“बाप का, भाई का, दादा का, सबका बदला लेगा रे तेरा ये फैज़ल…” गैंग्स ऑफ वासेपुर-2 फिल्म का ये डायलॉग अगर आपने कभी नहीं सुना है और नहीं देखा है या फिर कभी दोहराया नहीं है तो सच मानिए आप भारतीय सिनेमा, विशेषकर बॉलीवुड के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं आप। ऐसा हम नहीं कहते, अपितु बड़े बड़े किरटिक, बुद्धिजीवीगण और सेलेब्रिटी लोगन का ऐसा कहना है, जिनके लिए यही व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में सर्वशक्तिशाली, इकलौते भगवान हैं। लेकिन जो दिखता है आवश्यक नहीं वही हो
इस लेख में हम उस अभिनेता के बारे में जानेंगे जिसकी जय तो सब करते हैं परंतु क्या वे वास्तव में उस प्रशंसा के योग्य हैं जितना उन पर बुद्धिजीवियों से लेकर विश्लेषकों यानी क्रिटिक्स ने लुटाया है? हम चर्चा करेंगे कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी के बारे में जिनके बारे में तो खूब बातें होती हैं पर क्या वे वास्तव में उतने योग्य हैं या नहीं।
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मुजफ्फरनगर जिले में जन्में हैं सिद्दीकी
स्ट्रगल की एक नई परिभाषा गढ़ने वाले नवाजुद्दीन सिद्दीकी का जन्म मुजफ्फरनगर जिले के बुढ़ाना ग्राम में आज ही के दिन यानी 19 मई 1974 को हुआ था। ये एक मुसलमान जमींदार परिवार से संबंध रखते हैं और इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा उत्तराखंड में प्राप्त की। लेकिन बड़ौदा में जब केमिस्ट की नौकरी रास नहीं आई, तो वे दिल्ली में नौकरी के लिए आए और यहीं पर वे नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से जुड़ गए जहां से फिर जनाब ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इसके बाद की कथा बताने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि इसके बाद की कथा मीडिया और बुद्धिजीवियों ने इतना हमारे मस्तिष्क में ठूंस दिया है, जिसका कोई हिसाब नहीं है। लेकिन हमारा ध्येय नवाजुद्दीन भाई का स्ट्रगल नहीं बल्कि उनकी एक्टिंग है। 1990 के दशक में छोटे मोटे रोल से प्रारंभ करते हुए इन्हें काफी लंबे समय तक जो स्ट्रगल किया उसका सुखद परिणाम 2010 में मिला, जब पीपली लाइव में इन्होंने राकेश नामक पत्रकार की भूमिका निभाई।
इसके बाद तो भाईजान की निकल पड़ी। एक के बाद एक इन्हें प्रोजेक्ट मिलने लगे। छोटे मोटे फिल्म तो करते ही रहे, पर पहले ‘कहानी’ फिर ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ और फिर ‘द लंचबॉक्स’ की अप्रत्याशित सफलता ने नवाजुद्दीन सिद्दीकी को बॉलीवुड के “अनकन्वेन्शनल सुपरस्टार” का दर्जा दिलवाया यानी वह जिसे किसी विशेष पैमाने की आवश्यकता नहीं सफलता के लिए।
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सिद्दीकी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा
