कहते हैं कि कानूनों की यातना से अधिक बुरी कोई वेदना नहीं होती. किसी भी राष्ट्र की तरक्की के लिए. किसी भी राष्ट्र की शांति और समृद्धि के लिए सही कानून का होना सर्वप्रथम अनिवार्यता होती है. कानून तय करता है कि किसी भी देश के नागरिक किस तरह से व्यवहार करेंगे.
कानून ही समाज के नैतिक विकास को भी प्रदर्शित करता है. लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में लोगों के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की यह जिम्मेदारी होती है कि समाज के ढांचे के अनुसार, समाज की इच्छा के अनुसार वो नए कानून बनाएं, बने हुए कानूनों में बदलाव करें और जरूरत पड़े तो कानूनों को वापस भी लें.
ऐसे में आज इस देश की सरकार को यह समझने की जरूरत है कि कुछ कानूनों को ख़त्म करने की, कुछ कानूनों में बदलाव करने की शख्त ज़रूरत है. आइए, हम आपको बताते हैं कि किन कानूनों पर सरकार को काम करने की जरूरत है.
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आर्टिकल 25
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 ‘सभी व्यक्तियों’ को धर्म के प्रचार की स्वतंत्रता प्रदान करता है. इसका आशय यह है कि कोई भी धार्मिक समुदाय दूसरों को अपने धर्म का पालन करने के लिए राजी कर सकता है. ‘मिशनरियां’ दो तरह से लोगों का धर्मांतरण करती हैं. पहला तरीका है लोगों को राजी करके और दूसरा तरीका है जबर्दस्ती धर्मांतरण कराकर. भारत में धर्मांतरण का इतिहास उठाकर अगर देखा जाए तो समझ आता है कि बहुत कम धर्म हैं जो धर्मांतरण के लिए ‘हिंसक’ या फिर ‘जबर्दस्ती’ वाला तरीका अपनाते हैं.
‘मिशनरियां’ संविधान के अनुच्छेद 25 का दुरुपयोग करते हुए हिंदुओं का धर्मांतरण कराती हैं. एक तरह से मिशनरियों ने संविधान के अनुच्छेद 25 का दुरुपयोग अपने धर्मांतरण के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया है. हालांकि कुछ राज्यों ने अवैध धर्मांतरण के विरुद्ध कानून बनाए हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. ऐसे में सरकार को तुरंत आर्टिकल 25 पर विचार करने की जरूरत है.
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हिंदू घोषित हो अल्पसंख्यक
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम-1992, संविधान के तहत प्रदान किए गए अल्पसंख्यकों के अधिकारों को नियंत्रित करता है. अधिनियम की धारा 2 (C) में कहा गया है कि इस अधिनियम के उद्देश्य के लिए ‘अल्पसंख्यक’ का अर्थ केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित समुदाय है. यहीं एक बड़ी समस्या खड़ी होती है, अल्पसंख्यक दर्जे से संबंधित सरकार की अधिसूचनाएं मुख्य तौर पर राष्ट्रीय आधार पर संख्यात्मक गणनाओं पर आधारित होती है. यह इस तथ्य को जानने के बाद भी होता है कि करीब-करीब 9 राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं.
राज्य/केंद्र शासित प्रदेश | कितने फीसदी हिंदू |
लद्दाख | 12.11 |
मिजोरम | 2.75 |
लक्षद्वीप | 2.77 |
जम्मू और कश्मीर | 28.8 |
नागालैंड | 8.75 |
मेघालय | 11.53 |
अरुणाचल प्रदेश | 29.04 |
पंजाब | 38.49 |
मणिपुर | 41.39 |
राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदुओं की जनसंख्या
इन 9 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में तो साफतौर पर हिंदू अल्पसंख्यक हैं, इसके साथ ही दूसरे राज्यों के आंकड़े भी सरकार को देखने चाहिए। इसके बाद राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम-1992 की धारा 2 (C) का इस्तेमाल करते हुए सरकार को इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देना चाहिए.
समान नागरिक संहिता
वर्षों से इस देश में राजनीतिक पार्टियां धार्मिक तुष्टीकरण करती आईं हैं. इस तुष्टीकरण की वजह से आधुनिक संवैधानिक सिद्धांत कुछ समुदायों ने नकार दिए या फिर कहिए कि उन तक पहुंचे ही नहीं. वर्षों से कई धार्मिक समुदाय अपने-अपने पर्सनल लॉ को मानते आए हैं और उसी को बढ़ावा देते आए हैं. इस कारण मध्यकालीन मानसिकता ने इन समुदायों को अपनी चपेट में ले लिया है. यही कट्टरवादी सोच समाज में संघर्ष पैदा कर रही है. ऐसे में धार्मिक समुदाय को कानून के आधुनिक सिद्धांतों से परिचित कराना बहुत महत्वपूर्ण है. सरकार को पर्सनल लॉ को इस देश से खत्म करना चाहिए और सभी समुदायों को एक जैसे कानून के अंतर्गत लाना चाहिए. ऐसे में सरकार को वक्फ एक्ट-1995 को तुरंत वापस लेना चाहिए.
वक्फ एक्ट-1995 जैसे कानून विभिन्न समुदायों के लिए अलग-अलग सिद्धांत बनाते हैं अंतत: लोगों के अंदर चरमपंथी विचारों का विकास होता है. इसके अलावा, ऐसे कानून दूसरे धार्मिक समुदायों के साथ भेदभाव भी पैदा करते हैं. ऐसे में सरकार को तुरंत ऐसे धार्मिक कानूनों को वापस लेना चाहिए और सभी धर्मों को एक समान कानून के अंतर्गत लाना चाहिए. इसकी मांग पिछले कई वर्षों से उठ रही है. हाईकोर्ट भी कई बार सरकार से कह चुके हैं कि देश में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है. ऐसे में सरकार को तुरंत इस तरफ ध्यान देना चाहिए.
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