सत्ता की मिलेगी चाबी, करेंगे हर एक राज्य की बर्बादी! इसी पर आम आदमी पार्टी का मूल सिद्धांत केंद्रित है और अब एग्जिट पोल के अनुसार पार्टी पंजाब में प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बना रही है। उसे किसी एग्जिट पोल में 70-90 सीटें मिलती दिखाई जा रही है, तो कुछ एग्जिट पोल्स में उन्हें 100 सीटें मिल रही है। ऐसे आंकड़े जहां कांग्रेस के अस्तित्व को भूमिगत करने का रास्ते बना रहे हैं, वहीं यह सवाल भी पीछे छोड़ रहे हैं कि क्या यह आम आदमी पार्टी या केजरीवाल के नाम पर पड़ा वोट या पार्टी को मिल रही बढ़त के पीछे खालिस्तान का हाथ है? ध्यान देने वाली बात है कि न तो केजरीवाल या आम आदमी पार्टी ने अब तक पंजाब में कोई काम किया था, न ही वह राज्य में एक पुरानी पार्टी थी फिर ऐसा क्या हुआ जो राज्य में उसका प्रादुर्भाव अन्य सभी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियों के अस्तित्व को मिटाता गया।
दरअसल, पंजाब में एग्जिट पोल के एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि आम आदमी पार्टी राज्य में सबसे अधिक सीटें जीतेगी। ईटीजी रिसर्च के सर्वेक्षण से पता चलता है कि आम आदमी पार्टी 117 सीटों वाली विधानसभा में 70-75 सीटें जीत रही है। इंडिया टुडे के पोल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी को 76 और 90 सीटों के बीच जीतते हुए दिखाया गया है। न्यूजएक्स-पोलस्ट्रैट पोल में आम आदमी पार्टी या आप को 56-61 सीटें मिलती दिख रही हैं, जबकि रिपब्लिक टीवी में केजरीवाल की पार्टी को 62-70 सीटें मिल रही हैं।
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किसान आंदोलन का खालिस्तान कनेक्शन और केजरीवाल
ध्यान देने वाली बात है कि केजरीवाल के उस एजेंडे पर सबकी नज़र नहीं जा रही, जिसे वित्त-पोषित कर केजरीवाल ने दिल्ली से सटे बॉर्डरों पर पाला था। किसान आंदोलन के खालिस्तानी कनेक्शन के बाद से ही दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने उसकी सेवा में दिल्ली का राजस्व ऐसे खोला जैसे दिल्ली की जनता के सर्वांगीण विकास में लगने वाला यह राजस्व कोई खैरात था। फ्री WiFi, फ्री बिजली और फ्री पानी के अतिरिक्त शादी ब्याह के माहौल जैसा जगमग बॉर्डर करने का श्रेय इसी केजरीवाल सरकार को जाता है। क्योंकि AAP का ध्येय तो 2022 का पंजाब विधानसभा चुनाव था, ऐसे में आम आदमी पार्टी सरकार ने दिल्ली में टिके खालिस्तानी समूहों को न केवल वित्तपोषित किया उसकी हर गैरजरूरी इच्छा की पूर्ति भी की। यदि यह परिणाम असल किसान आंदोलन के तहत आता तो कांग्रेस हो, अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस हो या फिर शिरोमणि अकाली दल, यहीं पार्टियां बढ़त बनाती दिखती, क्योंकि किसान आंदोलन के प्रति जहां कांग्रेस ने फ्रंट फुट पर केंद्र सरकार से हल निकालने की मांग अमरिंदर सिंह के सीएम रहते की थी, तो शिरोमणि अकाली दल ने केंद्र का मंत्री पद त्याग दिया था। ऐसे में केजरीवाल कौन सी किसान आंदोलन की मलाई चाट गए, सबसे बड़ा प्रश्न यही है?
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10 मार्च को साफ हो जाएगी स्थिति
बता दें कि यह पूरा घटनाक्रम खालिस्तानी एजेंडे के इर्द-गिर्द घूमने के साथ ही आम आदमी पार्टी की विकृत सोच का परिणाम था, जो उसे आज पंजाब में सरकार बनाने के द्वार खोलकर दे रही है। कई खालिस्तानी समूहों ने तो साफ़-साफ केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को समर्थन देते हुए अपने बयान भी साझा किए थे। ऐसे में इस पूरे चुनावी परिणाम का अन्तोत्गत्वा एक ही निचोड़ निकल रहा है कि कैसे अरविन्द केजरीवाल के खालिस्तानी प्रेम ने उनको सरकार बनाने की स्थिति में ला खड़ा किया। शेष सारी बातें 10 मार्च को साफ भी हो जाएंगी, जब चुनाव के असल परिणाम आएंगे लेकिन अभी तक एग्जिट पोल के आधार पर 2017 की भांति ही केजरीवाल को बहुमत मिलता दिख रहा है। यदि आप पंजाब में सत्ता में आती है, तो यह एक बड़ा बदलाव होगा क्योंकि केजरीवाल की पार्टी दिल्ली के विपरीत एक पूर्ण राज्य चलाएगी, जो बॉर्डर से सटा हुआ राज्य में है और ऐसे में केजरीवाल के कई पोल भी खुलते दिखेंगे!