यदि आपको लगता है कि फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर ही कथा खत्म हो जाएगी, तो रुकिए, ये तो मात्र प्रारंभ ही है। अभी सूची बड़ी लंबी है और ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय सिनेमा उद्योग में राष्ट्रीयता की एक नई लहर आने वाली है, जिसमें अब एक ऐसे किरदार की एंट्री होगी, जिसका नाम सुनते ही आज भी कई वामपंथी त्राहिमाम कर उठते हैं और वो नाम है– विनायक दामोदर सावरकर अर्थात वीर सावरकर।
सिल्वर स्क्रीन पर वीर सावरकर का होगा आगमन
वीर सावरकर का शीघ्र ही सिल्वर स्क्रीन पर आगमन होने वाला है और इस निर्णय से अनेकों वामपंथियों के रातों की नींद और दिन का चैन उड़ने वाला है। काफी समय पूर्व चर्चित फिल्मकार महेश मांजरेकर ने घोषणा की थी कि वे प्रख्यात क्रांतिकारी एवं विचारक विनायक दामोदर सावरकर पर फिल्म बनाएंगे। अब इसके लिए उन्हें मुख्य भूमिका निभाने वाला चेहरा भी मिल चुका है।
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प्रख्यात फिल्म एनालिस्ट तरण आदर्श के अनुसार, “रणदीप हुड्डा फिल्म ‘स्वातंत्र वीर सावरकर’ में शीर्ष भूमिका निभाने जा रहे हैं। इस फिल्म को आनंद पंडित, संदीप सिंह एवं रूपा पंडित मिलकर निर्मित कर रहे हैं” स्वयं महेश मांजरेकर ने भी रणदीप हुड्डा द्वारा शीर्ष भूमिका निभाए जाने की पुष्टि अपने ट्विटर हैंडल से की –
Kuch kahaniyaan batayi jaati hai aur kuch jee jaati hain!
Grateful, excited and honoured to be part of #SwatantraVeerSavarkar's biopic ✨@manjrekarmahesh @anandpandit63 @thisissandeeps @apmpictures @directorsamkhan @pandya_jay #RoopaPandit #LegendStudios pic.twitter.com/V6iXF5GHtr— Mahesh Manjrekar (@manjrekarmahesh) March 23, 2022
RANDEEP HOODA TO PORTRAY TITLE ROLE IN 'SWATANTRA VEER SAVARKAR'… #RandeepHooda will portray the title role in #SwatantraVeerSavarkar… Directed by #MaheshManjrekar… Produced by #AnandPandit and #SandeepSingh… Co-produced by #RoopaPandit and #SamKhan. pic.twitter.com/ZFrRD5cCtR
— taran adarsh (@taran_adarsh) March 23, 2022
विनायक दामोदर सावरकर के जीवन से भला कौन परिचित नहीं है। प्रारंभ में विधि की पढ़ाई करने के लिए लंदन गए विनायक ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया और फिर उन्होंने जमकर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध आंदोलन किया। लेकिन उन्हें एक झूठे मामले में फंसाकर ब्रिटिश साम्राज्य ने 1911 में 50 वर्ष के लिए कालापानी का दंड दे दिया। वहां की दशा और वहां के लोगों के मनोभाव को समझ विनायक दामोदर सावरकर ने न्याय के लिए कई प्रयत्न किए और 1921 में एमनेस्टी ऑर्डर के अंतर्गत उन्हें रत्नागिरी जेल स्थानांतरित किया गया, जहां से उन्हें आखिरकार 1924 में रिहा किया गया।
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लेकिन विनायक दामोदर सावरकर ने क्योंकि कभी भी वामपंथ को बढ़ावा नहीं दिया और सदैव राष्ट्रवाद का समर्थन किया, इसलिए वामपंथी इतिहासकारों ने उनके योगदान को दबाने का अथक प्रयास किया। उनका नाम लेना भी किसी पाप से कम न था। जिस देश में जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक पर फिल्में बन चुकी हो, वहां वीर सावरकर पर आज तक एक भी ढंग की फिल्म नहीं बनी। उनका चित्रण केवल दो बार किया गया, एक बार 1996 के हिट फिल्म ‘कालापानी’ में, जहां अन्नू कपूर वीर सावरकर बने, और दूसरी बार 2000 में, जहां एक स्वतंत्र फिल्म ‘वीर सावरकर’ में शैलेन्द्र गौड़ ने इस भूमिका को आत्मसात किया।
वीर क्रांतिकारी को बड़े परदे पर लाना साहस भरा काम
ऐसे में बॉलीवुड के किसी बड़े फिल्मकार द्वारा इस वीर क्रांतिकारी को बड़े परदे पर लाना अपने आप में किसी साहसी कार्य से कम नहीं, और ‘द कश्मीर फाइल्स’ की अपार सफलता के पश्चात अब लोगों की दृष्टि इन्ही पर टिकी होंगी। परंतु इस ख्याल से ही हताहत होने वाले वामपंथी अभी धैर्य रखें, क्योंकि महेश मांजरेकर ‘नाथुराम गोडसे’ पर भी बायोपिक बनाने वाले हैं!
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