भारत सरकार ने पिछले दिनों आर्कटिक क्षेत्र को लेकर अपनी नीति की घोषणा की। विश्व के सबसे ठंडे स्थानों में एक आर्कटिक क्षेत्र, 8 देशों के अधीन भूमि पर फैला हुआ है। आर्कटिक के अंतर्गत आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस और स्वीडन को शामिल किया जाता है। ‘भारत और आर्कटिक: सतत विकास के लिए एक साझेदारी का निर्माण’ शीर्षक से नीति 6 केंद्रीय स्तंभों पर बनी है, जिसमें विज्ञान और अनुसंधान, जलवायु और पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक और मानव विकास, परिवहन और कनेक्टिविटी, शासन और अंतरराष्ट्रीय सहयोग तथा राष्ट्रीय क्षमता निर्माण शामिल है। सरकार की ओर से पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह ने इसकी घोषणा की।
भारत ने अपनी नीति में पारिस्थितिकी स्थितियों में हो रहे बदलाव पर प्रमुखता से जोर दिया है। भारत सरकार यूरोपीय यूनियन और रूस के साथ मिलकर इस क्षेत्र में कार्य करेगी। इस नीति के अंतर्गत आर्कटिक के ठंडे प्रदेशों के अध्ययन से भूमि और पर्यावरण की जो भी जानकारी प्राप्त होगी, उसका प्रयोग हिमालय क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र एवं पर्यावरण को समझने में किया जाएगा। विशेषत: ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक में होने वाले बदलाव का सीधा असर भारत के मानसून पैटर्न तथा समुद्र तटीय क्षेत्रों पर पड़ता है। भारत का मानसून भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
भारत आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा रखने वाले 13 देशों में से एक है, जो एक उच्च स्तरीय अंतर सरकारी मंच है जो आर्कटिक सरकारों और क्षेत्र के स्वदेशी लोगों के सामने आने वाले मुद्दों को संबोधित करता है। यह क्षेत्र अत्यधिक भू-राजनीतिक महत्व रखता है क्योंकि आर्कटिक के 2050 तक बर्फ मुक्त होने का अनुमान है और विश्व शक्तियां प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध क्षेत्र का दोहन करने के लिए आगे बढ़ रही हैं।
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India lays out its primary interest in the Arctic, it’s safeguarding its development goals via studying the Scientific, especially weather. This has a direct bearing on India’s agriculture, food security and economy. /2 pic.twitter.com/nb7FD6nT8W
— Aditya Pareek⚓🧠📚 ⚛️ on 🧊 ❄️ (@CabinMarine) March 18, 2022
कई तरह के खनिज संसाधनों से संपन्न है आर्कटिक क्षेत्र
ध्यान देने वाली बात है कि आर्कटिक क्षेत्र दुनिया के सबसे बड़े क्रायोस्फेरिक क्षेत्र में आता है। क्रायोस्फेरिक क्षेत्र वह क्षेत्र कहलाते हैं, जहां पानी सालभर बर्फ के रूप में जमा हो। इन क्षेत्रों के अध्ययन से भारत के हिमालय सहित अंटार्कटिक क्षेत्र में भी भावी अनुसंधान में सहायता मिल सकती है। इसके लिए भारत ISRO सहित अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर काम करेगा। सरकार का कहना है कि ISRO एवं IRNSS की सहायता से इस क्षेत्र का सैटेलाइट माध्यम से अध्ययन होगा। भारत सरकार ने हाल ही में स्पेस सेक्टर में निजी भागीदारी को बढ़ावा देने की नीति भी लागू की है। आर्कटिक क्षेत्र के अनुसंधान इस नीति को और आगे ले जा सकते हैं। ISRO की भागीदारी बनाने के लिए भारत सरकार आर्कटिक में सैटेलाइट ग्राउंड स्टेशन स्थापित करने वाली है। इस ग्राउंड स्टेशन द्वारा ऑर्बिट में स्थित भारतीय सैटेलाइटों को सहयोग किया जा सकेगा।
इसके अलावा आर्कटिक क्षेत्र खनिज संसाधनों के मामले में बहुत संपन्न है। चीन और भारत दोनों ही इस क्षेत्र के संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। भारत द्वारा अंतरराष्ट्रीय मंच पर रूस विरोधी रवैया न अपनाने का एक कारण आर्थिक क्षेत्र में रूस का दबदबा भी है। भारत अपने और रूस के अच्छे संबंधों का प्रयोग करके आर्कटिक क्षेत्र के संसाधनों का उपभोग कर सकता है। रूस की अर्थव्यवस्था भी आर्कटिक क्षेत्र पर निर्भर है, क्योंकि रूस का 90% गैस और 60% क्रूड ऑयल, इस क्षेत्र से निकाला जाता है।
इसके अतिरिक्त ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री मार्गों में व्यापक परिवर्तन हुआ है। आर्कटिक का जो क्षेत्र लंबे समय तक वैश्विक शक्तियों के प्रभाव से दूर रहा था, वहां अब संसाधनों और नए समुद्री मार्गों के कारण प्रतिस्पर्धा शुरू हो चुकी है। रूस इस क्षेत्र को यूरोपीय बाजार तक पहुंचने के लिए प्रयोग करता है। चीन ने पोलर सिल्क रोड का विचार प्रस्तुत किया है और भारत भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाहता है। गौरतलब है कि नए समुद्री मार्ग नाविक रोजगार में महत्वपूर्ण होंगे। इस समय भारत पूरी दुनिया में नाविकों को उपलब्ध कराने के क्षेत्र में तीसरे स्थान पर आता है। दुनिया में 10% नाविक भारतीय हैं। भारतीय युवाओं के लिए भी यह रोजगार का एक नया क्षेत्र बन सकता है।
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