सूप बोले तो बोले छन्नी भी बोले, जा में 72 छेद, बहुत नाइंसाफी है। सहिष्णु बनने के ज्ञान ने वैसे ही भारत को ऐसे मुहाने पर ला खड़ा कर दिया है कि उसके आराध्य सामने हैं पर वो उन्हें पूज नहीं सकता। इसी क्रम में ज्ञान बिखेरने के लिए “मैं कौन- खामखां” के साथ रॉकस्टार गॉडमैन सद्गुरु आ गए और मंदिर के अस्तित्व को मध्यस्तता के चोले से ढकने का काम करने लगे।
इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे सद्गुरु अपनी ही भद्द पिटवाने पर तुले हुए हैं और क्यों मंदिरों के मामले उन्हें अपना मुंह बंद ही रखना चाहिए।
ऐसे आध्यात्म का क्या फायदा है?
ऐसे आध्यात्म का क्या फायदा जो आस्था को ही गौण सिद्ध कर दे। ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलना इस बात को प्रमाणित तो कर ही चुका है कि क्यों नंदी अब तक केवल इंतज़ार करते रहे और क्यों उनकी दिशा अब तक मंदिर में हो रहे दर्शन के समय उलटी दिशा में विराजती दिखती थी। अब यदि सर्वे को भी निराधार बताने वाली गैंग के साथी हैं सद्गुरु तो वो यह बता दें। अन्यथा प्रिय रॉकस्टार गॉडमैन सद्गुरु, आप ऐसे हमें हमारे मंदिरों को पुनः प्राप्त करने से नहीं रोक सकते क्योंकि यह आपके अधिकार क्षेत्र में ही नहीं आता है।
I think for iconic places, communities should sit and talk and find a solution once and for all: @SadhguruJV to @rahulkanwal.#Davos #WEF22 #WorldEconomicForum #GyanvapiMosquerow pic.twitter.com/x0r5ayrqGr
— IndiaToday (@IndiaToday) May 22, 2022
दरअसल, इंडिया टुडे को दिए गए साक्षात्कार में रॉकस्टार गॉडमैन सद्गुरु ने ज्ञान की गंगा बहाते हुए कहा कि, हजारों मंदिर तोड़े गए थे। लेकिन तब उन्हें नहीं बचाया जा सका। अब उस बारे में बात करने का कोई फायदा नहीं क्योंकि इतिहास को कभी फिर नहीं लिखा जा सकता। वे कहते हैं कि दोनों समुदाय को साथ बैठकर फैसला लेना चाहिए कि किन दो तीन जगहों को लेकर विवाद है, फिर सभी का एक साथ एक बार में ही समाधान निकाल लेना चाहिए। एक बार में सिर्फ एक विवाद पर मंथन कर विवाद को बढ़ाने का कोई फायदा नहीं है। कुछ लेना कुछ देना जरूरी रहता है, इसी तरीके से कोई देश आगे बढ़ सकता है। हर विवाद को सिर्फ हिंदू-मुस्लिम के चश्मे से देखने की जरूरत नहीं है।”
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मलतब करना क्या चाहते हो भाई?
वाह मान्यवर, ज्ञान की उलटी गंगा और आपके तथ्य आपको ही मुबारक। एक ओर हजारों मंदिर तोड़े गए इस बात को मान रहे हैं और आने वाले भविष्य में ऐसा न हो उसके लिए न्यायिक मदद ली जा रही हो उसे भी अपने ज्ञान से ढकना चाह रहे हैं, मलतब करना क्या चाहते हो भाई? एक ओर मध्यस्तता की नौटंकी करने पर बल दे रहे हैं, दूसरी ओर यह नहीं दिख रहा कि मामला कोर्ट में अंतिम निर्णय अब भी विचाराधीन है। उसके बावजूद यदि रॉकस्टार गॉडमैन सद्गुरु बाहर से मध्यस्तता का राग अलाप रहे हैं तो निस्संदेह यह उनके अबोध बालक वाली बुद्धि की ओर सबका ध्यान आकर्षित कर रहा है। जिस मामले में सामने से टिप्पणी करने से हर वर्ग बचता है, उस पर रॉकस्टार गॉडमैन सद्गुरु अपनी विद्वान सोच का महिमा मंडन करने का प्रयास कर रहे हैं, क्यों भई ताकि शांतिदूत खुश हों, शाबाशी दें?
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ऐसे तत्वों को यह नहीं समझ आता कि यह शांतिदूत इतनी ही मध्यस्तता से मानते तो अब तक अनन्य प्रकरणों में हिन्दू धर्म को नीचा न दिखाते। निश्चित रूप से इस बयान के पीछे सद्गुरु का वो स्वार्थ निहित हो सकता है जिससे वो अंततः ख्याति बढ़ाने की ताक में थे। ज्ञात हो कि राम जन्मभूमि विवाद के समय भी आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर मध्यस्त बने थे, यही सोच शायद सद्गुरु पाल बैठे हों तभी तभी तो मध्यस्तता कर लो, मध्यस्तता कर लो का राग अलापना शुरू कर दिए। सौ बात की एक बात यह है कि, भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म जितनी सहिष्णुता दिखा चुका है वो बहुत है।
अब समय आ गया है कि साक्ष्यों पर बात हो और तथ्य के आधार पर न्यायिक रूप से न केवल काशी वाले इस मुद्दे पर बल्कि देशभर में जहां भी ऐसे कृत्य हुए हो सभी पर काम करने का सही समय आ गया है और अब कोई गीदड़ आकर हिन्दू मंदिरों के दावे को धकेल नहीं सकता, यदि वो आधार सत्यता पर किया गया है तो वास्तविकता तो यह है कि अब कोई भूत-पिसाच या नीच उस दावे को धूमिल नहीं कर सकता।