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ओ कूप मंडूको! ISRO को वैज्ञानिक हिंदू पंचांग का प्रयोग क्यों नहीं करना चाहिए?

कुछ मूर्ख आर. माधवन को इस बात पर ट्रोल कर रहे हैं!

Aniket Raj
द्वारा Aniket Raj
26 जून 2022
in चर्चित
0
Madhvan ISRO

Source- TFIPOST.in

1.2k
व्यूज़
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कुछ लोगों को अजीब ही बीमारी होती है, कोई भी वस्तु यदि विदेशी होती है, तो चाहे कबाड़ भी हो, तो सर आँखों से नवाओ, परंतु यदि कोई वस्तु सार्वभौमिक हो, क्रांतिकारी हो, कल्याणकारी हो, परंतु स्वदेशी हो, तो वह अयोग्य है, अस्पृश्य है। हाल ही में चर्चित कलाकार आर माधवन अपनी बहुचर्चित फिल्म ‘रॉकेट्री – द नम्बी इफेक्ट’ के प्रोमोशन के लिए काफी प्रचार प्रसार कर रहे हैं, जो 1 जुलाई को विभिन्न भाषाओं में सिनेमाघरों में प्रदर्शित होगी। ये फिल्म पूर्व इसरो वैज्ञानिक एस नम्बी नारायणन के बारे में है, जिन्हे झूठे आरोपों के आधार पर शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, और जिस केस के कारण भारतीय स्पेस प्रोग्राम 20 वर्षों तक रुका रहा था।

परंतु माधवन इसलिए अभी चर्चा में नहीं है। उनकी हाल ही में अभी एक क्लिप वायरल हुई है, जो भले ही तमिल में है, परंतु इसमें उन्होंने कहा है कि इसरो ने मंगल मिशन हेतु हिंदू पंचांग का इस्तेमाल कर पीएसएलवी सी-25 रॉकेट के सफल प्रक्षेपण किया गया था।

और पढ़ें: Shri Sheetla Mata Chalisa Chaupai, शीतला अष्टमी का महत्व एवं पूजा विधि

अभिनेता के अनुसार, “इसरो के पास तीनों प्रकार के इंजन (ठोस, तरल और क्रायोजेनिक) नहीं थे. यही इंजन पश्चिमी रॉकेटों को मंगल की कक्षा में ले जाने में मदद करते हैं। लेकिन, भारत के पास यह नहीं था. अतः, उन्होंने हिंदू पंचांग में मौजूद सभी सूचनाओं का उपयोग किया। इन पंचांगों में विभिन्न ग्रहों की सभी जानकारी, आकाशीय नक्शा, गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के साथ साथ सौर उर्जा विक्षेपण इत्यादि की गणना भी 1000 साल पहले ही कर ली गई थी और इसलिए हिन्दू पंचांगम में मौजूद जानकारी का उपयोग करके माइक्रो-सेकंड लॉन्च की गणना की गई थी। प्रक्षेपित राकेट पृथ्वी, चंद्रमा और बृहस्पति के चंद्रमा को पार करते हुए मंगल की कक्षा में स्थापित हो गया”।

Its impossible to correct all blunders said by @ActorMadhavan, but here are a few.
1. None attempted 30 times to send a satellite to orbit mars, 17 out of USA's 22 mars missions were success.
2. In 1976 itself Nasa's Viking 1 landed on Mars, Mangalyaan in 2014 is just an orbiter. https://t.co/WLQBgVJDl4

— Arjun Ramakrishnan ☭ (@aju000) June 24, 2022

अब कुछ स्वयंभू वैज्ञानिकों को यह बात अच्छी नहीं लगी, और फिर माधवन को नीचा दिखाने की तो रीति सी प्रारंभ हो गई। एक व्यक्ति ने लिखा- “इस व्यक्ति को देखकर अति निराशा हुई. तमिल रोमांटिक फिल्मों का पोस्टर बॉयएक व्हाट्सएप अंकल में बदल गया।”

एक अन्य यूजर ने लिखा- “आर. माधवन औपचारिक रूप से एक चॉकलेट बॉय से व्हाट्सएप अंकल बन गए हैं।”

R.Madhavan has officially become a whatsapp uncle from a chocolate boy.

— sini 🦋 (@siniya_says) June 23, 2022

अरे मेरे स्टालिन प्रेमियों, जीवन आपके JNU, JU और AMU से बहुत बड़ा है। ये जो अपने क्षेत्र के फनने खां बनते हो, तनिक के ज्ञान में उतर के देखो, डूब जाओगे। आप बताएंगे ISRO को कि विज्ञान क्या होता है? आप बताएंगे उस राष्ट्र को, जिसने खगोलशास्त्र से लेकर गणित और अंतरिक्ष के विज्ञान पर अनेकों पांडुलिपियाँ तब रच डाले, तब इनके पश्चिमी आकाओं को दो और दो मिलाना भी नहीं आता था।

और पढ़ें: भारतीय स्कूलों का नाम कुख्यात ‘संत’ फ्रांसिस जेवियर के नाम पर क्यों रखा जाता है?

