी तथ्यों को रखना सम्भव नहीं है जो यह सिद्ध कर देंगे कि द्रविड़ बनाम आर्य की अवधारणा पूर्णतः कपोलकल्पना है। ऐसे में दक्षिण भारत और उत्तर भारत को बांटने का आधार ही कपोलकल्पना है। रही बात मिन्हाज और खुसरो की, तो वो एक ऐसी सभ्यता में विश्वास रखते थे, जो मानती थी कि धरती चपटी है, ऐसे में उनके हिंदुस्तान की कल्पना केवल उतनी भूमि की है, जितना उन्हें ज्ञात था।