पिछले कुछ वर्षों से यह देखा गया है कि आपूर्ति-पक्ष में पड़ने वाला व्यवधान वैश्विक बाजारों में अस्थिरता पैदा कर रहा है। इन व्यवधानों के कारण भोजन से लेकर धातु तक, ऊर्जा से लेकर अर्धचालक तक, सब कुछ महंगा होता जा रहा है। पिछले दो साल से दुनिया कोविड संकट का सामना कर रही थी और जैसे ही लगा कि यह संकट खत्म हो गया है, यूरोप में एक और वैश्विक संकट शुरू हो गया है।
यूरोप अब वैश्विक अर्थव्यवस्था का उतना महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं है लेकिन, रूस ऊर्जा और धातु के अग्रणी आपूर्तिकर्ताओं में से एक है। अतः, रूस-यूक्रेन संघर्ष के मद्देनजर इन धातुओं और इनसे बननेवाली वस्तुओं की कीमतों में एक बार फिर उछाल आने की संभावना हैं।
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एल्युमीनियम, स्टील जैसी धातुओं के साथ-साथ तेल और गैस की कीमतें भी तेजी से बढ़ रही हैं। रूस का सकल घरेलू उत्पाद भारत का आधा है लेकिन यह ऊर्जा और धातुओं का प्राथमिक आपूर्तिकर्ता है। इस प्रकार, युद्ध और प्रतिबंधों के बीच इन वस्तुओं की कीमत फिर तेजी से बढ़ रही है।
भारत के पास सुनहरा अवसर है-
भारत एक ओर आयात पर निर्भरता के कारण बढ़ती वैश्विक ऊर्जा कीमतों से अत्यधिक प्रभावित होने वाला है वहीँ दूसरी ओर स्टील और एल्युमीनियम क्षेत्र की कंपनियों, जिनमें से भारत एक प्रमुख निर्यातक है, उनको बढ़ती कीमतों को देखते हुए अत्यधिक लाभ होगा और इसका मुख्य कारण है रूस और यूक्रेन से होने वाले आपूर्ति में बाधा पड़ना।
क्रिसिल रिसर्च के निदेशक हेतल गांधी ने कहा कि रूस लगभग 30-33 मिलियन टन (एमटी) स्टील का निर्यात करता है। बढ़ते तनाव और परिणामी आपूर्ति में व्यवधान की स्थिति में, भारत सहित अन्य निर्यात अर्थव्यवस्थाओं द्वारा घाटे को भरने की उम्मीद है। इसलिए, अल्पावधि में, भारतीय इस्पात निर्माताओं के निर्यात क्षमता बढ़ने से लाभ होने की संभावना है।
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जिंदल स्टील एंड पावर, स्टील के प्रमुख उत्पादकों और निर्यातकों में से एक है। यूरोप में चल रहे संकट से इसे भी लाभान्वित होने की उम्मीद है। “मारियुपोल में कई स्टील मिलें हैं जो मुख्य रूप से बिलेट, स्लैब, हॉट रोल्ड कॉइल का निर्यात करती हैं। रूस और यूक्रेन इसका निर्यात करने की स्थिति में नहीं हो सकते हैं और इससे MENA देशों में कमी हो सकती है। अतः, इस कमी को भरने की सबसे प्रबल दावेदार भारतीय कंपनियाँ ही हैं।”
भारत को इस्पात उद्योग के अतिरिक्त वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन 5-10 प्रतिशत तक बढ़ाना चाहिए। हमें न केवल भारत बल्कि बाकी दुनिया को उत्पाद उपलब्ध कराना चाहिए।
अलौह धातु के मामले में, एल्यूमीनियम उत्पादकों को प्रमुख रूप से लाभान्वित होने की उम्मीद है क्योंकि रूस यूरोप और कई मध्य-पूर्वी देश इस धातु के प्राथमिक आपूर्तिकर्ता हैं। “रूस पर प्रतिबंध राष्ट्र के धातु उत्पादन को प्रभावित करेगा। इसके अलावा, रूस यूरोप को गैस की भी आपूर्ति करता है और ये आपूर्ति यदि प्रभावित होती है तो पहले से ही बढ़ी ऊर्जा कीमतों में बेतहाशा वृद्धि होगी, जिससे यूरोपीय स्मेल्टरों को एल्यूमीनियम के उत्पादन में और कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।”
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भारतीय स्टील और एल्युमीनियम कंपनियों को यूरोपीय और अमेरिकी बाजारों पर कब्जा करने का प्रयास करना चाहिए, जो आपूर्ति के लिए रूस पर निर्भर हैं। एक मायने में, वे इस संकट के कारण तेल आयात से होने वाले नुकसान की भरपाई करेंगे। भारत सरकार ने किसी भी पक्ष में न फंसकर अपने हितों पर ध्यान केंद्रित करके एक बुद्धिमान निर्णय लिया है।
देश को ऊर्जा, अर्धचालक जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मानिर्भर बनने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और नई ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी सामान्य प्रयोजन प्रौद्योगिकियों जैसे उभरते क्षेत्रों में नेतृत्व करना चाहिए। रक्षा निर्यात को कम करने की जरूरत है और अत्याधुनिक स्वदेशी हथियारों का उत्पादन किया जाना चाहिए। जब हम आजादी के सौ साल पूरे करेंगे तो 2047 तक भारत को विश्व-गुरु बनाने पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए।