“जनता के लिए सुलभ” किसी नेता के प्रति जब ऐसे कथन राजनीतिक बाजार में चलने लगें तो समझिये वास्तव में उस नेता में कोई तो ऐसी खासियत होगी जिसने जनता के दिलों में उस नेता के लिए अपार प्रेम और इज्जत पैदा की है। उत्तर प्रदेश सरकार के नए डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक जी के लिए जनता तथा भाजपा कार्यकर्ता कुछ ऐसे ही शब्दों का प्रयोग करते दिखते हैं | ब्रजेश पाठक इस बार सरकार में पदोन्नत्ति पाकर कानून मंत्री से सीधा उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुँचे हैं | यह एक दिन में हुआ करिश्मा नहीं है, ब्रजेश पाठक के कांग्रेस और बसपा में अधूरे छूट गए राजनीतिक सफर को भारतीय जनता पार्टी में आने के बाद नये पंख मिले , पार्टी ने पाठक जी पर पूरा भरोसा दिखाया | इसीलिए आज वह संगठन के उन नेताओं में शामिल हैं, जिनके एक इशारे पर जनता का हुजूम मिनटों में तैयार रहता है।
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ब्रजेश पाठक का शुरुवाती राजनीतिक जीवन
एक नेता को परिपक्व और संवेदनशील बनने में समय लगता है, पर जब वो इन दोनों विषयों में पारंगत हो जाता है, तो कोई भी उस नेता की दरकिनार नहीं कर पाता। ब्रजेश पाठक भी उन्हीं नेताओं में से एक हैं | छात्र राजनीति से सक्रिय राजनीति तक के इस सफर में ब्रजेश पाठक लखनऊ विश्वविद्यालय के 1989 में छात्र संघ चुनावों में उपाध्यक्ष चुने गये और इसके बाद 1990 में वह छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। असल राजनीति की शुरुवात ब्रजेश पाठक ने कांग्रेस के साथ की | पाठक ने 2002 में काँग्रेस के टिकट पर हरदोई के मल्लावां क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ा, हालांकि सवा सौ मतों के बेहद कम अंतर से वो यह चुनाव हार गए। कांग्रेस नाता तोड़ कर लगभग दो वर्षों बाद पाठक बहुजन समाज पार्टी के नेता बने और उनका कद मायावती ने कम नहीं होने दिया |
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सक्रिय राजनीति की शुरुआत
बसपा सुप्रीमो मायावती के विश्वास पर उन्हें 2004 के लोकसभा चुनावों में बसपा ने उन्नाव संसदीय क्षेत्र से पाठक को उम्मीदवार बनाया गया और वह चुनाव जीत गये। इसके बाद बसपा प्रमुख मायावती ने उन्हें 2009 में राज्यसभा भेज दिया था। अर्थात् लोकसभा और राज्यसभा दोनों के कामकाज का अनुभव ब्रजेश पाठक को बेहद कम समय में मिल गया। इसके बाद आया वो समय जिसे लहर कहा जाता है, मोदी लहर। वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव था और मायावती ने ब्रजेश पाठक को पुनः लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा और उन्हें उन्नाव से दोबारा लोकसभा चुनाव में बसपा से उम्मीदवार बना दिया गया और पाठक को यहाँ भाजपा प्रत्याशी साक्षी महाराज से कड़ी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। लोकसभा चुनावों में हार के बाद ब्रजेश पाठक का बसपा से मोह भंग शुरू हुआ और ऐसे में उन्होंने 2016 में उत्तर प्रदेश चुनाव के चंद रोज़ पूर्व बसपा छोड़ भाजपा की सदस्ता ग्रहण कर ली | भाजपा ने उन्हें 2017 विधानसभा चुनावों में लखनऊ मध्य क्षेत्र से टिकट थमाया और पाठक ने जीत हासिल की। जीत के बाद योगी सरकार में उन्हें कानून मंत्री की जिम्मेदारी दी गयी |
