इतिहास साक्षी रहा है कि जब जब भारत के लोग भारत की भौगोलिक परिधि को पार कर दूसरे राष्ट्र में गए हैं, तब तब उन्होंने वहां की सभ्यता को और अधिक परिष्कृत और संपन्न किया है। आप अगर चाहे तो ब्रिटेन, अमेरिका, मालदीव और मॉरीशस में बसे हुए भारतवंशियों को देख सकते हैं। और यही रीति एक अन्य विशेष समुदाय और भारत में उनके घुसपैठ के संबंध में सटीक नहीं बैठती है। जब जब भारत के पाकिस्तान और बांग्लादेश से लगने वाली सीमाओं से घुसपैठ हुआ है, तब तब उन्होंने हमारी संस्कृति को परिष्कृत करने के बजाए उसके अस्तित्व पर गंभीर संकट उत्पन्न कर दिया है। इस प्रकार के संकट से सबसे ज्यादा परेशान भारत का पूर्वोत्तर राज्य असम रहा है। 1971 के युद्ध में बांग्लादेश पर अपना अनुचित कब्जा बनाए रखने के लिए पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया था। इतिहास के इस सबसे क्रूरतम नरसंहार में लाखों बंगाली हिंदुओं और बांग्लादेशी मुसलमानों का कत्लेआम किया गया। वे अपनी जान बचाने के लिए अवैध रूप से भारत की सीमा में दाखिल हो गए। इस शरणार्थी संकट से पूर्वोत्तर के राज्यों विशेषकर असम की संस्कृति और सभ्यता पर खतरा उत्पन्न हो गया। इतने बड़े पैमाने पर बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ से असम की जनसांख्यिकी में भारी परिवर्तन आया और वहां के मूल निवासियों की राजनीतिक शक्ति और अधिकार में भी गिरावट आई।
धीरे-धीरे रोजगार और बेहतर गुणवत्ता वाले जीवन के लिए इन अवैध बांग्लादेशी शरणार्थियों ने बांग्लादेश में रह गए अपने परिजनों का भी अवैध रूप से पलायन कराना शुरू कर दिया। भारत सरकार से सुविधा लेने के लिए इन लोगों ने आधार कार्ड, मतदाता पत्र और यहां तक कि पैन कार्ड जैसे पहचान पत्र बनवाकर मत देने का अधिकार प्राप्त कर लिया। कुछ समय बाद रोहिंग्या संकट भी उभर कर आने लगा। ऐसे में असम गण परिषद के राजनीतिक आंदोलन के बैनर तले बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठियों को असम से बाहर निकालने की मांग तेज होने लगी। सभी जानते थे कि इस कार्य में समय लगेगा। अतः तात्कालिक रूप से राहत के लिए इनका नाम मतदाता सूची से निकालने के लिए सरकार से गुहार लगाई गई। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में चरम पर पहुंची यह समस्या राजीव गांधी के कार्यकाल तक बनी रही, यद्यपि उनके कार्यकाल में असम अकॉर्ड समझौता संपन्न हुआ। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार को विशेष रूप से असम में NRC की प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया।
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दशकों से लंबित नागरिकता रजिस्टर के पूरी होने की संभावना भाजपा के शासनकाल में दिखने लगी। परंतु यह अवैध घुसपैठिए भारत के सामाजिक और राजकीय व्यवस्था में इतने घुल मिल चुके हैं कि कई अवैध घुसपैठियों के नाम मतदाता सूची में शामिल हो गए, जबकि कई भारतीय नागरिकों के नाम मतदाता सूची से बाहर हो गए। मामले की जटिलता और गंभीरता को देखते हुए सरकार ने NRC की प्रक्रिया को राष्ट्रव्यापी कार्य के रूप में करने की ठानी, ताकि कम से कम सरकारी योजनाओं परियोजनाओं का लाभ देने से पहले भारत सरकार को भी तो पता चल सके कि उनका नागरिक कौन है? परंतु, विपक्ष के प्रोपेगेंडा और राष्ट्रीय स्तर पर दिग्भ्रमित मुसलमानों के विरोध प्रदर्शन से यह प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गई। विशेष रुप से असम के लिए तैयार की गई NRC रजिस्टर में भी कई त्रुटियां मिलने के कारण सरकार हलकान परेशान हो गई। परंतु अब असम में एक शेर का शासन है और उसका नाम है- हिमंता बिस्वा सरमा। हिमंता ने राज्य के लोगों को भरोसा दिलाया है कि उनकी सरकार चुन-चुन कर घुसपैठियों को बाहर निकाल लेगी और उन्हें असम के मूल निवासियों का हक खाने से रोकेगी।
NRC के पुन: सत्यापन के लिए SC का रूख करेगी असम सरकार
