Modi@8: मोदी सरकार के 8 साल के कार्यकाल में गृह मंत्रालय की उपलब्धियां

गृह मंत्रालय ने इन 8 वर्षों में किया शानदार कार्य !

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Source-TFIPOST.in

मोदी सरकार के 8 साल पूरे हुए। पिछले 2921 दिन (८ साल) काफी उथल-पुथल भरे रहे। इस अवधि के दौरान सरकार ने काफी उतार-चढ़ाव देखे। लेकिन, मीडिया कवरेज पर आधारित दृष्टिकोण आपको बताएगा कि वामपंथी स्पेक्ट्रम द्वारा इस कार्यकाल का भरपूर नकारात्मक चित्रण किया गया जबकि यह एक उपलब्धि थी। आइए, पिछले 8 वर्षों के दौरान गृह मंत्रालय की प्रमुख उपलब्धियों परएक नजर डालते हैं।

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विनाश के कगार पर है वामपंथी उग्रवाद

प्रभावी और सशक्त गृह मंत्रालय ने ‘लाल गलियारे’ के दुस्वप्न को धुल धूसरित कर दिया। वामपंथी उग्रवाद का मुकाबला करने के लिए दो मोर्चे की रणनीति अपनाई गई। सरकार ने देश के आखिरी नागरिक तक लाभ पहुंचाने के लिए अथक प्रयास किये। गृह मंत्रालय ने गरीबी को खत्म करने में लगे हर सरकारी अधिकारी को सुरक्षा कर्मचारी और मंत्रिस्तरीय समर्थन प्रदान करके इसे पूर्ण बैकएंड समर्थन प्रदान किया जिससे गरीबों का लाल सलाम के प्रति मोह भंग हुआ। इससे इन चरमपंथियों द्वारा भर्ती किए जाने वाले लोगों की संख्या में स्वत: ही कमी आ गई।

गृह मंत्रालय मौजूदा विद्रोहियों के लिए आत्मसमर्पण-सह-पुनर्वास नीति भी लाया। 2021 तक करीब 8,000 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। तेजी से समावेशी आर्थिक विकास के मद्देनजर यह संख्या केवल बढ़ने की उम्मीद है। इस बीच, नक्सलियों की श्रेणी में ऐसे तत्व भी थे जो मुख्यधारा में शामिल होने के इच्छुक नहीं थे क्योंकि उनमें से अधिकांश हिंसा के प्रत्यक्ष संपार्श्विक लाभार्थी थे। इन तत्वों को खत्म करने के लिए गृह मंत्रालय ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के प्रमुख इलाकों में उग्रवाद विरोधी अभियान चलाया। 2014 से 2019 के बीच सुरक्षाबलों ने करीब 900 नक्सलियों को ढेर किया। 2010 में 96 जिलों की तुलना में, वामपंथी उग्रवाद अब घटकर 41 जिलों तक पहुंच गया है। परिणामतः, वामपंथी चरमपंथियों की संख्या घटकर प्रति वर्ष तीन अंकों के निचले पायदान पर आ गई है।

कश्मीर में शांति

कश्मीर पिछले 7 दशकों का सबसे बड़ा ज्वलंत मुद्दा रहा है। कश्मीरी पंडितों के पलायन पर अंकुश लगाने में गृह मंत्रालय की विफलता अभी भी इसकी विरासत पर सबसे बड़ा धब्बा है। इसी तरह, जब राजनाथ सिंह ने कार्यभार संभालातो उन्हें जम्मू-कश्मीर में बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, विशेष रूप से इस क्षेत्र में पथराव करने वालों और भारत विरोधी भावनाओं पर अंकुश लगाने के सन्दर्भ में गृह मंत्रालय ने पहले सुरक्षा तंत्र को कड़ा किया और घाटी में निरंकुश स्तर की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया। इससे आतंकवादी समूहों के बीच का संचार नेटवर्क टूट गया। अगले 5 वर्षों तक राजनाथ सिंह ने मोदी सरकार को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने में सक्षम बनाने के लिए एक ठोस आधार बनाया। कश्मीर में कट्टरपंथी तत्वों को यह अंदाजा हो गया था कि अब उनके इट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा।

इसी कारण जब अनुच्छेद 370 को अंततः नियम पुस्तिका से बाहर कर दिया गया, तो कश्मीर घाटी शांतिपूर्ण रही। अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय ने अगले 2 वर्षों तक अपने बढ़े हुए निगरानी नेटवर्क के माध्यम से कड़ी निगरानी रखी। कट्टरपंथी ट्यूमर को कैंसर में विकसित न होने देने के लिए मंत्रालय ने अपनी लोकतांत्रिक क्षमता में सब कुछ किया। अब, तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य का पूरा भूगोल कुल मिलाकर शांतिपूर्ण है और जल्द ही गृह मंत्रालय के तहत कड़ी निगरानी में बड़े निवेश क्षेत्र में मानव विकास और प्रगति को बढ़ावा देने के रास्ते पर हैं।

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पूर्वोत्तर में अशांति कम हुई है