भाजपा में मिली ब्रजेश पाठक को सही पहचान
असल परीक्षा अब शुरू हुई थी क्योंकि राज्य में गुंडई और कानून व्यवस्था की हालत इतनी लचर थी | कि भाजपा आधा चुनाव तो इसी मुद्दे पर जीती थी कि सपा शासन में गुंडई पर काबू नहीं था। ऐसे में पाठक पर बतौर राज्य का क़ानून मंत्री होने के कारण एक स्वाभाविक दबाव था | इस दबाव को ब्रजेश पाठक ने बखूबी संभाला और तो और योगी कार्यकाल में सबसे कम चूक वाले मंत्रालयों में से एक मंत्रालय कानून मंत्रालय ही था। पाठक को जनता ने ऐसे ही नहीं “जनता के लिए सुलभ” नेता कहती है | यह पाठक की करनी का ही फल था, जिसके लिए न उन्होंने पार्टी देखी और न अपना साथी विधायक, जनता को आ रही परेशानी का कारण भले ही उनकी पार्टी का ही विधायक क्यों न हो पाठक उसकी क्लास ले लेते थे।
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जातीय समीकरण साधने के लिए दिनेश शर्मा की जगह पाठक को चुना गया
ब्रजेश पाठक को दिनेश शर्मा के प्रॉक्सी के तौर पर इसलिए लाया गया क्योंकि जातीय समीकरण को भी साधना था, ऐसे में केशव प्रसाद मौर्य को पुनः ओबीसी कोटे से उपमुख्यमंत्री बना देने के साथ ही ब्राह्मण चेहरे पर भी इस बार भाजपा को एक साफ़ और उग्र छवि वाले नेता की तलाश थी | ऐसे में कांग्रेस और बसपा में ब्राह्मण चेहरे के रूप में अपनी जगह बना चुके ब्रजेश पाठक ने मंत्री रहते हुए भी ब्राह्मण हितों के लिए अपनी ओर से व्यक्तिगत और शासकीय प्रयास किए जिसको नकारा नहीं जा सकता था। 2017 में योगी सरकार बनने के बाद रायबरेली में ऊंचाहार विधानसभा क्षेत्र के अपटा गांव में पांच ब्राह्मणों को जलाकर मार दिये जाने की घटना को ब्रजेश पाठक ने जोरदार तरीके से उठाया था, जिसके बाद आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हुई थी। वहीं बिकरू कांड के आरोपी माफिया विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद ब्राह्मण विरोधी के टैग के साथ विपक्षियों का निशाना बन चुके योगी आदित्यनाथ के बचाव में पाठक ने फ्रंटफुट पर खेल इस एजेंडे को धराशाई करने में अहम भूमिका निभाई थी। हाल ही में किसान आंदोलन के दौरान लखीमपुर खीरी में हुए बवाल में 8 लोगों की मौत हुई थी | जिनमें चार किसानों के साथ-साथ बीजेपी के कार्यकर्ताओं की भी मौत हुई थी। बीजेपी के कार्यकर्ता ब्राह्मण थे, लेकिन सभी दल मुंह में दही जमाए बैठे रहे क्योंकि उनके लिए केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा टेनी के पुत्र आशीष मिश्रा उर्फ़ मोनू टारगेट थे ऐसे में विपक्षी दल उन कार्यकर्ताओं का नाम कैसे ले लेते, राजनीति कैसी चलती फिर? ऐसे में हिंसा में मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं के दसवां संस्कार में ब्रजेश पाठक ने शिरकत कर उनके परिजनों को न सिर्फ सांत्वना दी, बल्कि उन्हें यह भी बताया कि उनके साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। उनकी इसी संवेदना और सेवाभाव को पार्टी ने पहचाना और उपमुख्यमंत्री के रूप मे उन्हे एक बड़ी जिम्मेदारी दी |