किसी ने सत्य ही कहा है, सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। ये बात कहीं न कहीं अब अमेरिकियों के विचारों में भी परिलक्षित होती है। अब आप सोचते होंगे कि यह कैसे संभव है? परंतु ये हो रहा है, क्योंकि पहली बार एक अमेरिकी को भी समझ में आया है कि POK का भारतीय होना कितना महत्वपूर्ण है, और बलूचिस्तान का स्वायत्त न होना कितना हानिकारक है।
कभी अमेरिकी नौसेना का हिस्सा एवं रिपब्लिकन पार्टी से पूर्व अमेरिकी सांसद रहे बॉब लैन्शिया ने ट्वीट किया, “आज जब अफगानिस्तान से अपने देश के असफल निकासी पर पुनर्विचार करता हूं, तो सोचता हूं कि क्या होता यदि हम वास्तव में भारत के हितैषी होते। कांग्रेस के समक्ष दिए गए अपने स्पष्टीकरण में जैसे कर्नल राल्फ पीटर्स ने संकेत दिया और जैसे मैंने भी संकेत दिया, एक स्वतंत्र बलूचिस्तान से हमें अफगानिस्तान तक स्पष्ट एक्सेस मिलता, और धूर्त पाकिस्तान पर निर्भर नहीं रहना पड़ता” –
As Col. Ralph Peters pointed out in his Congressional testimony, that I previously shared, an independent Balochistan would have provided the US direct access to Afghanistan for supplying our troops without having to rely on Pakistan who was obviously playing a double game, (2/4)
— Bob Lancia (@BobLancia) June 7, 2022
परंतु बॉब लांसिया महोदय इतने पर ही नहीं रुके। अमेरिकी नीति निर्माताओं को पाकिस्तान के प्रति अपनी अति निर्भरता और भारत के प्रति अपनी अरुचि को स्मरण कराते हुए उन्होंने आगे ट्वीट किया, “अगर गिलगिट बाल्टिस्तान क्षेत्र (POK) भारत में होता, जो एक मित्र लोकतंत्र है, तो अफगानिस्तान में स्थित अमेरिकी ट्रूप्स को किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं होती, और न ही पाकिस्तान जैसे धूर्त, अयोग्य, और अविश्वसनीय देश पर निर्भर रहना पड़ता!”
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बॉब ने अपने ट्वीट श्रृंखला में आगे ये भी लिखा, “भारत प्रशासित गिलगिट बाल्टिस्तान केवल पाकिस्तान के लिए ही नहीं, अमेरिका के सबसे बड़े शत्रु, चीन के लिए भी सामरिक और वित्तीय रूप से एक बहुत बड़ा झटका समान होता। चीन को जब अरब सागर के लिए कोई एक्सेस नहीं मिलेगा, तो उसके सभी कुटिल नीतियों पर विराम स्वत: ही लग जाएंगे, और चीन पर बिना एक भी गोली चलाए अपने आप ही उसके विनाश की कथा प्रारंभ हो जाती” –
Indian controlled Gilgit-Baltistan would also be a major blow to America's number 1 rival, China, and China's belts & roads initiative, by denying China direct access to ports on the Arabian Sea… (4/4) @ootzchakra @hindupact @VanShar1 @surinderkauldr @Lancia4Congress
— Bob Lancia (@BobLancia) June 7, 2022
एशिया में भारत के समर्थन के बिना अमेरिका का कुछ नहीं हो सकता
कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इस बात पर किसी विशेष शोध की कोई आवश्यकता नहीं। परंतु अमेरिका की अदूरदर्शी सोच के कारण जिस पाकिस्तान को समय रहते नष्ट किया जा सकता था, जिस पाकिस्तान की जड़ों को एक कली रहते समाप्त किया जा सकता था, वो अमेरिका के सींचने से एक विशालकाय आतंकी वृक्ष में परिवर्तित हो गया, जिसकी कृपा से अब अमेरिका भी खतरे में है। अमेरिका ने कभी भी भारत के समर्थन में एक बार भी अपना पक्ष नहीं रखा है, जबकि कहीं न कहीं वह भी जानता है कि यदि उसे एशिया में प्रगति करनी है, तो उसे भारत का साथ अवश्य चाहिए। परंतु, अपने नीति निर्माताओं की कुंठा के आगे अमेरिका ने सदैव अपनी भद्द पिटवाई है और भारत के ऊपर पाकिस्तान जैसे नीच, कपटी राष्ट्र को प्राथमिकता दी है।
उदाहरण के लिए वर्ष 1998 के उस युग पर दृष्टि डालिए, जब भारत ने अपने स्वाभिमान को सर्वोपरि रख परमाणु परीक्षण किया। पोखरण के द्वितीय परमाणु परीक्षण ने भारत को एक परमाणु हथियार राष्ट्र के रूप में स्थापित किया और अपने दो दुश्मन पड़ोसियों- चीन और पाकिस्तान के सामने अपनी रक्षा और बचाव पक्ष को मजबूत किया। लेकिन, यह शक्ति हासिल करने के लिए भारत को सीधे संयुक्त राज्य अमेरिका का सामना करना पड़ा। बिल क्लिंटन प्रशासन ने तब भारत के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाए थे। तब भारत को अमेरिकी और वैश्विक सहायता से वंचित कर दिया गया और वैश्विक वित्तीय संस्थानों द्वारा उधार लेने के लिए भारत को प्रतिबंधित कर दिया गया।
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प्रतिबंध लगाने वाली महिला कोई और नहीं, बल्कि तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री मेडलीन अलब्राइट थी। उन्होंने तब भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों को “भविष्य के खिलाफ एक अपराध” के रूप में वर्णित किया था। वह एक ऐसा युग था जब अमेरिका में प्रतिबंधों के अत्यधिक उपयोग को अप्रभावी माना जा रहा था। हालांकि, अलब्राइट ने यह सुनिश्चित किया कि भारत का अर्थतंत्र घुटनों पर आ जाए और जल्द ही बिल क्लिंटन प्रशासन के अन्य अधिकारी भी उनके द्वारा सुझाए गए प्रतिबंध थोपने पर सहमत हो गए थे। ये अलग बात थी कि इनकी धमकियां और इनके प्रतिबंध फुस्स पटाखे सिद्ध हुए। अब चाहे दबी जुबां में ही सही, पर अमेरिकी राजनीतिज्ञों को भी स्वीकारना पड़ रहा है कि भारत को अपनी विदेश नीति में प्राथमिकता न देना उनके लिए कितना हानिकारक सिद्ध हो रहा है।
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