कांग्रेस नेताओं को पता हीं नहीं होता है की कब और क्या बोलना है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे भीषण युद्ध के मामले में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि भारत को रूस की निंदा करनी चाहिए थी और रूस द्वारा यूक्रेन में अलगाववादी राज्यों की स्वतंत्रता की घोषणा पर आपत्ति करनी चाहिए थी। उनके अनुसार भारत की ‘तटस्थता’ एक बुरे दिन की और लेकर जाएगी। अगर पार्टी का कोई और नेता होता तो ऐसी बचकानी बात की उम्मीद की जा सकती थी लेकिन शशि थरूर जैसे विदेश मामले के जानकर व्यक्ति से यह चीजें अपेक्षित नहीं होती है।
इस बात को लेकर एक भारतीय नागरिक होने के नाते शशि थरूर को हम यह ज्ञात कराना चाहते है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत पहले ही एक पक्ष ले चुका है। कभी डिप्लोमैट रहे शशि थरूर ने खुद को राजनीतिक कारणों के लिए समर्पित कर दिया है। केवल यही कारण हो सकता है कि उन्होंने रूस-यूक्रेन संकट में भारत का पक्ष लेने पर ध्यान नहीं दिया। 8 मार्च को, शशि थरूर ने दुनिया में चल रहे संकट में भारत की दुविधा (उनके अनुसार) के बारे में एक अविश्वसनीय रूप से विश्लेषणात्मक लेख लिखा।
थरूर ने अपने लेख की शुरुआत इस विचार के साथ की कि पूर्वी यूरोप में भूमि की लड़ाई ने सामरिक कूटनीति के प्रमुख मुद्दों में भारत की स्थिति को उजागर कर दिया है। थरूर संयुक्त राष्ट्र के वोटों, सुरक्षा परिषद, महासभा और मानवाधिकार परिषद में भारत की अनुपस्थिति के आलोचक प्रतीत होते हैं। थरूर ने जोर देकर कहा कि रूस संघर्ष में एक स्पष्ट हमलावर है, जबकि यूक्रेन पीड़ित है।
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थरूर ने यह भी कहा कि भारत का यूरोप में शांति का आह्वान व्यर्थ है। इसके बजाय, उनका सुझाव है कि पुतिन के नेतृत्व वाले देश के खिलाफ आलोचना होनी चाहिए थी। हालांकि, ऐसा लगता है कि थरूर यह भूल गए हैं कि कूटनीति में, गुप्त संचार अधिक प्रभावी होता है।
ये तटस्थता नहीं थरूर साहब, मित्रता है
भारत का मतदान से दूर रहना एक तटस्थ रुख के बजाय रूस के लिए एक दोस्ताना इशारा है। रूस भारत एक बहुत पुराने सहयोगी है। हम यह कभी भूल नहीं सकते जब रूस ने भारत की सहायता की थी, जब पश्चिम यूरोप भारत के खिलाफ पाकिस्तान जैसे आतंकवादी राष्ट्र की सहायता करने पर आमादा था। रूस ने भारत के समर्थन में कश्मीर मुद्दे को वीटो कर दिया था। 1971 में जब पूरे पश्चिम ने भारत को छोड़ दिया था, तब सोवियत ने भारत का साथ दिया था।
आपको ज्ञात हो कि रूस भारत के लिए सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्ताओं में से एक बना हुआ है, जैसा कि थरूर ने अपने लेख में भी बताया है। यूक्रेन युद्ध से पहले ही रूस के पास चीन जैसे बहुत सारे सहयोगी थे लेकिन चीन ने यूएनएससी में रूस को अकेला छोड़ दिया और प्रस्ताव में इसके खिलाफ मतदान किया। चीन द्वारा पीठ में छुरा घोंपना उस समय हुआ जब पूरे पश्चिम ने रूस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग कर दिया था।
UNSC में रूस उम्मीद कर रहा था कि हर कोई यूक्रेन में हिंसा के खिलाफ मतदान करेगा। उस वक्त भारत ने कहा था कि वह न तो रूस के पक्ष में वोट करेगा और न ही उसके खिलाफ। अब रूस भी जानता है कि पश्चिमी प्रतिबंधों की स्थिति में उसे अपने उपभोक्ता बाजार का विस्तार करने की जरूरत है और चीन के बाद दुनिया में भारत से बड़ा कोई उपभोक्ता बाजार नहीं है लेकिन, चीन द्वारा इसके खिलाफ मतदान करने के कारण, रूस आगे के संबंधों के लिए चीन पर भरोसा करने के लिए अनिच्छुक होगा, क्योंकि चीन कभी भी घोषणा कर सकता है कि वह रूस पर प्रतिबंध लगाएगा, ठीक उसी तरह जैसे उसने मतदान में रूस के खिलाफ किया था।
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गौरतलब है कि भारत ने कई बार संकेत दिया कि वह प्रतिबंधों की स्थिति में रूस के साथ और अधिक आर्थिक सहयोग के लिए तैयार है। शशि थरूर ने संयुक्त राष्ट्र में कई भूमिकाओं में सेवा की है। यह दुखद है कि वह यह महसूस करने में असफल रहे हैं कि भारत की ‘तटस्थता’ वास्तव में रूस के लिए भारत का समर्थन है। भारत हर हाल में अपने मित्र देश रूस को अकेला नहीं छोड़ेगा, यह बात एक भारतीय नागरिक होने के नाते शशि थरूर को यह समझना चाहिए था।
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