भारत को अंग्रेज़ों से मुक्ति दिलाने में स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान था न कि 1885 में बनी उस कांग्रेस पार्टी के नेताओं का, जिसकी स्थापना ही गैर भारतीय ने की थी। पार्टी का नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस रख लेने से यदि एक अंग्रेज द्वारा स्थापित संगठन भारतीय हो जाता, तो अब तक तो कथित तौर पर सोनिया गाँधी को भारतीय मान लिया जाना चाहिए था। खैर, स्वतंत्रता पश्चात भारत में जो उदय देखा गया वो निस्संदेह जनता दल के नेताओं के नेतृत्व में और अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में देखा गया। भाजपा में इस परंपरा को आगे बढ़ाने आए नरेन्द्र मोदी। पीएम मोदी के आने के बाद कांग्रेस की वो हालत हो गई कि चार विधायक अगर एक साथ लघुशंका करने चले जाते थे, तो कथित तौर पर पार्टी आलाकमान उनके पीछे अपने लोग लगा देती थी कि कहीं उन विधायकों को अमित शाह न उड़ा ले जाए! जिस पार्टी की ऐसी दुर्दशा हो जाए उसके पतन की कल्पना आसानी से की जा सकती है।
आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अगले 60 वर्षों के लिए पीएम की कुर्सी पर परिवार का ठप्पा लगा दिया था कि इस परिवार की चौहद्दी से बाहर देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी कहीं और जा ही नहीं सकती, और हुआ भी कुछ ऐसा ही। एक पार्टी के रूप में कांग्रेस को बड़ी से बड़ी जीत से लेकर बड़े से बड़े झटके, वो भी बड़े कम समय में देखने को मिले। एक तरफ जहां के. कामराज ने अपनी होशियारी से सभी को बरगलाया, तो वहीं इंदिरा गाँधी ने पार्टी का बंटवारा कर दिया था। कांग्रेस ने 1962 में 364 सीटें जीतकर विशाल बहुमत हासिल किया, तो शीघ्र ही 1977 में पार्टी 189 सीटों पर सिमट गई। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कांग्रेस पार्टी, विभाजन, घोटाले, आंतरिक संघर्ष और सार्वजनिक आक्रोश से खूब दोचार हुई और उसके अस्तित्व को सर्वप्रथम इन्हीं बिंदुंओ ने प्रभावित किया। कांग्रेस ने भले ही एक लंबे अंतराल तक भारत पर शासन किया हो लेकिन तथ्य यह है कि कांग्रेस ने भारतीय उपमहाद्वीप के निवासियों को कुछ बहुत गहरे घाव दिए हैं।
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कांग्रेस का पतन
हालांकि, 1977 के बाद भी कांग्रेस गंभीर उतार-चढ़ाव से बची रही, लेकिन इसने अपने अखिल भारतीय आधार को धीरे-धीरे खो दिया। कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश पर राज करने वाली पार्टी लोकसभा चुनाव में बहुमत का आंकड़ा पार करने के लिए संघर्ष कर रही थी। कांग्रेस ने धीरे-धीरे सरकार बनाने के लिए अपने सहयोगियों पर निर्भर रहना शुरू कर दिया। आपातकाल लगाने के बाद भी इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस संसदीय चुनावों में 189 सीटें हासिल करने में सफल रही थी। ध्यान देने वाली बात है कि कांग्रेस के पतन के पीछे एक प्रमुख कारण विपक्ष का जन्म और उदय था, जिसका स्पष्ट रूप से स्वतंत्र भारत में अभाव था।
जब विकल्प दिया गया, तो मतदाता कांग्रेस से दूर होने लगे और 1996, 98, 99 और 2004 के आम चुनावों ने उसी की तस्दीक की, जिसमें कांग्रेस को क्रमशः 140, 141, 114 और 145 सीटें मिली। भाजपा इस समय अपने विकास के क्रम में आगे बढ़ रही थी और अपने आधार का तेजी से विस्तार कर रही थी। उस समय तक सूक्ष्मता से कांग्रेस की सीटों की गिनती कम हो गई। भाजपा हिंदुत्व के एजेंडे के साथ आगे बढ़ी और अर्थव्यवस्था एवं सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता की वकालत की, यही मतदाताओं के दिमाग में स्ट्राइक कर गया। जिसके बाद 90 के दशक से कांग्रेस के वोटरों का एक बड़ा धड़ा लगातार भाजपा की ओर बढ़ता गया और फिर एंट्री हुई भारतीय राजनीति के दिग्गज नेता नरेंद्र दामोदरदास मोदी की, जिनका आना कांग्रेस की साख पर ताबूत में ठुकी अंतिम कील बन गया।