फिर क्या था, नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। ‘किक’, ‘बदलापुर’, ‘बजरंगी भाईजान’ जैसे फिल्मों ने इनकी एक अलग पहचान स्थापित कर दी। ‘रमन राघव’, ‘रईस’ और ‘मॉम’ जैसी फिल्मों के जरिए ये सफलता की सीढ़ी चढ़ते ही चले गए, और फिर आया OTT का महासमर, जब एक सीरीज के जरिए नवाज़ भाई ने स्पष्ट कर दिया वे वास्तव में सुपरस्टार हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं ‘सेक्रेड गेम्स’ की। एक ही वेब सीरीज ने नवाजुद्दीन सिद्दीकी को इतनी ‘स्टारडम’ दी जिससे अच्छे सुपरस्टार भी असहज महसूस करें लेकिन यहीं से इनका पतन भी प्रारंभ हुआ, क्योंकि जिस दिन अभिनेता अपने आपको स्टार समझ ले, समझ लीजिए कुछ तो गड़बड़ है बंधु।
क्या नवाजुद्दीन बुरे एक्टर हैं? नहीं, ऐसा भी नहीं है। कम से कम ‘कहानी’ में जिस प्रकार से आईबी अफसर एके खान की भूमिका उन्होंने आत्मसात की थी, उससे ऐसा तो कतई प्रतीत नहीं होता। लेकिन अभिनेता वही होता है जो अपने ऊपर किसी प्रकार के टैग या परिस्थिति को हावी न होने दे और यहीं पर नवाजुद्दीन मियां औंधे मुंह गिर पड़ते हैं।
वो कैसे? कभी केके मेनन को खराब एक्टिंग करते देखा है? कभी इरफान खान को अपने अभिनय की प्रतिभा का दुरुपयोग करते हुए देखा है? आप भी सोच रहे होंगे कि कैसी बेतुकी बातें कर रहा है, परंतु नवाजुद्दीन महोदय जरा सी सफलता पाते ही ऐसे ही अकड़ने लगे थे। जब ‘सेक्रेड गेम्स’ के द्वितीय संस्करण को लेकर आलोचना सुनने को मिली थी, तो महोदय ने इस पर आत्मवलोकन करने के बजाए कुछ यूं कहा था,
“कौन हैं ये लोग? मैं उन्हीं की आलोचना सही मानता हूं जो मेरे स्टैंडर्ड के हैं। आज तो कोई भी आलोचना करने सामने आ जाता है? हां, पता है शो थोड़ा ऊबाऊ हो गया, परंतु जो लोग आलोचना कर रहे हैं, उन्हें क्या सिनेमा की समझ भी है? मैं तभी आलोचना सह सकता हूं जब आलोचक को सिनेमा पर मेरे बराबर या मुझसे ज़्यादा ज्ञान हो। मैं किसी ‘ऐरे गैरे नथु खैरे’ को नहीं सुनूंगा। अब आज किसी ने भी आलोचना की तो वो समझ ले कि मैं एक ट्रेन्ड एक्टर हूं। मैं किसी की आलोचना नहीं सह सकता”
किस बात के मंझे हुए कलाकार हैं?
भई अगर ये टैलेंट है, तो फिर मैं भी ओलंपिक में 9 सेकेंड में 100 मीटर दौड़ सकता हूं। बोलने में क्या जाता है? बात टैलेंट की करें तो अच्छा अभिनेता वो होता है जो अपने अभिनय से सबकी बोलती बंद कर दे, और बुरा मत मानिएगा, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में चिलम फूंक कर पड़े रहना और दो चार लोगन पर दादागिरी जमाने को अगर टैलेंट कहते हैं तो फिर जेपी भाई कौन से बुरे थे?
‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ की बात छोड़िए, वहां पर मनोज बाजपई, पंकज त्रिपाठी, तिग्मांशु धूलिया, यहां तक कि जमील खान और जीशान कादरी जैसे मंझे हुए कलाकार थे, नवाजुद्दीन तो ‘रमन राघव’ और बदलापुर’ में भी धमाकेदार रोल होने के बाद भी कोई खास असर नहीं छोड़ पाए। तब उनसे कहीं अधिक युवा और अनुभव में कहीं ज्यादा पीछे विकी कौशल और वरुण धवन जैसे अभिनेताओं ने बाज़ी मार ली। जब ये इन अभिनेताओं से नहीं विजयी हो पाए तो ये किस बात के मंझे हुए कलाकार हैं?
सच कहें तो नवाजुद्दीन वो अभिनेता हैं जो अयोग्य तो नहीं है परंतु वे उतने भी चमत्कारी नहीं जितना उनके बारे में बताया गया है। योग्य अभिनेताओं की कोई कमी नहीं है, आवश्यकता है तो सही लोगों को पहचानने की जिसमें हम सदैव चूक जाते हैं। नवाजुद्दीन ऐसे ही एक अभिनेता है जिनके नाम बड़े हैं और दर्शन छोटे हैं।