आपने तो सुना ही होगा जब जहाज डूब रहा हो, तो चूहे सर्वप्रथम जहाज़ छोड़ने लगते हैं, यानि उन्हे खतरे का आभास हो जाता है और अपना प्रबंध करने में जुट जाते हैं। अब कुछ नेता राजनीति में चूहे तो बिल्कुल नहीं है, परंतु वे भली भांति भांप लेते हैं कि उनका जहाज़ डूबने को है, और वह अपनी व्यवस्था करने लगते हैं। ऐसे ही एक नेता है आरसीपी सिंह, जो नीतीश कुमार के JDU के प्रभावशाली नेता है, और इनके जाने का अर्थ स्पष्ट है – नीतीश कुमार का विनाश निश्चित है।
ये कैसे संभव है? शायद किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया है – राजनीति में कोई किसी का नहीं सगा नहीं होता, और रामचंद्र प्रसाद सिंह से बढ़िया इस बात को कौन परिलक्षित कर सकता है? क्या आरसीपी जेडीयू छोड़ चुके हैं? आरसीपी सिंह और JDU दोनों की चुप्पी और वर्तमान घटनाएँ तो इसी ओर संकेत दे रही है। आरसीपी के ट्विटर प्रोफाइल में सब कुछ लिखा हुआ है, सिर्फ पार्टी छोड़कर। ऐसे में प्रश्न तो उठने स्वाभाविक हैं।
इसके अतिरिक्त पिछले कई दिनों से आरसीपी पार्टी से काफी क्रुद्ध नजर आ रहे हैं। ये भी कह सकते हैं पार्टी नेतृत्व उनसे नाराज है। आरा के एक कार्यक्रम में भी ऐसा ही कुछ दिखा था। नीतीश के बगल में रहने वाले आरसीपी अशोक चौधरी के पास बैठे थे। यानी कि दोनों नेताओं के बीच में अशोक चौधरी थे।
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आरसीपी सिंह के बदले तेवर
अब ये वही आरसीपी हैं कि जो कभी नीतीश कुमार के विश्वासपात्र माने जाते थे, और शासन-प्रशासन के कामकाज में इनके बिन नीतीश बाबू का कामकाज नहीं चलता था। कहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कहने पर उन्होंने IAS की नौकरी से वीआरएस ले लिया और नीतीश के साथ राजनीति करने लगे। जेडीयू में शामिल होने के बाद नीतीश कुमार ने आरसीपी को कई अहम जिम्मेदारी सौंपी। राज्यसभा भेजने के अलावा पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष तक बना दिया। अब वही आरसीपी ‘JDU’ के नाम से भी परहेज करने लगे हैं।
इसके अतिरिक्त यदि आरसीपी के वर्तमान विचारों पर ध्यान दें, तो आपको पता चलेगा कि कैसे आरसीपी सिंह अब JDU से हटकर धीरे धीरे भाजपा की ओर मुड़ रहे हैं। हालिया बयान पर गौर करेंगे तो आपको भी लगेगा आरसीपी पार्टी लाइन से इतर चल रहे हैं। उदाहरण के लिए हाल ही में एक कार्यक्रम में आरसीपी ने जो बयान दिया था, वह पूर्णतया नीतीश विरोधी था। आरसीपी ने परिवारवाद पर बोलते हुए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उनके परिवार पर जमकर हमला। आरसीपी ने यहां तक कह दिया कि देश की राजनीति में परिवारवाद की नींव नेहरू के काल में ही पड़ गई थी।
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नवभारत टाइम्स के रिपोर्ट के अनुसार,
“जेडीयू से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सच्चाई यही है कि नीतीश कुमार आरसीपी से नाराज चल रहे हैं। नीतीश आरसीपी की बीजेपी से बढ़ती नजदीकियों से खुश नहीं है। शायद यही कारण है कि बिहार में सियासत करने वाले गाते चल रहे हैं ‘यार ने ही लूट लिया घर यार का’!” परंतु यह तो कुछ भी नहीं है। दरअसल, नीतीश कुमार की परिपक्वता और ईमानदारी पर कई बार सवाल खड़े किया जा चुके हैं, किए जा रहे हैं और आगे भी जाते रहेंगे। कोई भी ऐसा राजनेता जिसका एक लंबा और सक्रिय राजनीतिक करियर हो और वो 5 कार्यकाल से 5 बार सीएम पद की शपथ लेता आ रहा हो यह कोई आसान काम नहीं है, पर जिस हिसाब से नीतीश 17 साल से राज्य में बतौर मुख्यमंत्री सरकार चलाते आए हैं उनकी हरकतें एक प्रभावी राजनेता से इतर एक षड्यंत्रकारी और दगा देने वाले नेता की तस्दीक करती हैं!
अब हालिया प्रकरण की बात करें तो जातिगत जनगणना पर जहां नीतीश कुमार और आरजेडी के दूत एकमुश्त एक पायदान पर हैं तो नई नौटंकी लालू प्रसाद एंड परिवार के 17 ठिकानों पर पड़ी रेड़ से शुरू हो गई। परंतु नीतीश कुमार ने तो मानो शपथ ले ली है कि चाहे खुद का विनाश हो जाए, परंतु जातिवाद की विषबेल बिहार में लगाए बिना नहीं निकलेंगे। ऐसे में आरसीपी सिंह का JDU से संभावित रूप से अलग होना इस बात का परिचायक है कि नीतीश कुमार का विनाश निश्चित है, और इसे रोकने वाला कोई नहीं है। इसके लिए सिर्फ और सिर्फ एक ही व्यक्ति दोषी है – स्वयं नीतीश कुमार।
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