राइट मैन इन द रॉन्ग पार्टी का असल उदाहरण हिमंता बिस्वा सरमा तब तक थे जब तक वो कांग्रेस के नेता रहे, भाजपा में आते ही उनकी बहुआयामी कार्यशैली और संकट प्रबंधन नीति ने कई करिश्मे कर दिखाए। महाराष्ट्र के सियासी संकट में शिवसेना और निर्दलीय विधायकों के लिए गुजरात के बाद अगला गंतव्य असम हो चला है, जहां बुधवार सुबह भाजपा के विधायकों ने उनका स्वागत करते हुए उन्हें होटल तक पहुंचाया। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा पहले ही सभी विधायकों के रहने की तैयारियों का जायजा लेने होटल पहुंच गए थे और विधायकों के होटल पहुंचने से पूर्व ही सभी तैयारी देख कर वो वापस भी निकल आए थे। ऐसे में यह तो तय है कि गुवाहाटी से महाराष्ट्र की राजनीति को रीसेट करने में हिमंत बिस्वा सरमा अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
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शुरू हो गई है MVA की उल्टी गिनती
दरअसल, जैसे-जैसे महाराष्ट्र का सियासी घटनाक्रम मंगलवार शाम चढ़ते-चढ़ते उलट-पुलट हो गया उसके बाद से महाविकास अघाड़ी अनौपचारिक रूप से अल्पमत में आ गई। अभी आधिकारिक रूप से कोई सूची सामने नहीं आई है पर शहरी विकास और लोक निर्माण मंत्री एकनाथ शिंदे के बगावत पर उतरने के बाद शिवसेना समेत निर्दलीय विधायकों की 4 दर्ज़न से अधिक संख्या अभी रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का आनंद ले रही है। शिंदे ने दो टूक कहते हुए शिवसेना को चेता दिया है कि या तो भाजपा के साथ आकर सरकार बनाओ नहीं तो परिणाम क्या हो सकते हैं कोई भी समझ सकता है।
ऐसे में जब मंगलवार सुबह इन सभी बातों को मीडिया में सुर्खियां मिली तब पता चला कि महाराष्ट्र के सत्ताधारी दल के विधायक तो सूरत में डेरा डाले बैठे हैं, जिनका नेतृत्व और कोई नहीं एकनाथ शिंदे कर रहे थे। सारा दिन शिवसेना नेता और आलाकमान शिंदे से संपर्क साधने का प्रयास करता रहा, बात भी हुई पर एकनाथ की एक ही मांग रही, पहले भाजपा के साथ सरकार फिर होगी कोई बात। संध्या होते-होते विधायकों के 10 का आंकड़ा 28 और बाद में 40 पार बताया जाने लगा।
अब चूंकि सूरत में डाला डेरा महाराष्ट्र से पास पड़ रहा था, ऐसे में यही काम सही करते हुए बुधवार सुबह तक एकनाथ शिंदे समेत सभी विधायकों को असम शिफ्ट कर दिया गया। विधायक असम में एक भव्य ताम झाम के साथ पहुंचे, जहां शिंदे और उनके साथ आए विधायकों का स्वागत करने के लिए असम भाजपा सांसद पल्लब लोचन दास और पार्टी विधायक सुशांत बोरगोहेन मौजूद रहे। इसके बाद वे रैडिसन ब्लू होटल के लिए रवाना हुए।
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सरमा को यूं ही नहीं कहा जाता पूर्वोत्तर का चाणक्य
ज्ञात हो कि महाराष्ट्र का यह सियासी संकट राज्य में भाजपा की पुनः वापसी के लिए सबसे बड़ा अवसर है। ऐसे में भाजपा इस अवसर को ऐसे ही ज़ाया नहीं होने देना चाहती है और चूंकि चुनाव जीतने और पूर्वोत्तर के सभी राज्यों या यूं कहें 7 सिस्टर्स को एकीकृत करने में सरमा का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने पूर्व में अपने पडोसी राज्यों में भी भाजपा की जीत सुनिश्चित करने में अहम निभाई थी। सरमा अपने राजनीतिक कौशल के लिए व्यापक रूप से जाने जाते हैं। वह एक ऐसे राजनेता हैं जो सरकार बना या बिगाड़ सकते हैं। उन्होंने पूर्वोत्तर में ऐसे कई मिशनों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया है।
2017 के मणिपुर चुनावों में भाजपा ने 60 सदस्यीय सदन में कांग्रेस की 28 सीटों के मुकाबले 21 सीटें जीती थी, लेकिन सरमा पार्टी को गठबंधन सरकार बनाने में मदद करने के लिए संख्या बढ़ाने में कामयाब रहे। कुछ साल पहले सत्तारूढ़ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल के अधिकांश विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे और उन्होंने भाजपा की सरकार बनाई थी। सरमा ने इसमें भी अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में महाराष्ट्र में शिवसेना पर आई आपदा को भाजपा अवसर में बदलने के लिए कोई ढिलाई, कोताही और चूक करने से बच रही है। सभी बागी विधायकों को एक ऐसी जगह पहुंचाना जहां से टूट-फूट का कोई अर्थ ही न निकलता हो, भाजपा ने इसका ज़िम्मा हिमंत बिस्वा सरमा को सौंपा है!
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