सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को चेतावनी दी है कि अगर राज्य 2016 के शराबबंदी अधिनियम के तहत मुकदमे को रोकने में विफल रहता है, तो वह शराबबंदी कानून के तहत हिरासत में लिए गए सभी लोगों को जमानत पर रिहा करने का आदेश दे सकती है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने स्थिति को “अस्वीकार्य” कहा। उन्होंने कहा कि इस कानून से पटना उच्च न्यायालय के 16 न्यायाधीशों पर शराबबंदी कानून से संबंधित मुकदमेबाजी का बोझ बढ़ रहा है।
बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद अधिनियम से उत्पन्न जमानत याचिकाओं का सामना करते हुए पीठ ने फरवरी के अंतिम सप्ताह में राज्य सरकार से यह बताने के लिए कहा कि क्या उसने कानून बनाने से पहले कोई अध्ययन किया? क्या मुकदमेबाजी की अतिरिक्त मात्रा को पूरा करने के लिए पर्याप्त न्यायिक बुनियादी ढांचा तैयार किया गया? अदालत ने रेखांकित किया कि पटना उच्च न्यायालय में 16 न्यायाधीशों के अलावा, सुप्रीम कोर्ट में लगभग हर बेंच बिहार के शराबबंदी कानून के तहत याचिकाओं पर भी विचार कर रही है, जिससे यह समझना अनिवार्य हो जाता है कि क्या राज्य सरकार ने नई आवश्यकता को पूरा करने के लिए विधायी प्रभाव अध्ययन किया और न्यायिक बुनियादी ढांचे को उन्नत किया?
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20,000 जमानत याचिकाएं हाईकोर्ट में लंबित
बीते मंगलवार को राज्य सरकार के वकील रंजीत कुमार ने अदालत के सवालों का जवाब देने के लिए कुछ और समय मांगा। कुमार ने पीठ को यह भी बताया कि राज्य सरकार शराबबंदी कानून में कुछ संशोधनों पर विचार कर रही है और विधानसभा द्वारा इन परिवर्तनों को मंजूरी देने के लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता है। उन्होंने शराबबंदी कानून का बचाव करते हुए कहा कि न केवल उच्च न्यायालय ने अपने प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा है, बल्कि निषेध कानून के तहत मामलों से निपटने के लिए 74 विशेष अदालतें निर्धारित की गई हैं।
जिसपर पीठ ने जवाब दिया, “आप न्यायिक आदेश के सिद्धांत पर बहस कर रहे हैं लेकिन हम आपको यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि एक बार मुकदमा शुरू होने के बाद, सुप्रीम कोर्ट तक इसकी निरंतरता बनी रहती है। इसके अलावा, हम ऐसे परिदृश्य का सामना नहीं कर सकते हैं जब उच्च न्यायालय के एक तिहाई जज केवल एक कानून के तहत जमानत के मामलों की सुनवाई कर रहा हो। आपको कुछ करना होगा या हम कुछ असामान्य करेंगे जो शायद आपको पसंद न हो।” बिहार पुलिस के रिकॉर्ड के अनुसार, पिछले साल अक्टूबर तक बिहार मद्य निषेध और उत्पाद शुल्क कानून के तहत 3,48,170 मामले दर्ज किए गए और 4,01,855 गिरफ्तारियां की गई। ऐसे मामलों में लगभग 20,000 जमानत याचिकाएं उच्च न्यायालय या निचली अदालतों में लंबित हैं।
नीतीश के लिए सर्वोपरि है उनका राजनीतिक हित
बताते चलें कि जनवरी में, भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अगुवाई वाली एक पीठ ने राज्य के कड़े शराब कानून के तहत आरोपियों को अग्रिम और नियमित जमानत देने के खिलाफ बिहार सरकार की अपीलों को खारिज कर दिया था। बिहार के विवादास्पद शराबबंदी कानून की संवैधानिक वैधता को भी शीर्ष अदालत में चुनौती दी जा रही है। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ के पास कई याचिकाएं हैं, जिनमें से एक इंटरनेशनल स्पिरिट्स एंड वाइन एसोसिएशन ऑफ इंडिया की है। याचिकाओं ने किसी व्यक्ति के चुनाव करने के अधिकार के उल्लंघन, निजता के अधिकार, मनमाना और अनुचित प्रतिबंध और कानून के तहत कठोर दंड के मुद्दों को उठाया गया है। बिहार सरकार ने सिर्फ अपनी राजनीतिक हितों को देखते हुए न सिर्फ लोगो के अधिकार के उल्लंघन, निजता के अधिकार, मनमाना और अनुचित प्रतिबंधों को लोगों पर थोप दिया है। बिहार के राजस्व का भी ख्याल नहीं रखा गया। उम्मीद है न्यायालय के इस स्पष्ट रूख से बिहार सरकार कोई उचित निर्णय करे।
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