मोदी सरकार से पहले जब लोग पूर्वोत्तर की बात करते थे तो उनका अवचेतन मन उन्हें दूसरे राज्यों से कुछ अलग मानता था। जाहिर है, विभाजनकारी गुट ने स्थानीय लोगों पर गहरा प्रभाव डाला था। नतीजतन, विद्रोह हमेशा पनप रहा था और विभिन्न समूहों को मेज पर लाने के सारे प्रयास विफल रहे थे। वहीं गृह मंत्रालय ने उनके सिर पर सीधे कील ठोक दी। गृह मंत्रालय नें बल के साथ बुद्धि का भी परिचय देते हुए नागालैंड के राष्ट्रवादी समाजवादी परिषद के विभिन्न गुटों को हिंसा रोकने और शांति वार्ता करने के लिए मना लिया। वर्तमान में, NSCN (I-M) समूह ने अनिश्चित काल के लिए हिंसक रणनीति को लगभग छोड़ दिया है, जबकि अन्य गुट सरकार के साथ लगातार बातचीत कर शांति संधियों को नियमित आधार पर एक वर्ष की अवधि के लिए बढ़ा रहे हैं। जल्द ही स्थाई समाधान निकाला जाएगा। क्षेत्र के अन्य राज्यों में हिंसा समूहों ने भी भारत के साथ हिंसक विरोध को स्थगित करयह संकेत दिया है की वे भारत की विकास प्रक्रिया में भाग लेने के इच्छुक हैं।

इसके अतिरिक्त, गृह मंत्रालय ने इस क्षेत्र में भारी सुरक्षा तैनात की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पूर्वोत्तर के लोगों को भारत की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए डिज़ाइन की गई विकासात्मक परियोजनाओं में बाधा न आए। पूर्वोत्तर राज्य में हिंसा का स्तर अब तक के सबसे निचले स्तर पर होने के कारण इसका फल मिला है। प्रोत्साहन के रूप में, सरकार ने प्रमुख क्षेत्रों से AFSPA में ढील देने का निर्णय लिया।

भारतीय राजनीति में विदेशी हस्तक्षेप पर अंकुश

अंग्रेजों चले गए, लेकिन उन्होंने अपने सहयोगियों को विदेशी गैर सरकारी संगठनों के रूप में छोड़ दिया। समय के साथ, ये लोग भारत की शांति और स्थिरता के प्रमुख विरोधी बन गए। वे विदेशी धन प्राप्त करते थे और शांति और समृद्धि को अस्थिर करने के लिए सक्रिय रूप से काम करते थे। उनके वित्त पोषण के स्रोत पर सख्त नियंत्रण रखना अवश्यंभावी हो गया। राजनाथ सिंह ने विदेशी नियंत्रण और विनियम अधिनियम (FCRA) के सख्त कार्यान्वयन की देखरेख शुरू की। इसके माध्यम से, मंत्रालय ने कई गैर सरकारी संगठनों के वित्त पोषण को लगभग रोक दिया। अगस्त 2019 तक, गृह मंत्रालय ने FCRA अधिनियम के तहत 14,500 से अधिक गैर सरकारी संगठनों को विदेशी धन प्राप्त करने से रोक दिया था। लेकिन, आस्तीन में और भी सांप बच गए थे जिन्हें सख्त मानदंडों की आवश्यकता थी।

अतः, अमित शाह के तहत, MHA ने तब मौजूदा FCRA स्कीम में एक महत्वपूर्ण संशोधन के लिए एक प्रस्ताव भेजा। इसने इन गैर सरकारी संगठनों पर सख्त अंकुश लगाया। विभिन्न डेटा सेट से संकेत मिलता है कि कम से कम 20,000 गैर सरकारी संगठनों को गृह मंत्रालय से एकमुश्त प्रतिबंध के आदेश दिए गए हैं। ऑक्सफैम जैसे एनजीओ के कई बड़े अधिकारी कम नियमन के लिए रोते रहे हैं, लेकिन उनकी एक ना सुनी गयी। दरअसल, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने रडार के दायरे में आने से पहले ही भारत से भागने का फैसला कर लिया।

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भारत का शिकार करने वाले आतंकियों को खामोश कर दिया गया

जब मोदी सरकार सत्ता में आई, तो देश बड़े पैमाने पर आतंकवादी हमलों से त्रस्त था। यूपीए शासन के दौरान, देश में 2008 के मुंबई हमलों सहित कम से कम 19 बड़े आतंकवादी हमले हुए थे। लेकिन, वोट बैंक की राजनीति के कारण, सरकार कट्टरपंथी इस्लामवाद पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर सकी। मोदी सरकार के तहत गृह मंत्रालय को इन्हें रोकने की खुली छूट दी गई थी। गृह मंत्रालय ने कश्मीर, पंजाब और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों में आतंकी संदिग्धों पर लगातार छापेमारी करके पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूहों की कमर तोड़ दी। पकड़ा गया लगभग हर एक आतंकवादी अपने मालिक की नापाक मंशा को अंजाम देने के बहुत करीब था।

मूल रूप से, आतंकवादियों को आम नागरिकों को निशाना बनाना भी मुश्किल हो रहा है जबकि यूपीए शासन के दौरान वो भारत की आर्थिक राजधानी पर हमला करने से भी नहीं हिचकते थे। यही मुख्य कारण है कि वे उरी और पठानकोट प्रकार के हमलों को अंजाम देकर रक्षा प्रतिष्ठानों से प्रतिशोध लेने का प्रयास करते हैं। यह संकेत देना है कि लोगों को उन्हें हल्के में नहीं लेना चाहिए। लेकिन, उन हमलों को भी आसानी से अपवाद माना जा सकता है। उनके इस दुस्साहस के कारण सुरक्षा व्यवस्था अत्यंत कड़ी कर दी गई है और पठानकोट के बाद देश में कोई आतंकी साजिश नहीं रची गई है।

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पीएम मोदी के 8 साल शायद गृह मंत्रालय का सबसे सक्रिय चरण रहा है। निश्चित रूप से नौकरशाहों की नींद उड़ी हुई थी,यह उनकी कर्तव्यपारायणता का प्रतीक है। लेकिन, यह एक तथ्य है कि 1.35 अरब भारतीय नियमित रूप से शांति से सोते हैं। यह पूरे देश के लिए एक बड़ी राहत है।

 

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