कांग्रेस पार्टी का उदय जितनी तीव्रता से स्वतंत्रता के पश्चात् हुआ था उससे कई तेजी से उसका पतन वर्ष 2014 के बाद से दिखाई देने लगा। कोई इसके लिए नेतृत्व को दोषी ठहराता है तो कोई नीतियों को पर सबसे बड़ा कारण कांग्रेस की वो समिति है जो सारे निर्णय लेती है। जी हां, CWC जिसे कांग्रेस वर्किंग कमिटी कहा जाता है इसी कमेटी के भीतर छिपे हैं कांग्रेस की हार के कारक। इस कमेटी का नेतृत्व करती आई हैं सोनिया गांधी जो वर्तमान में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं। कांग्रेस वर्किंग कमेटी को सोनिया गांधी ने जकड़ रखा है और जिससे जब-जब जो-जो बुलवाना हो सोनिया के एक इशारे पर वही बात बोली जाती है।
पार्टी में आज लोकतंत्र है ही नहीं!
व्यक्तिगत स्वतंत्रता तो दूर की बात है कांग्रेस पार्टी में आज लोकतंत्र के अनुरूप कोई भी काम नहीं होता, यहां बस जो गांधी परिवार निर्देशित करता है वही होता है। ऐसे में जब-जब चुनाव हारने के बाद CWC की बैठक में जवाबदेही तय करने और अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की बात आती है तो CWC सदस्य 10 जनपथ से निकले आदेश का पालन कर बैठक में कहते हैं कि, “नहीं, मैडम (सोनिया गाँधी) के नेतृत्व की कांग्रेस को आवश्यकता है।” ऐसी चाटुकारिता और जी हुज़ूरी ने ही कांग्रेस को गर्त में धकेल दिया है। कांग्रेस आलाकमान के नाम पर मात्र 3 सदस्य हैं जो आज भी पार्टी में क्या होगा उसे निर्धारित करते हैं। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा, इन तीनों के अतिरिक्त निर्णायक भूमिका न आजतक किसी की रही है और न ही रहेगी।
बैठक ने नेहरू–गांधी परिवार पर ही मुहर लगाई
ज्ञात हो कि, पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को हरा दिया, अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी की 92 सीटों के मुकाबले कांग्रेस ने अपनी सरकार से हाथ धोकर सिर्फ 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उत्तर प्रदेश में तो हाल इतना गया बीता हो गया कि सबसे बुजुर्ग पार्टी सिर्फ दो सीटों पर कामयाब रही जोकि मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी की तुलना में सिर्फ एक ज़्यादा थी।
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कांग्रेस पार्टी ने रविवार को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों में अपने खराब प्रदर्शन के बाद अपने प्रदर्शन की समीक्षा के लिए अपनी आपातकालीन कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक बुलाई। जिसमें अन्तोत्गत्वा परिणाम यह रहा कि CWC सदस्यों ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के रूप में बनी रहेंगी। चार घंटे तक चली बैठक ने नेहरू-गांधी परिवार में अपने विश्वास की पुष्टि की।
और तो और लोकतंत्र की ऐसी इन्तेहां कि CWC में उस G-23 गुट के नेताओं में से मात्र एक ही नेता गुलाम नबी आज़ाद ही हैं जो इस समूह का हिस्सा हैं बाकी विरोधी स्वर इस कमेटी का भी हिस्सा नहीं हैं जो आज तक नेतृत्व परिवर्तन की मांग करते आए हैं। मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल, संजय निरुपम सरीखे नेता यदि इस कमेटी में होते तो सर्वसम्मति वाला शिगूफा धराशाई हो जाता क्योंकि G-23 गुट के ये कांग्रेसी नेता बहुत दिन से बस इसी आस में हैं कि कब कांग्रेस नेतृत्व परिवर्तन होगा, कब गांधी वर्चस्व की बेला समाप्त होगी। यह तो अजय माकन, रणदीप सुरजेवाला, के सी वेणुगोपाल जैसे नेताओं की किस्मत है जो हां मालिक, जी मालिक करते हुए अपनी रोटियां सेंक रहे हैं, यद्यपि इनसे कहीं ज़्यादा अनुभवी और कौशल युक्त नेताओं की आज भी कांग्रेस में भरमार है पर कांग्रेस ठहरी कांग्रेस उसे परिवार से बाहर कोई दिखता ही नहीं है।
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यूं तो, यह कोई नई बात तो थी नहीं कि गांधी परिवार ने इस्तीफा पेश किया और गांधी परिवार ने ही उसे नामंजूर कर दिया, गांधी परिवार ने ही कहा कि गांधी परिवार ही अध्यक्ष बना रहेगा क्योंकि गांधी परिवार से बढ़कर गांधी परिवार के लिए कोई है नहीं ऐसे में गांधी परिवार ही कांग्रेस पार्टी है और कांग्रेस पार्टी ही गांधी परिवार है।
जो मैडम कहें वही सही !
सीडब्ल्यूसी में अधिकांश पार्टी के शीर्ष नेता शामिल होते हैं जो पार्टी में निर्णय लेने की प्रक्रिया से निकटता से जुड़े होते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, अंबिका सोनी इस कमेटी कुछ प्रमुख सदस्यों में से एक हैं। विद्रोही समूह, जिसे जी-23 भी कहा जाता है, उसमें से मात्र गुलाम नबी आजाद ही हैं जो इसके सदस्य हैं।
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इन सभी बातों में एक बात समान है कि कांग्रेस में सब समान नहीं है। यहां जो जितना गांधी परिवार की जी हुजूरी करेगा उतनी ही ख्याति और इनाम पाएगा, रणदीप सुरजेवाला से बड़ा उदाहरण कोई नहीं हो सकता हारने के बाद भी राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का चेहरा बन चुके हैं। निश्चित तौर पर आज सोनिया गाँधी ने पार्टी को ही Hijack कर लिया है। अंततः बात यहीं सिमट जाती है कि, सोनिया गांधी के अनुसार कांग्रेस में “न खाता न बही, जो मैडम कहें वही सही।”