सच से मुंह मोड़ लेना उसे स्वीकार करने से ज्यादा आसान होता है। बिल्कुल यही हमारे देश में हो रहा है। हिंदुस्तान में आज हर बुरी चीज के लिए ब्राह्मणों को दोषी ठहराया जाता है। जातिवाद के लिए सबसे ज्यादा ब्राह्मण को दोष दिया जाता है। उन्हें पानी पी-पीकर गालियां दी जाती हैं। फेमिनिस्ट अपनी हर बात में ब्राह्मणों को दोषी ठहराते हैं- वो भी ब्राह्मणों को कुचल देना चाहते हैं। इस्लामिस्टों का उद्देश्य भी यही है कि किसी तरह से ब्राह्मणों को खत्म कर दिया जाए। वामपंथी और कथित उदारवादी भी देश की हर सामाजिक समस्या के लिए ब्राह्मणों को दोषी ठहराते हैं।
ब्राह्मण विरोधी नैरेटिव
ऐसा नहीं है कि यह कुछ ही वर्षों में होने लगा हो- ऐसा ही होता आया है- संविधान बना तो उसमें ग़रीब दलितों को-शोषितों को-वंचितों को आरक्षण दे दिया गया? ब्राह्मणों को कुछ नहीं दिया गया। क्या ब्राह्मण ग़रीब नहीं होते हैं? वो आरक्षण चलता रहा- आज तक चल रहा है। आर्थिक तौर पर पिछड़ों के लिए मोदी सरकार ने 10 फीसदी आरक्षण की बात जरूर की है लेकिन उससे कितना बदलाव होता है- उसे देखने के लिए इंतजार करना पड़ेगा।
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हिंदुस्तान में आजादी के बाद से एक नैरेटिव तैयार किया गया- नैरेटिव कि ब्राह्मणों ने दूसरी जाति के लोगों को प्रताड़ित किया- ब्राह्मणों ने दूसरी जाति के लोगों को आगे नहीं बढ़ने दिया- ब्राह्मणों ने दूसरी जाति के लोगों को पढ़ने नहीं दिया- इसी नैरेटिव के आस-पास वर्षों तक चर्चाएं हुईं- इसी नैरेटिव के आस-पास वर्षों तक सरकारों ने अपनी राजनीति की। इसी नैरेटिव के आस-पास वर्षों तक योजनाएं बनी- नीतियां बनी और उनका क्रियान्वयन किया गया।
केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक ने करीब-करीब इसी नैरेटिव के आसपास अपनी योजनाओं को लागू किया। ब्राह्मणों को इग्नोर करते गए। छोड़ते गए। दूसरी जातियों को देते गए। संपन्न करते गए। अल्पसंख्यकों को भी देते गए क्योंकि उनसे वोट चाहिए था। ब्राह्मणों की जनसंख्या कम है- तो वो कभी किसी के वोट बैंक नहीं बन पाए। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो नैरेटिव सेट किया गया- जो नैरेटिव पूरे देश में और विदेशों में फैलाया गया- जिस नैरेटिव की वज़ह से कितने ही ब्राह्मणो को अपनी जिंदगी खोनी पड़ी- क्या उस नैरेटिव में कोई सच्चाई है?
ब्राह्मण परिवार ने की खुदकुशी
आज के इस लेख में हम इस नैरेटिव पर विस्तार से चर्चा करेंगे लेकिन उससे पहले आप समझ लीजिए कि देश में ब्राह्मणों की स्थिति कितनी दयनीय है। इसे समझने के लिए बहुत ज्यादा आंकड़ों की या फिर रिसर्च की हमें ज़रूरत नहीं है। बिहार में हाल ही में जो दर्दनाक घटना घटित हुई है- वो घटना ही इस बात को समझने के लिए काफी है कि देश में ब्राह्मणों की स्थिति कितनी दयनीय है?
