जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता है। जब-जब देश में विघटन हुआ वो दो बौद्धिक शक्तियों की शुरुआत से और दोनों के मतभेदों के साथ आरंभ हुआ। इसी बीच अब शिक्षण क्षेत्र से यह भिड़ंत आग की तरह प्रसारित हो रही है जहां विश्वविद्यालय के आदेश मानने से कॉलेज मात्र इसलिए मना कर रहा है क्योंकि वो अपने फेवरेटिज्म वाले एजेंडे की पूर्ति नहीं कर पाएगा। इसी क्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय और सेंट स्टीफंस कॉलेज इस समय कॉलेज की सामान्य सीटों पर प्रवेश के लिए साक्षात्कार को समाप्त करने से इनकार करने को लेकर एक-दूसरे के साथ आमने-सामने हैं। इन सीटों पर प्रवेश केवल कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट स्कोर के आधार पर किए जाने पर जोर देते हुए विश्वविद्यालय ने मंगलवार को कॉलेज को सूचित किया कि डीयू के नियमों के उल्लंघन में किए गए किसी भी प्रवेश को शून्य और अमान्य माना जाएगा।
यह सच है कि जो यथास्थिति से लाभान्वित होंगे, वे सुधारों का पुरजोर विरोध करेंगे। लुटियंस में बैठे गिने-चुने कुछ जयचंद, राजनेता और मीडिया मंडली, सरकार द्वारा लाए जाने वाले सभी सुधारों का विरोध करते आए हैं। उदाहरण के लिए केंद्र सरकार ने देश में शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए कदम उठाए। केंद्र पहली बार 34 साल के लंबे इंतजार के बाद नई शिक्षा नीति लेकर आया, लेकिन पूर्वाग्रह से ग्रसित लोगों को नई शिक्षा नीति और उसमें किए गए सुधार हज़म नहीं हुए। उसी ढर्रे पर अब सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से अलग होकर अपनी शिक्षा नीति लाने के प्रयास में अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहा है।
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DU के अल्पसंख्यक कॉलेजों में से एक है सेंट स्टीफन कॉलेज
दरअसल, सेंट स्टीफन कॉलेज सभी श्रेणियों के आवेदकों के प्रवेश हेतु साक्षात्कार के लिए 15% वेटेज बनाए रखने पर जोर दे रहा है। यह दिल्ली विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक कॉलेजों में से एक है, जिसमें अल्पसंख्यक छात्रों के लिए 50% सीटें आरक्षित हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन कॉलेजों को CUET के आधार पर ही अपनी सामान्य सीटों पर दाखिला कराने का निर्देश दिया है, जिसको अब सेंट स्टीफन कॉलेज ने अपनाने से साफ़ रूप से इनकार कर दिया है।
ज्ञात हो कि सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय का एकमात्र कॉलेज है जो ऐतिहासिक रूप से कट-ऑफ के फिल्टर को एक साक्षात्कार के साथ पूरा करता रहा है और आवेदकों में से अपने छात्रों का चयन करता है। वहीं, 1991 में सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेज के साक्षात्कार और कॉलेज की अल्पसंख्यक स्थिति के सवाल पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने उस समय एक विभाजित निर्णय 4:1 निर्णय दिया। तब न्यायमूर्ति एम कासलीवाल ने असहमति जताई और साक्षात्कार आयोजित करने के कॉलेज के अभ्यास की आलोचना की थी।
फैसले में जस्टिस कासलीवाल ने लिखा, “सेंट स्टीफंस कॉलेज में कथित तौर पर लंबे समय से चल रहे इंटरव्यू के जरिए चयन के तरीके को इतना पवित्र नहीं माना जा सकता कि इसे रद्द या बदला नहीं जा सकता, भले ही इस तरह के तरीके को मंजूरी न मिले। दिल्ली विश्वविद्यालय के डिग्री पाठ्यक्रम में प्रवेश पाने के लिए अर्हता प्राप्त करने वाले छात्र आम तौर पर 15 से 17 वर्ष की आयु के होते हैं और ऐसे छात्रों का व्यक्तित्व अभी भी विकसित होना बाकी है और इस तरह डिग्री पाठ्यक्रमों में उनके प्रवेश के लिए एकमात्र विचार होना चाहिए, योग्यता परीक्षा में उनका अकादमिक प्रदर्शन हो।”
सभी के सामने आया सेंट स्टीफंस कॉलेज का चरित्र
ध्यान देने वाली बात है कि केंद्र सरकार कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) लेकर आई, ताकि देश भर के उम्मीदवारों को एक कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट के जरिए सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में प्रवेश हेतु एक समान प्लेटफॉर्म और समान अवसर प्रदान किया जा सके। यह 13 भाषाओं में आयोजित किया जाएगा। यह विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने के लिए एक एकीकृत सरल प्रक्रिया लाने का प्रयास है। साक्षात्कार सत्र की तुलना में विषयपरक व वस्तुनिष्ठ परीक्षा अधिक पारदर्शी होती है, जहां साक्षात्कारकर्ता के पूर्वाग्रह साक्षात्कारकर्ता के अवसरों को बदल सकते हैं। साक्षात्कार की आड़ में पक्षपात और केवल गुट के उम्मीदवारों को स्वीकार करने का प्रयास होने की संभावना है।
यह देखा गया है कि कुछ शैक्षणिक संस्थानों ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है। कुछ संस्थानों ने युवा दिमाग को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए मजबूर किया है ताकि बेहतर शैक्षिक अवसर प्राप्त हो सके। इसी का एक उदाहरण यही सेंट स्टीफंस कॉलेज है जो अपनी नीतियां लाकर केंद्र को नीचा दिखाने के लिए आमदा हुआ पड़ा है, पर निश्चित रूप से इस प्रकरण में सेंट स्टीफंस कॉलेज का असली चरित्र सबके सामने आने के साथ ही ये सिद्ध हो गया कि ऐसे कॉलेजों में पढ़ाई से अधिक एजेंडे को शह मिलती है और यही छात्रों को पढ़ाया जाता है।
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