हर काम का एक समय होता है- एक समय लाया जाता है और एक समय प्रभु द्वारा दिखाया जाता है! राजनीति में इन दिनों दोनों समय की मान्यता बहुत है। सरकार बनने का समय तब आता है जब जनता साथ देती है और नीति निर्धारण की सही बेला उसी समय आती है जब उसकी स्वीकृति परम कृपालु ईश्वर देता है। कुछ ऐसा ही हाल वामपंथी सोच और पश्चिमी सभ्यता से ग्रसित रही भारतीय शिक्षण प्रणाली का रहा, जहां परिवर्तन के बहुत कम ही आसार और अवसर दिखाई दिए। अब वर्ष 2014 के बाद इसके पथ भी खुले और आतताइयों के महिमामंडन और कसीदे पढ़ती किताबों से सल्तनत और मुग़लशाही वाली लफ्फाजी काटी गई। साथ ही हाल ही में इसे और दुरुस्त करने के लिए एक निर्णय लिया गया है। हालांकि, इस मामले पर ऐसे फैसले की आवश्यकता नहीं थी बल्कि उसी में संपादन किया सकता था और आक्रांताओं के असल चारित्रिक व्यवस्था को प्रस्तुत की जा सकती थी।
यह सर्वविदित है कि जो इतिहास से नहीं सीखते वो विक्षिप्त होते हैं। अगली पीढ़ी को सही इतिहास सौंपकर जाना यह वर्तमान पीढ़ी की ज़िम्मेदारी है। अब तक जो हुआ, जो पढ़ाया गया वो परिवर्तित नहीं हो सकता पर उस पढ़ाए हुए को अब और न पढ़ाया जाए और उसमें मौजूद त्रुटियों को सुधारा जाए यह अवश्य किया जा सकता है और होना भी चाहिए। सही इतिहास सौंपने का अर्थ यह नहीं है कि जो पढ़ाया गया उसे मिटा दिया जाए बल्कि उसे ऐसे पढ़ाया जाए कि आगामी पीढ़ी उससे सीख लेकर चले कि ऐसा आगे नहीं होने देना है। ऐसा कौशल, ऐसा बल-बुद्धि-विवेक निर्मित हो जो ज़हर उगलते मुगलपरस्त इतिहास को चुनौती दे सके क्योंकि अतीत में क्रूरता की वास्तविक सीमा को जाने बिना हम कभी भी अपने आप को पर्याप्त रूप से तैयार नहीं कर सकते हैं।
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NCERT ने किया पाठ्यक्रम में संशोधन
दरअसल, पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत बनाने के लिए, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने इतिहास की किताबों से कई हिस्सों को हटा दिया है। इस्लामिक आक्रमणकारियों पर कुछ अध्यायों को पूरी तरह से हटा दिया गया है। वहीं, कुछ अध्यायों को थोड़ा कम कर दिया गया है। प्रथमदृष्टया तो यह बहुत सराहनीय कदम प्रतीत होता है पर इसमें सबसे बड़ी त्रुटि यह रही कि आतताइयों के उस दुर्दांत चेहरे से सभी पीढ़ियों को परिचित कराना आवश्यक है, जिससे वो सतर्क रहें और ऐसे माहौल को पनपने भी न दें।
बदलते परिदृश्य की यह सबसे बड़ी मांग है कि सही ढंग से विश्लेषण करने के बाद इन बर्बर मुगल आक्रमणकारियों का अपरिवर्तित और सच्चा इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए। इसका महत्व भी अब महसूस किया जाने लगा है। लेकिन सही ढंग से विश्लेषण करने के बाद आप इस बात के महत्व को महसूस करेंगे कि हमें इन बर्बर मुगल आक्रमणकारियों का अपरिवर्तित और सच्चा इतिहास क्यों पढ़ाया जाना चाहिए।
ज्ञात हो कि परिवर्तन की श्रृंखला पूर्व में ही शुरू हो गई थी। इंडियन एक्सप्रेस ने कक्षा 6 से कक्षा 12 के लिए नौ वर्तमान इतिहास की पाठ्यपुस्तकों और प्रस्तावित परिवर्तनों की तुलना करने के बाद परिवर्तनों का विश्लेषण किया है। उनके अनुसार, मुस्लिम शासकों से संबंधित कई विषयों को बदल दिया गया है या कम कर दिया गया है। तुगलक, खिलजी, लोदी और मुगल साम्राज्य जैसे राजवंशों द्वारा शासित दिल्ली सल्तनत के कई पृष्ठ 7वीं कक्षा के इतिहास की पाठ्यपुस्तक “हमारा इतिहास-II” से कम कर दिए गए हैं। 11वीं कक्षा में, ‘द सेंट्रल इस्लामिक लैंड्स’ अध्याय को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया। ‘मुगल साम्राज्य’ अध्याय में एक छोटा सा बदलाव किया गया है। इसे अब बदलकर मात्र ‘मुगल’ लिखा जाने लगा है। NCERT के अनुसार यह युक्तिकरण उन अध्ययनों के तनाव को कम करने के लिए किया गया है जो कोविड महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
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सरकार को बतानी चाहिए थी आक्रांताओं की हकीकत
यह भारतीय शिक्षण व्यवस्था का दुर्भाग्य ही था जो अब तक मुगलों के ऐसे महिमामंडित इतिहास को ढ़ोते रहे। ऐसे में नए परिवर्तनों में एकमुश्त हटा देने के बजाए उस काल के वास्तविक इतिहास को सामने लाना चाहिए था। कैसे बर्बर मुगल और अन्य आक्रमणकारियों ने भारत को लूटा और जबरन सामूहिक धर्मांतरण करवाया। उन योद्धाओं पर उनके अत्याचारों के बारे में पढ़ाना चाहिए जो उनके अत्याचार को समाप्त करने के लिए उनके खिलाफ खड़े हुए थे। पाठ्यपुस्तकों में आक्रमणकारियों का पर्दाफाश किया जाना चाहिए था। उनकी खूनी हकीकत सबके सामने आ जानी चाहिए थी। कैसे धर्म के नाम पर उन्होंने भूमि को उजाड़ दिया और मनुष्य के शरीर में राक्षसों के समान थे।
कुल मिलाकर, जो होना चाहिए वो उक्त संदर्भित कथनों से अमल में अवश्य लाया जाना चाहिए क्योंकि इतिहास स्वयं को दोहराता ज़रूर है। पर ऐसे इतिहास से अब सबक लेकर उससे भिड़ने की शक्ति किताबों में आमूलचूल परिवर्तन करने से ही आएगी। जब तक मुग़लों को उनके असल चरित्र में नहीं दिखाया जाएगा तब तक अतीत से कोई भी सतर्क नहीं रह पाएगा। इसलिए ही सरकार को एनसीईआरटी की किताबों से मुग़लों का जिक्र नहीं हटाना चाहिए था, मात्र सत्य प्रकाशित करना चाहिए था।
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