बिहार के समस्तीपुर में एक गांव है मऊ। यह गांव विद्यापतिनगर थाने में पड़ता है। इसी गांव के एक घर में एक पूरे परिवार ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। परिवार के सभी 5 सदस्य रस्सी से लटके हुए मिले। समस्तीपुर के जिस परिवार ने फांसी लगाकर अपनी जिंदगी ख़त्म कर ली वो एक ब्राह्मण परिवार था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मनोज झा ऑटो चलाकर व खैनी बेचकर अपने परिवार का पेट पालते थे। लेकिन ऑटो से 5 सदस्यों के परिवार को पालना मुमकिन नहीं हो रहा था, ऐसे में परिवारीजनों का पेट भरने के लिए मनोज झा को दूसरे लोगों से कर्ज भी लेना पड़ा। कर्ज ले तो लिया था लेकिन वो लौटाने की स्थिति में नहीं थे।
ऐसे में कर्ज देने वालों ने उन्हें डांटना-धमकाना शुरु कर दिया। एक तो घर में खाने के लिए कुछ नहीं- ऊपर से दूसरों की डांट और फटकार भी- यह सबकुछ मनोज बर्दाश्त नहीं कर पाया और अपने पूरे परिवार के साथ फंदे से लटक गया। घर में यह लोग फांसी के फंदे से लटके हुए मिले- 45 साल के मनोज झा, 65 साल की मनोज झा की मां सीता देवी, क्रमश: 10 और 7 साल के मनोज झा के पुत्र सत्यम कुमार और शिवम कुमार, 38 साल की मनोज झा की पत्नी सुंदरमणि देवी।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इससे पहले मनोज झा के पिता रविकांत झा ने भी ग़रीबी और बदहाली से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी। बेटी की शादी करने के लिए उन्होंने भी कर्ज लिया था- कर्ज चुका नहीं पाने पर उन्होंने आत्महत्या कर ली थी।
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समस्तीपुर का यह पूरा परिवार जाति से ब्राह्मण था। इस पूरे परिवार के ऊपर सवर्ण होने का ठप्पा लगा था। सवर्ण होने के कारण इस परिवार को सरकारी सुविधाएं नहीं मिलती थी। यह परिवार सरकार की हर उस योजना से वंचित था, जिसमें उसे होना चाहिए था, बस इसलिए क्योंकि वो ब्राह्मण पैदा हुआ था। उसका ब्राह्मण पैदा होना मानो उसके लिए श्राप बन गया हो।
पूरी जिंदगी ग़रीबी में काटी- भुखमरी में काटी- रिक्शा चलाया- भूखे रहा- एक झोपड़ी में 5-5 लोग रहते थे- पिता ने आत्महत्या कर ली- इसके बाद भी वो ‘अत्याचारी ब्राह्मण’ कहा गया- इसके बाद भी उसे सरकारी योजनाओं का लाभ उस तरह नहीं मिला जैसा दूसरी जातियों को मिलता है- अंत में उसकी भी हिम्मत टूट गई- और पूरे परिवार के साथ वो भी अपने पिता की तरह फांसी के फंदे पर लटक गया।
यह है ब्राह्मणों की स्थिति
तो यह है देश का ब्राह्मण- जिसे दिन-रात, सुबह-शाम, सर्दी-गर्मी- गालियां दी जाती हैं। वामपंथी, कथित उदारवादी, जातिवादी बुद्धिजीवी और अर्बन नक्सल जिस ब्राह्मण की दिन-रात आलोचना करते हैं- यही है वो ब्राह्मण।
अब यहां पर हमें एक बात और समझनी चाहिए कि ब्राह्मणों को इस देश में कोई आरक्षण नहीं मिलता। ब्राह्मणों को इस देश में सरकारी सुविधाएं उस तरह से नहीं मिलती जैसी दूसरी जातियों को मिलती हैं। ब्राह्मणों को इस देश में कोई राजनीतिक पार्टी वोट बैंक नहीं समझती। ब्राह्मणों के लिए मीडिया में कोई संवेदनशीलता नहीं है। इसके साथ-साथ ब्राह्मण ‘विक्टिम कार्ड’ भी नहीं खेल सकता क्योंकि वो ब्राह्मण है।
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यही वज़ह है कि देश में हर दिन ब्राह्मण आर्थिक तौर पर नीचे और नीचे जा रहे हैं। फ्रांस के पत्रकार फ्रेंन्कॉइस गोटियर (Francois Gautier) ने 2007 में सर्वे रिपोर्ट जारी की थी। उस रिपोर्ट के अनुसार– आज आपको किसी भी सरकारी ऑफ़िस में ब्राह्मण टॉयलेट साफ करते हुए मिल जाएंगे। रिपोर्ट के अनुसार उस वक्त दिल्ली में 50 सुलभ शौचालय थे, इन सभी सुलभ शौचालाय की साफ-सफाई और देख-रेख का काम ब्राह्मण ही करते थे। दिल्ली के पटेल नगर में 50 फीसदी रिक्शाचालक ब्राह्मण हैं।
बनारस में ज्यादातर रिक्शाचालक ब्राह्मण हैं। आंध्र-प्रदेश में घरों में काम करने वालों में 75 फीसदी आबादी ब्राह्मणों की है। इसी तरह से और भी तमाम आंकड़े हैं जो दिखाते हैं कि ब्राह्मणों की स्थिति दिन पर दिन बदतर होती जा रही है- इसके बाद भी ब्राह्मणों के विरुद्ध अभी भी दिन-रात नैरेटिव सेट किया जाता है।
क्या आपने कभी कोशिश की है कि इस बात को समझा जाए कि ब्राह्मणों के विरुद्ध इस तरफ का ज़हरीला अभियान क्यों वर्षों से चलाया जा रहा है? इसके पीछे एक मुख्य वज़ह है कि यह लोग जो ब्राह्मण विरोध करते हैं- जो ब्राह्मणों को खत्म कर देना चाहते हैं- दरअसल यह लोग हिंदू धर्म के विरोधी हैं। मूलत: इनका उद्देश्य हिंदू धर्म को बदनाम करना और उससे कमाई करना है।
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यह लोग जानते हैं कि हिंदुत्व को खत्म करने के लिए पहले ब्राह्मणों को बर्बाद करना पड़ेगा और वही इन लोगों ने इतने वर्षों में किया है। ऐसे में अब वक्त आ गया है कि इस सच्चाई को सामने लाया जाए कि ब्राह्मणों के विरुद्ध फैलाई गई नफरत दरअसल हिंदुत्व के विरुद्ध फैलाई गई नफरत है। इसके साथ ही हर उस नैरेटिव का काउंटर किया जाना चाहिए जो ब्राह्मण विरोधी माहौल तैयार करते हैं। सरकारों को भी इस तरह सोचना होगा कि ग़रीबी जाति देखकर नहीं आती है। एक ब्राहमण- एक विप्र-एक पुजारी भी ग़रीब हो सकता है। उसकी तरफ भी सरकार को ध्यान देना चाहिए।