पीएम मोदी के उदय के बाद गुजरात राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री से ही कांग्रेस को धूल चाटने पर मजबूर होना पड़ा था। कांग्रेस पार्टी यूपीए 2.0 के घोटालों और भ्रष्टाचारों, अल्पसंख्यक तुष्टीकरण और सबसे अहम नेतृत्व की कमी के कारण रीढ़ विहीन हो गई, जिसका फायदा स्पष्ट तौर पर भाजपा को मिला और मोदी लहर ने तो लोगों के दिलों में जगह बना ली। भ्रष्टाचार से व्यथित जनता ने शासन को बदलने और भाजपा को सत्ता सौंपने का मौका दिया। भाजपा का राजनीतिक संदेश देश के गांवों के अंतिम कोने तक पहुंचा, जो भाजपा के शीर्षस्थ, भारतीय जनसंघ के नेता, भारतीय जनता पार्टी के अग्रदूत पंडित दीनदयाल उपाध्याय की सोच थी। साथ ही पीएम मोदी का गृह राज्य जहां उन्होंने मुख्यमंत्री के तौर पर साढ़े 12 वर्ष अपनी सेवा दी, मतदाताओं को उनकी विकास समर्थक दृष्टिकोण और ‘गुजरात मॉडल’ भा गया। नतीजा यह हुआ कि 2014 के आम चुनावों में बीजेपी ने 282 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस मात्र 44 सीटों पर सिमट गई।
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केंद्र सरकार के रूप में इतिहास रचने की ओर बढ़ चली है भाजपा
वर्तमान में पीएम नरेंद्र मोदी, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और मनमोहन सिंह के बाद कार्यालय में चौथे सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले पीएम हैं। इसमें 31 मई 2022 को जोड़ने के बाद, भाजपा का वर्तमान कार्यकाल स्वतंत्रता के बाद में गैर कांग्रेस सरकार के रूप सबसे लंबा कार्यकाल बन जाएगा। 31 मई, 2022 को पीएम मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार केंद्र में अपनी 2928 दिन पूरी करेगी। पिछली सबसे लंबी गैर-कांग्रेसी सरकार 17 मई 1996 से 21 मई 2004 तक नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के शासन के बीच थी और यह 2927 दिनों तक चली थी। लेकिन इस अवधि के बीच भारत ने 3 प्रधानमंत्री देखे- एचडी देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल और अटल बिहारी वाजपेयी । जबकि 2014 के बाद, केंद्र में भाजपा का शासन है, जो एकमुश्त बहुमत और सिर्फ एक प्रधानमंत्री यानी नरेंद्र मोदी के रूप में हैं।
आंकड़ों के अनुसार, 1996 में कांग्रेस ने 140 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि भाजपा को 161 सीटें मिली थी और अटल विहारी वाजपेयी ने अल्पकालिक सरकार बनाई। वहीं, 1998 में कांग्रेस 141 सीटें मिली जबकि भाजपा गठबंधन ने 286 सदस्यों के साथ सरकार बनाई। 1999 में भी ऐसा ही हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी ने फिर से पदभार संभाला। लेकिन एक विशाल नेता के रूप में पीएम मोदी के आने के बाद भाजपा का इतिहास कुछ अलग हो हो गया है। NDA गठबंधन भले ही केंद्र में शासन कर रहा हो, लेकिन संख्या की ताकत को देखें तो भाजपा अकेले भी सक्षम है, क्योंकि जहां एक ओर 2014 में उसे 282 सीटों पर जीत हासिल हुई थी तो वहीं वर्ष 2019 में यह संख्या 303 सीटों के साथ पुनः बढ़ गई। सौ बात की एक बात यह है कि यह पीएम मोदी के करिश्माई नेतृत्व का ही परिणाम है जो वो कांग्रेस के सभी पुराने रिकॉर्डों को ध्वस्त कर एक नई तस्वीर रच रहे हैं और इसी के परिणामस्वरूप दो माह बाद, भाजपा केंद्र में सबसे लंबे समय तक गैर-कांग्रेसी शासन होने का नया रिकॉर्ड बनाने के लिए पूरी तरह तैयार है।
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