दरअसल, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने बीते दिन रविवार को कहा कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) एक बार फिर से आयोजित किया जाना चाहिए। इसी बीच हिमंता सरकार जल्दी निष्पक्ष NRC आयोजित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय में गुहार लगाने जा रही है। मीडिया से बात करते हुए सरमा ने कहा, “हमने पहले भी कहा था कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की समीक्षा की जानी चाहिए और नए सिरे से किया जाना चाहिए। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के साथ हमारी चर्चा चल रही है।”
NRC में कानूनी रूप से भारतीय नागरिकों के नाम शामिल हैं और इसे पहली बार वर्ष1951 में तैयार किया गया था। इसे वर्ष 2018 में पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए अवैध अप्रवासियों को बाहर निकालने के लिए अपडेट किया गया था, लेकिन 40 लाख से अधिक लोगों के नागरिकता रजिस्टर से बाहर रह जाने के कारण इसकी आलोचना हुई थी। NRC के मसौदे में कुल 3.29 करोड़ आवेदनों में से 2.9 करोड़ लोगों के नाम शामिल थे। नागरिकों की अद्यतन सूची अगस्त 2019 में प्रकाशित हुई थी, जिसमें 3.3 करोड़ आवेदकों में से 19.06 लाख लोगों को बाहर रखा गया था।
आपको बता दें कि इससे पहले गुरुवार को असम के मंत्री अतुल बोरा ने कहा था कि राज्य सरकार ने NRC के पुन: सत्यापन की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है। ANI से बात करते हुए बोरा ने कहा था कि “यह निर्णय ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और अन्य स्वदेशी संगठनों के साथ हुई बैठक के दौरान लिया गया था। हम NRC की सूची को स्वीकार नहीं करेंगे जो अगस्त 2019 में प्रकाशित हुई थी। अब हमने पुन: सत्यापन की मांग करके सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है।”
ध्यान देने वाली बात है कि असम समझौते को लागू करने को लेकर गुरुवार को असम सरकार और AASU नेतृत्व के बीच बैठक हुई। AASU के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने कहा था कि NRC की अंतिम सूची में कई अवैध बांग्लादेशी लोगों के नाम शामिल थे। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि एनआरसी सूची का पुन: सत्यापन किया जाना चाहिए। हम पहले ही सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर कर चुके हैं। हम केंद्र और राज्य दोनों से आग्रह करते हैं कि उन्हें भी सही NRC के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित की गई है NRC की प्रकिया
गौरतलब है कि भारतीय संविधान में अनुच्छेद-5 से लेकर अनुच्छेद-11 तक नागरिकता के विषय में प्रावधान किए गए हैं। इसमें साफ-साफ उल्लेख है कि संसद को नागरिकता प्राप्त करने के मानक, नियम और कानून तय करने का विशेषाधिकार प्राप्त है। इसमें यह भी कहा गया है कि सरकार का यह उत्तरदायित्व है कि वह सुनिश्चित करें कि कौन उसके नागरिक हैं और कौन नहीं, ताकि भारत सरकार की ओर से दी जाने वाली नागरिक सुविधा, अधिकार और कल्याण सिर्फ उन्हीं लोगों को प्राप्त हो जो इसके हकदार हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि देश में पहला NRC भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू 1951 में लेकर आए थे। असम के संदर्भ में उपजे एनआरसी की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित की गई है। अतः इसका पालन करना सरकार पर बाध्यकारी है, ऐसे में अगर इसकी त्रुटियों को दूर करने और निष्पक्षता के मानक स्थापित करने के लिए हिमंता सरकार ने जो आश्वासन दिया है, वह एक सराहनीय कदम है। उनका यह आश्वासन उनकी तत्परता, कर्तव्य परायणता और अपने लोगों के प्रति चिंता को रेखांकित करती है। ऐसे में जो लोग इसका विरोध करते हैं, सरकार को उन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करते हुए एक मिशाल पेश करनी चाहिए, जिससे भविष्य में ऐसा संकट कभी न उपजे।
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