झूठ बोलो, बार-बार झूठ बोलो। कुछ कहो तो झूठ कहो, कुछ लिखो तो सिर्फ झूठ लिखो और इतना झूठ फैलाओ कि तुम्हारा घर, प्रोपेगेंडा और यहा तक कि तुम्हारे नसों में भी झूठ चलता रहे। जनता का क्या है? भोली है, ‘सनीमा’ देखती है और जब तक देखती रहेगी तब तक पागल बनती रहेगी। पर, इस आड़ में तुम अपना घर आबाद कर लो। देश को छोड़ो, टूटे चाहें भाड़ में जाए! वैसे भी तुम्हारी बेशर्म पत्रकारिता का क्या है, जब कलम ही बिक जाये तो पेशे को सुचिता संरक्षित रखने के बजाय घर चलाने और धन जुटाने पर ध्यान दिया जाये। आप भी सोच रहें होंगे कि हम कैसी बातें कर रहे हैं और किसको संबोधित एवं संदर्भित करते हुए ये बाते कही जा रही है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं ‘The Quint’ के बेशर्म पत्रकारिता की!
और अब झूठी पत्रकारिता को आगे बढ़ाते हुए गुजरात दंगा पीड़ितों के आर्थिक सहायता हेतु चंदा जुटाना शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं, जमा हुई राशि सिर्फ और सिर्फ गुजरात दंगों के शिकार हुए मुस्लिमों पर ही खर्च की जाएगी, द क्विंट का यह अभियान ना सिर्फ उसकी विभाजनकारी पत्रकारिता को प्रदर्शित करता है बल्कि उसकी हिंदू फोबिया, मोदी फोबिया और भारत फोबिया को भी प्रदर्शित करता है।
नफरत ही चैनल की नींव है-
इस खबर की विवेचना करने से पहले हमें क्विंट के डीप हिस्ट्री का अध्ययन करना होगा। द क्विंट की स्थापना राघव बहल और रितु कपूर (राघव की पत्नी) ने की है। कहानी 2011 में शुरू होती है जब श्री बहल मीडिया ग्रुप (नेटवर्क 18) बैंकों से बहुत कर्ज में थे। फिर उन्होंने आरआईएल के साथ हाथ मिलाया, उन पर अपने खातों का सही और निष्पक्ष खुलासा न करने का आरोप भी लगाया गया, उन्होंने “29 मई 2014” को नेटवर्क छोड़ दिया। उसने सारा फंड तो ले लिया लेकिन कर्ज में डूबी कंपनी को ऐसे ही छोड़ दिया। इसका मतलब झूट और फरेब पर ही द क्विंट की स्थापना हुई है, इसके साथ उनके पास द स्क्रॉल एंड, द वायर एंड द प्रिंट का भी मालिकाना हक है। सभी चैनलों के विचार एक जैसे हैं- हिंडुफोबिया, मोदीफोबिया और भारतफोबिया।
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द क्विंट की पत्रकारिता भी अब जकारिया और तीस्ता सीतलवाड़ सरीखे तथाकथित समाजसेवियों से भी नीचे गिर चुकी है। दरअसल, यह मीडिया संस्थान चंदा जुटाकर दंगा पीड़ितों की मदद नहीं करना चाहता बल्कि इस माध्यम से अपना विज्ञापन और प्रचार प्रसार कर रहा है, यह सिर्फ द क्विंट के लिए एक लोकप्रियता स्टंट ही नहीं है बल्कि यह हिंदुओं और मोदी सरकार को नीचा दिखाने का भी कुत्सित प्रयास भी है।
क्या क्विंट के पास सच्चाई बताने की हिम्मत है?
द क्विंट आपको यह कभी नहीं बताएगा कि मुस्लिम चरमपंथियों ने ही ट्रेन में आग लगाकर 59 हिंदुओं की हत्या कर दी थी जिसके कारण लोगों में प्रतिशोध पूर्ण प्रतिक्रिया की भावना फैली। द प्रिंट आपको यह कभी नहीं बताएगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो कि उस समय मुख्यमंत्री थे, शीघ्रता शीघ्र कार्रवाई करते हुए अपने पड़ोस के कांग्रेस शासित राज्यों से पुलिस और सुरक्षा मदद मांगी लेकिन सभी ने मना कर दिया। द क्विंट आपको कभी नहीं बताएगा की लाख कोशिशों और एसआईटी के गठन के बावजूद भी नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को मामले से क्लीन चिट मिल चुकी है और सबसे अंतिम किंतु महत्वपूर्ण बिंदु द क्विंट आपको यह भी नहीं बताएगा कि उस दंगे के पीड़ितों में हिंदू भी शामिल थे और सबसे ज्यादा शिकार तो हिंदू व्यापारी थे। इसके साथ साथ इस दंगों के पश्चात मोदी सरकार ने मुसलमानों के उत्थान के लिए कितना अथक प्रयास किया जो कि गुजरात के सामाजिक सूचकांक में भी दिखता है।
Quint के ऐसा करने के स्वाभाविक कारण भी है। यदि आप सत्ता में हैं तो आप क्या करेंगे, आपका जवाब मीडिया पर नियंत्रण होगा। 2004 से 2014 के दौरान भी यही स्थिति रही। कांग्रेस श्री बहल (निवेशकों के कोष का अपने उपयोग के लिए) के वित्त और झूठे विचार दोनो का प्रयोग जनता को दिग्भ्रमित करने के लिए करती है। इसके साथ क्विंट ज्यादातर जेएनयू क्वालिफाइड छद्म बुद्धिजीवियों को ही हायर करता है।
जिस दिन नरेंद्र मोदी कब सत्ता में आए थे अर्थात 26 मई 2014 को उसी दिन बहल ने नेटवर्क 18 छोड़ा था। अपने आप को बचाने के लिए वे कांग्रेस के काले सच और काले हाथ के साथ हो गए और अब तक हैं। अगर आपको विश्वास ना हो तो हाल के दिनों में इस चैनल के प्लेटफार्म पर होनेवाले बहस को देख लीजिए आपको लगेगा की किसी पाकिस्तानी टीवी का न्यूज देख रहें हैं. द क्विंट्स ने द्वारा बहस किए गए कुछ मुद्दे हैं: “क्या भारत ने बालाकोट में हमले किए हैं?”, “क्या भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक किए?”, “कुलभूषण यादव जासूस थे?”, “क्या भारतीय पायलट ने F-16 को मारा था?” “आरएसएस हिंदू आतंकवादी संगठन है।” उन्होंने भारतीय सेना को भी नहीं छोड़ा हैं।
पत्रकारिता किसी सरकार के पक्ष में नहीं होती है लेकिन वास्तव में यह तारीफ योग्य बात है कि वे एक विचार पर टिके रहे। डोनाल्ड ट्रम्प, थेरेसा मे सभी विदेशी लोगों ने अपने भाषणों में “इस्लामिक आतंकवाद” का हवाला दिया, लेकिन मोदी ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने पीएम की गरिमा का ख्याल रखा लेकिन लगता है Quint पत्रकारिता की मर्यादा भूल गया है। वे आरोप लगाते हैं की कुछ मीडिया लोगों को राष्ट्रविरोधी बता देते हैं तो उनसे एक जवाबी सवाल पूछा जाना चाहिए “आपको हिंदू धर्म को आतंकवाद से जोड़ने के लिए अधिकार किसने दिया हैं।”
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