रूस-यूक्रेन के युद्ध के बीच सबसे ज्यादा जिसकी जग हसाई हुई वो है NATO संगठन। रूस और यूक्रेन के बीच बढ़ रहे तनाव को लेकर नाटो ने सचेत किया था कि वह अतिरिक्त बलों को स्टैंडबाय पर रख रहा है और पूर्वी यूरोप में अधिक जहाजों और लड़ाकू विमानों को तैनात कर रहा है लेकिन नाटो का यह बयान शिगूफा ही रह गया। रूस और यूक्रेन के बीच इतने लंबे समय से चल रहे युद्ध के बाद भी नाटो द्वारा कुछ नहीं किया गया है। नाटो अभी भी हवाई फायरिंग ही कर रहा है, जिसे रूस भी अब समझ चुका है। मौजूदा समय में नाटो की विफलता की कहानी पूरी दुनिया देख रही है, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इसी बीच अब ‘वैश्विक नाटो’ की बात भी चलने लगी है। जी हां, आप बिल्कुल सही पढ़ रहे हैं! दरअसल, ब्रिटिश विदेश सचिव लिज़ ट्रस ने “वैश्विक नाटो” के निर्माण का आह्वान किया है। उनके अनुसार हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में सुरक्षा को नियंत्रित करने के लिए संगठन का विस्तार आवश्यक है। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि इस तरह के विस्तार का अर्थ दुनिया के अन्य हिस्सों के देशों को गठबंधन में सदस्यता प्रदान करना नहीं है।
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नाटो की विफलता के बाद अब वैश्विक नाटो पर जोर
ब्रिटिश विदेश सचिव की टिप्पणी पश्चिमी देशों के उस तर्क के रूप में सामने आई है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन युद्ध जीतने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और इन्हें किसी अन्य देश पर आक्रमण करने में सक्षम माना जाना चाहिए। रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन को ताइवान के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई करने के लिए प्रेरित कर सकता है। भले ही बीजिंग ने कभी भी द्वीप पर शासन नहीं किया है परंतु चीन ताइवान को अपना “ब्रेकअवे प्रांत” मानता है। ध्यान देने वाली बात है कि ताइवान में “स्वतंत्रता” की ताकतों की निंदा करते हुए, चीनी सरकार और सैन्य अधिकारियों ने सुझाव दिया है कि अगर तनाव और बढ़ जाए तो सेना का उपयोग करें।
ऐसे में पश्चिमी देशों की ओर से नाटो के विस्तार को लेकर चाल चली जा रही है। “वैश्विक नाटो” के बारे में ट्रस की टिप्पणी अब सामने आई है, लेकिन कुछ इसी तरह का संदेश ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन द्वारा फरवरी में म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में दिया गया था। वैश्विक नाटो के आह्वान के साथ-साथ ट्रस ने पश्चिमी सहयोगियों से यूक्रेन को युद्धक विमानों की आपूर्ति करने का भी आह्वान किया। उन्होंने तर्क देते हुए यह कहा कि रूस के खिलाफ राष्ट्र का युद्ध “हमारा युद्ध” है क्योंकि यूक्रेन की जीत “हम सभी के लिए रणनीतिक जीत है।”
भारत को रहना होगा सावधान
आपको बताते चलें कि नाटो 27 यूरोपीय देशों, दो उत्तरी अमेरिकी देशों और एक यूरेशियन देश के बीच एक अंतर-सरकारी सैन्य गठबंधन है। यह संगठन 4 अप्रैल 1949 को हस्ताक्षरित उत्तरी अटलांटिक संधि को लागू करता है। वर्ष 1949 में इस संगठन के पास 12 संस्थापक सदस्य थे- बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य। लेकिन धीरे-धीरे उससे अन्य देश जुड़ते गए। अब ग्रीस और तुर्की (1952), जर्मनी (1955), स्पेन (1982), चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड (1999), बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया (2004), अल्बानिया और क्रोएशिया (2009), मोंटेनेग्रो (2017) और उत्तर मैसेडोनिया (2020) इसके अन्य सदस्य हैं। लेकिन इसी बीच वैश्विक नाटो की चर्चा ने कई तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं।
वैश्विक नाटो की चर्चा और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद की दुनिया भारतीय कूटनीति के लिए एक गंभीर सवाल खड़ा करेगी। ऐसे में क्या भारत को चीन का मुकाबला करने के लिए पश्चिम के साथ गठबंधन करना चाहिए? गौरतलब है कि भारत पहले से ही ‘क्वाड’ का हिस्सा है और देश लोकतंत्र, स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के विचार से खुद को प्रेरित रखता है। इसके अलावा, हिमालय और इंडो-पैसिफिक में चीन द्वारा उत्पन्न गंभीर खतरे ऐसे संगठनों में शामिल होने की मजबूरी का मार्ग प्रशस्त करेंगे। इसलिए भारत को वैचारिक गंठजोड़ के जाल में फंसने से सावधान रहना चाहिए। वहीं, वैश्विक नाटो के निर्माण के लिए यूके की विदेश सचिव की घोषणा यह दर्शाता है कि पश्चिमी वर्चस्व की हवा निकल गई है और नया युद्ध मैदान इंडो-पैसिफिक हो सकता है जिसे लेकर भारत को सावधान रहना चाहिए।
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