परमबीर सिंह मामले में महाराष्ट्र सरकार को बड़ा झटका लगा है। महाविकास अघाड़ी सरकार इस मामले को महाराष्ट्र स्थानांतरित करवाना चाहती थी, किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने से मना कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है कि महाराष्ट्र पुलिस द्वारा परमबीर सिंह के विरुद्ध किए गए मुकदमे को CBI को सौंपा जाए, जिससे मामले की निष्पक्ष जांच हो। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय जांच एजेंसी को जांच स्थानांतरित करते हुए जस्टिस एस के कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि इस मामले की जांच किसे करनी चाहिए, इस पर बहुत ही संदिग्ध मामला चल रहा है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, “प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने में अत्यावश्यकताओं के लिए जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करने की आवश्यकता है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि अपीलकर्ता व्हिसल ब्लोअर है या इस मामले में शामिल कोई भी दूध का धुला नहीं है।”
कोर्ट ने कहा, इस मामले की जांच किसे करनी चाहिए, इस पर सत्ता के शीर्ष स्तर के बीच एक बहुत ही अस्पष्ट स्थिति जारी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य पुलिस में लोगों का विश्वास फिर से बहाल करने के लिए गहन जांच की जरूरत है। पीठ ने इस मामले पर कहा, ‘‘हम इस दलील को स्वीकार करने में असमर्थ हैं कि याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत करने वालों द्वारा प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। हमारा विचार है कि राज्य को ही सीबीआई को जांच करने की अनुमति देनी चाहिए थी।’’ अदालत ने आगे कहा कि प्रथम दृष्टया हमारा विचार है कि कुछ मामलों में सीबीआई द्वारा जांच की आवश्यकता है। सच्चाई क्या है, किसकी गलती है, इस तरह का परिदृश्य कैसे बना, इसकी जरूर जांच होनी चाहिए। सीबीआई को इन सभी पहलुओं की निष्पक्ष जांच करनी चाहिए।
कोर्ट की टिप्पणी का अर्थ यह है कि परमबीर सिंह को निष्पक्ष जांच प्राप्त करने का अधिकार है और इस कारण यह मामला CBI को स्थानांतरित किया जा रहा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि परमबीर सिंह कोई व्हिसल ब्लोअर नहीं है किंतु उन्हें निष्पक्ष जांच का अधिकार है। कोर्ट ने परमबीर सिंह को यह रियायत अवश्य दी है कि उन्हें महाराष्ट्र सरकार की पहुंच से बचा लिया गया है, किंतु उनका सस्पेंशन खत्म नहीं किया गया है। हालांकि, कोर्ट ने यह प्रावधान अवश्य कर दिया है कि अब परमबीर सिंह के विरुद्ध दर्ज होने वाला कोई भी नया मुकदमा CBI के पास जाएगा। ऐसे में अब महाराष्ट्र सरकार किसी भी तरह से इस मामले को प्रभावित करने में अक्षम हो गई है। शीर्ष अदालत के इस आदेश को राज्य सरकार के लिए झटका माना जा रहा है।
और पढ़ें: परमबीर की वजह से महाविकास अघाड़ी को अपना गृह मंत्री खोना पड़ा! अब उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी
जानें कब शुरू हुआ था विवाद?
आपको बताते चलें कि यह विवाद मार्च 2021 से शुरू हुआ था। परमबीर सिंह ने 20 मार्च को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख के ऊपर 100 करोड़ की उगाही करने का गंभीर आरोप लगाया था। इसके बाद महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्रालय ने 1 अप्रैल को परमबीर सिंह के खिलाफ जांच का आदेश दिया था। गौरतलब है कि जब परमबीर पर जांच के आदेश दिये गये थे, उस समय अनिल देशमुख राज्य के गृह मंत्री थे। उसके बाद महाराष्ट्र के तीन व्यापारियों ने परमबीर सिंह पर वसूली का आरोप लगाया। फिर एक के बाद एक कई मामले सामने आए। एक आरोप में तो यहां तक दावा किया गया कि परमबीर सिंह ने कसाब का फोन गायब करके सबूत मिटाया था। परमबीर पर जब दबाव बढ़ने लगा तो वो छिप गए और नवंबर 2021 के अंतिम सप्ताह में उन्होंने सरेंडर किया।
ऐसे में मौजूदा समय में इस मामले पर कोर्ट की टिप्पणी बताती है कि महाराष्ट्र में पूरी व्यवस्था कितनी भ्रष्ट है। पहले जो परमबीर सिंह उद्धव सरकार के चहेते थे, जो उनके इशारे पर अर्नब गोस्वामी को फंसाने की साजिश रच रहे थे, जब वो खुद बागी हुए तब उद्धव सरकार उन्हें ही कुचलने के लिए हाथ धोकर पीछे पड़ गई। इस मामले पर कोर्ट की टिप्पणी पूरे प्रशासन, विशेषतः महाविकास अघाड़ी सरकार के मुंह पर करारा तमाचा है।
और पढ़ें: अर्नब को फंसाने वाले तीन यार- अनिल, सचिन और परमबीर, अब हैं कहाँ?