अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने वालों को कौन ही रोक सकता है और फिर जब बात कुशासन कुमार उर्फ़ नीतीश कुमार की आती है तो उनके संदर्भ में तो यह बात अत्यधिक प्रासंगिक लगती है! तकनीकी रूप से उम्रदराज़ नीतीश कुमार, राजनीतिक रूप से अबोध बालक होने के साथ ही षड्यंत्रकारी भी हैं और यह कई बार प्रदर्शित हो चुका है। अपने घटक दल से मैत्रीपूर्ण संबंध कैसे निभाएं इसकी शिक्षा न ही कभी जदयू सुप्रीमो और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश बाबू ने ली है और न ही उसका अनुसरण करने में उन्हें लेश मात्र भी रुचि है। अब जिस व्यक्ति को व्यवहारिकता का पाठ कभी समझ ही नहीं आया उससे विश्वसनीयता की क्या ही उम्मीद की जा सकती है। इसी बीच खबर है कि कुशासन कुमार नीतीश बाबू एक फिर रसातल में कूद रहे हैं और राजद से गलबहियां कर वो पूर्ण रूप से विराम लेने की ओर अग्रसर होते दिखाई भी दे रहे हैं।
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नीतीश के मुख से RJD के विरुद्ध नहीं फूट रहे हैं शब्द
दरअसल, नीतीश कुमार की परिपक्वता और ईमानदारी पर कई बार सवाल खड़े किया जा चुके हैं, किए जा रहे हैं और आगे भी जाते रहेंगे। कोई भी ऐसा राजनेता जिसका एक लंबा और सक्रिय राजनीतिक करियर हो और वो 5 कार्यकाल से 5 बार सीएम पद की शपथ लेता आ रहा हो यह कोई आसान काम नहीं है, पर जिस हिसाब से नीतीश 17 साल से राज्य में बतौर मुख्यमंत्री सरकार चलाते आए हैं उनकी हरकतें एक प्रभावी राजनेता से इतर एक षड्यंत्रकारी और दगा देने वाले नेता की तस्दीक करती हैं! अब हालिया प्रकरण की बात करें तो जातिगत जनगणना पर जहां नीतीश कुमार और आरजेडी के दूत एकमुश्त एक पायदान पर हैं तो नई नौटंकी लालू प्रसाद एंड परिवार के 17 ठिकानों पर पड़ी रेड़ से शुरू हो गई।
जहां एक सरकार का मुखिया होने के नाते नीतीश कुमार से उम्मीद थी कि वो इसपर उग्रता से आरजेडी और लालू परिवार पर हमला करेंगे पर हुआ कुछ नहीं। राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी के लिए ऐसी रियायत नीतीश के मन में पल रहे सांप की ओर अंदेशा दे रही है। ऐसे में भाजपा जैसे साथी दल के मन में गैंग्स ऑफ़ वासेपुर का एक डायलॉग अवश्य आ गया होगा कि, “सांप पाल रहा था।” हालांकि, यह कोई पहली बार नहीं है जब नीतीश की ऐसी हरकतें बगावत की ओर अंदेशा दे रही हैं, वर्ष 2015 में भी स्वार्थ की पूर्ति के लिए एनडीए गठबंधन छोड़ नीतीश ने आरजेडी के गठबंधन में जाकर आत्मसमर्पण किया था, जिसके बाद भी सरकार नहीं चला पाए और अन्तोत्गत्वा पुनः उसी एनडीए गठबंधन में मिमियाते हुए शामिल हो गए कि “अब बचा लो मोदी जी, ब्लंडर हो गिया एकदम, भारी मिस्टेक हो गया।”
RJD के साथ जाएंगे नीतीश कुमार
यही कारण है कि ऐसे मुद्दे पर नीतीश कुमार का स्वर एक बार फिर से हल्का पड़ना और एक ही मुद्दे पर आरजेडी और नीतीश का हल्ला बोलना, इस बात को चरितार्थ करता है कि नीतीश की बुद्धि एक बार पुनः डांवाडोल होने की ओर अग्रसर है और वो पुनः आरजेडी के साथ गंठजोड़ की रणनीति की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में इस बार यह कदम नीतीश के राजनीतिक ताबूत में अंतिम कील भी सिद्ध हो सकता है क्योंकि भाजपा इस बार राज्य में जदयू से बेहतर स्थिति में है। साथ ही VIP के विधायकों का भाजपा में पदार्पण होना इस बात को स्पष्ट भी करता है कि नीतीश बाबू ने इस बार ज़्यादा लिबिर-लिबिर करी तो उन्हें मुंह की खानी पड़ेगी। वहीं, रही बची कसर आरजेडी में जाकर पूरी हो ही जाएगी क्योंकि लालू के दोनों बेटे अंतर्मन से नीतीश से पहले से ही खार खाए बैठे हैं। ऐसे में अबकी बार भागने वाला कदम नीतीश की लंका दहन करने के लिए काफी होगा। ऐसे में न माया मिलेगी न राम और कुशासन बाबू को राजनीतिक रूप से कह दिया जाएगा “जय श्री राम।”
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