रूस यूक्रेन विवाद का वर्तमान संकट तो छोटी बात है, भारत और रूस के संबंधों पर पाश्चात्य देशों की कुदृष्टि से कोई अनभिज्ञ नहीं है। उनका बस चले तो भारत को सम्पूर्ण संसार से अलग थलग करके ही दम ले, परंतु अब भारत ने भी ठान लिया है, झुकेगा नहीं! दरअसल, अमेरिका और अन्य पाश्चात्य देशों के रोष को अनदेखा करते हुए रूस से पहले तेल और अब उर्वरक यानी फर्टिलाइज़र के परिप्रेक्ष्य में भारत एक महत्वपूर्ण समझौता करने जा रहा है, जो भारत के कूटनीतिक शक्ति को भी परिलक्षित करता है।
हाल ही में भारत ने विगत कुछ माह में स्पष्ट किया है कि पाश्चात्य जगत उसे आदेश देने वाला कोई नहीं होता। इसी दिशा में एक ऐतिहासिक बार्टर समझौते के अंतर्गत भारत अब रूस से उर्वरक खरीदेगा। परंतु इस बार्टर समझौते का अर्थ क्या है? इससे हमारे कूटनीतिक संबंधों में कैसी वृद्धि होगी और भारत को क्या लाभ मिलेगा? टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, भारत रुपये में उर्वरक के उक्त मूल्य का आंकलन कर रहा है और उसी मूल्य के आवश्यक उत्पाद रूस को निर्यात कर सकता है। उर्वरक प्रतिबंधित श्रेणी में नहीं आता है और इस प्रकार वह बिना किसी समझौते और अधिनियम को तोड़े अपना काम भी निकलवा सकता है।
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भारत पर अब नहीं होता अंतरराष्ट्रीय दबाव का असर
तो फिर आखिर समस्या क्या थी? असल में अपनी कुंठा में बाइडन प्रशासित अमेरिका रूस को वैश्विक फाइनेंशियल पेमेंट सेटेलमेंट सिस्टम यानी भुगतान प्रणाली से हटाने में जुटा हुआ है। ऐसे में अगर भारत रूस से बेहतर वित्तीय संबंध चाहे भी, तो पाश्चात्य प्रतिबंध उसके लिए ये काम असंभव कर दे और तब बार्टर प्रणाली इस समस्या का निवारण करने में काम आती है। एक सरकारी अफसर ने हाल ही में कहा, “हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे व्यापारियों को रूस से इस व्यवस्था के अंतर्गत अपनी आवश्यकता अनुसार काफी सामान मिल जाएगा!”
इस व्यवस्था का लाभ अभी से भारत को मिलने लगा है। इसी माह दो रूसी जहाज़ अब तक लगभग 1.16 लाख टन NPK (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटैशियम) जैसे उर्वरक भारत लाए हैं, जबकि एक तीसरा जहाज़ 66,000 टन Di Ammonium Phosphate अब तक भारत ला चुका है। पिछले माह भारत सरकार ने सूचित किया कि उन्हें अब तक रूस से 24 फरवरी से 3.6 लाख टन उर्वरक की आपूर्ति प्राप्त हो चुकी है। ध्यान रहे कि 24 फरवरी से ही रूस यूक्रेन विवाद ने हिंसक झड़प का रूप ले लिया था।
अब भारत ठहरा एक कृषि प्रधान देश, जो चीन के बाद सबसे अधिक उर्वरक आयात करता है। हमारे लगभग 2.7 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने में 15 प्रतिशत का योगदान कृषि क्षेत्र का भी है। ऐसे में उर्वरक तो चाहिए ही चाहिए। परंतु रूस यूक्रेन विवाद से सारा मामला बिगड़ गया है। ऐसे में भारत को चाहिए था कि वह अपने किसानों के लिए कुछ ऐसा करे कि उनकी आवश्यकताएं भी पूर्ण हो और उन्हें पाश्चात्य जगत की जी हुज़ूरी भी न करनी पड़े। वर्तमान में हुआ बार्टर समझौता इसी का प्रत्यक्ष प्रमाण है, और इससे मोदी सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया है कि जब बात भारतीयों के हित की हो, तो प्रोटोकॉल और अंतरराष्ट्रीय दबाव गया तेल लेने।
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