किन्तु आखिर क्यों हिंदू कैलेंडर को सबसे वैज्ञानिक कैलेंडर माना जाता है?

पश्चिमी कैलेंडर का एक संक्षिप्त ऐतिहासिक पूर्वावलोकन यह समझाने में मदद करेगा कि भारतीय प्रणाली इतनी सटीक और वैज्ञानिक क्यों है। वर्तमान पश्चिमी कैलेंडर की उत्पत्ति प्राचीन रोमन कैलेंडर से हुई है। ‘कैलेंडर’ शब्द की उत्पत्ति रोमन कैलेंडर के पहले महीने ‘कलेंडिया’ से हुई है। 46 ईसा पूर्व में, जूलियस सीजर ने डेटिंग की प्रणाली में सुधार की घोषणा की, जिसे जूलियन कैलेंडर कहा जाता है। यह ग्रीक खगोलशास्त्री, सोसिजेन्स थे, जिन्होंने सीज़र को यह नया कैलेंडर रखने की सलाह दी थी, क्योंकि उन्होंने बहुत बाद में पाया की सौर वर्ष की लंबाई 365¼ दिनों की थी।

पिछले वर्षों में हुई त्रुटियों की भरपाई के लिए, सीज़र ने पहले वर्ष के लिए 445 दिन आवंटित करने का निर्णय लिया। आश्चर्य नहीं कि 46 ईसा पूर्व, बाद में ‘भ्रम का वर्ष’ के रूप में चर्चित हो गया। दुर्भाग्य से काफी त्रुटियों और गलतफहमियों के कारण, नया कैलेंडर 8CE तक सुचारू संचालन में नहीं था। बताओ, जिन्हे ढंग से दिन जोड़ना भी न आए, उनके कैलेंडर को आज तक हम चलाते आ रहे हैं, और जिस पंचांग के कारण हमारे देश की संस्कृति युगों युगों तक अक्षुण्ण रही, उसी को हीन बता रहे हो?

वैदिक साहित्य के संदर्भ बताते हैं कि समय का विज्ञान और समय के वैज्ञानिक माप का ज्ञान ईसाई युग से हजारों साल पहले वैदिक काल के दौरान भी मौजूद था। ग्रहों की गतियों, नक्षत्रों, ग्रहणों, संक्रांति, ऋतुओं आदि का ज्ञान वैदिक युग के प्रारंभ से ही विद्यमान रहा है। नागरिक जीवन के उद्देश्यों के लिए समय को विभिन्न अवधियों जैसे दिनों, पखवाड़े, महीनों और वर्षों में विभाजित करने की एक विधि को अपनाया गया था, इन विभाजनों को लोगों के मामलों से घनिष्ठ रूप से जोड़ा गया था। इसी कारण कि भारतीय कैलेंडर को दैनिक जीवन के लिए तैयार किया गया था.इसे चंद्र और सौर दोनों के गति का प्रयोग करने की स्वतंत्रता दी गई थी। ऐसे ही नहीं हमारे ISRO के उच्च से उच्चतम अफसर हर मिशन के पूर्व सनातन संस्कृति को नमन करते हैं, जिसके पीछे वामपंथी पोर्टल्स ने इनका उपहास भी उड़ाया है।

और पढ़ें: केवल भारत में ही नहीं बल्कि चीन, जापान, बाली, म्यांमार और कई देशों में भी होती है देवी सरस्वती की आराधना

इसका मतलब है कि सौर वर्ष और उसके मासिक चंद्र विभाजन के बीच एक निरंतर संबंध था। एक चंद्र मास ठीक 29 दिन 12 घंटे 44 मिनट और 3 सेकंड लंबा होता है। ऐसे बारह महीने 354 दिन 8 घंटे 48 मिनट 36 सेकेंड का चंद्र वर्ष बनाते हैं। चंद्र महीने सौर वर्ष के साथ मेल खाए इसके लिए, इंटरकैलेरी (अतिरिक्त) महीनों को सम्मिलित किया गया। सामान्य तौर पर, 60 सौर महीने = 62 चंद्र महीने। और इसलिए एक अतिरिक्त महीना हर 30 महीने या लगभग हर 21/2 साल में डाला जाता है। इतना जटिल विज्ञान लिबरल्स नहीं समझ सकते. राम माधव को कोसना उनके बुद्धि हीनता के साथ साथ उनके व्यक्तित्व हीनता की भी परिचायक है जो आज भो पश्चिमी दासता में जकड़ी हुई है।

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Tags: ‘रॉकेट्री – द नम्बी इफेक्ट’आर माधवनग्रीस ग्रेगोरियन कैलेंडरभारतीय कैलेंडरवैदिक साहित्य
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अधिवक्ता ( सर्वोच्च न्यायालय) हिंदी स्तंभकार (TFI Media) दक्षिणपंथी-हिन्दू-राष्ट्रवादी ।। यत: धर्मोस्ततो जय: ।।

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