जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता है। कुछ ऐसा ही हाल उन कट्टरपंथियों का हुआ था जो इतने तैश में आ गए कि शिव के अस्तित्व पर ही प्रश्न उठाने लगे वो भी उस स्थान पर जहां शिव के अतिरिक्त कुछ और न कभी कुछ था और न ही होगा।
इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे इस बात की पोल खुलने लगी है कि काशी विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा ज्ञानवापी मस्जिद के नाम पर हथिया लिया गया और कैसे आतताइयों के कुकृत्य का क्रूर इतिहास सबके सामने आने को आतुर है।
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औरंगजेब ने मंदिर पर अंतिम हमला किया
क्या हुसैन शाह शर्क, क्या औरगजेब, क्या सिकंदर लोदी, जहां इन सभी के शासन के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त किया गया तो वहीं अंतिम हमला मुगल तानाशाह औरंगजेब ने किया था। इसके बाद औरंगजेब ने उस स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया।
काशी में स्थित वर्तमान मंदिर पूजा का मूल स्थल नहीं है। मूल मंदिर बर्बरता के प्रतीक के तहत स्थित है जिसे औरंगजेब ने बनवाया था और जिसे उसने ज्ञानवापी मस्जिद का नाम दिया था। अचंभे की बात यह है कि मुगल तानाशाह इतना काइयां और आलस्य से भरा बैठा था कि उसने मस्जिद का नाम भी संस्कृत से ही लिया। “ज्ञानवापी” अर्थात ज्ञान का कुआं।
इस बार शासन-प्रशासन के चाक-चौबंध इंतजाम के चलते देरी से ही सही पर सर्वे का काम शुरू हुआ और सर्वे ने सत्यता को उजागर कर ही दिया। जिस सर्वे को कट्टरपंथी समुदाय वाले टालने और उसमें व्यवधान डालने की कोशिश कर रहे थे योगी बाबा ने पर्याप्त पुलिस तैनाती कर सर्वेक्षण को समय पर पूरा करना सुनिश्चित किया।
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शिवलिंग पन्ना पत्थर का बना हुआ है
एक और जहां सर्वेक्षण पूरा हो चुका है तो उसके साथ ही इस्लामवादियों के झूठ से भी वर्षों बाद पर्दा उठ ही गया। सर्वे में कुएं के अंदर एक शिवलिंग मिला है और जो कोई आम शिवलिंग नहीं बल्कि 12 फीट से भी बड़ा है। अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार यह शिवलिंग पन्ना पत्थर का बना हुआ है जिस कारणवश उसके अस्तित्व को नकारा जाना विद्रोही पक्ष के लिए मुश्किल पड़ जाएगा। इसके बाद, वाराणसी की अदालत ने आदेश दिया कि शिवलिंग और उसके आसपास के क्षेत्र को सील कर दिया जाए और किसी को भी इसमें प्रवेश करने की अनुमति न दी जाए। वाराणसी की अदालत ने जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा को आदेश दिया कि वह इलाके को सील कर दें और क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति के प्रवेश पर रोक लगा दें।
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अब बात निकली है तो दूर तलक तो जानी ही थी। इस्लामवादियों ने जिस प्रकार यह जानते हुए कि कथित ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग विद्यमान है उन लोगों ने वहां अपना एक नमाज़- वजू अनुष्ठान करना जारी रखा, यह उसकी हीन भावना और हेय दृष्टि को प्रदर्शित करता है। ज्ञात हो कि, वजू, शरीर के अंगों को साफ करने के लिए इस्लामी प्रक्रिया है, एक प्रकार का शुद्धि अनुष्ठान। इन कार्यों में चेहरा, हाथ धोना, फिर सिर और पैरों को पानी से पोंछना शामिल है। इसलिए, मुसलमान कथित तौर पर उस स्थान पर जानबूझकर यह सब किया करते थे और ऐसी वीभत्स सोच वालों को शर्म आनी चाहिए कि वो किसी के धर्म को मात्र नीचे दिखाने के लिए इस हद तक गिर रहे हैं कि उसके आराध्य के स्थान पर ऐसे कृत्य कर रहे हैं।
इतने झूठ और ढकोसलों पर जीवित ज्ञानवापी मस्जिद को अंततः अपने असल रूप का आभास हो ही गया। सर्वे ने कई तुच्छ लोगों की पुश्तों की जबान पर ताले जड़ दिए हैं और सब झूठ बेनकाब होने के साथ ही जीते जी ऐसों की कब्र भी अंततः खुद ही गई।