बचपन में हमारे पास बड़े अनोखे प्रश्न थे।
पहले मुर्गी आई या अंडा?
फिर थोड़े बड़े हुए, तो सोचे, ये दुनिया गोल क्यों, चपटी क्यों नहीं?
फिर थोड़े बड़े हुए, तो सोचे, चाबी कहाँ है?
फिर थोड़े बड़े हुए, तो धर्मसंकट में पड़ गए कि भाई आखिर कट्टप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? पर अब देश के समक्ष उठ चुका है सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न – क्या बेइज्ज़ती का दूसरा नाम है करण जौहर या करण जौहर ही है बेइज्ज़ती का पर्याय? बॉलीवुड की बची खुची साख मिट्टी में मिलाने पर तुले हुए हैं।
हाल ही में बॉलीवुड के वर्चस्व को मिट्टी में मिलाते हुए तेलुगु और कन्नड़ सिनेमा ने भारतीय फिल्म उद्योग का वास्तव में भारतीयकरण करते हुए बॉक्स ऑफिस पर अपार सफलता से सिद्ध किया कि अंत में केवल मनोरंजक कॉन्टेन्ट महत्व रखता है, जो जनता को सिनेमाघर तक खींच सके। लोगों के अपने तर्क और मतभेद हो सकते हैं, पर इस पर कोई संदेह नहीं हो सकता कि ‘KGF’, ‘RRR’ एवं ‘Pushpa’, यहाँ तक कि हाल ही में प्रदर्शित ‘Vikram’ एवं ‘777 Charlie’ ने क्षेत्र और भाषा के बंधनों को तोड़ते हुए सम्पूर्ण देश के दर्शकों का मनोरंजन किया।
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अब ऐसे में बॉलीवुड को कैसे छोड़ा जाता?
अच्छे कॉन्टेन्ट की कमी, मनोरंजक फिल्मों के अभाव और दर्शकों को सिनेमाघरों तक न खींच पाने के चक्कर में बॉलीवुड को कोसने लगे। अब उसकी कुंठा फिल्म कम्पेनियन को दिए अपने साक्षात्कार में करण ने निकालते हुए कहा, “जब मैंने केजीएफ के रिव्यूज पढ़े तो मैं सोच में पड़ गया। मैंने सोचा अगर हमने ये फिल्म बनाई होती तो हमारी लिंचिंग हो जाती। लेकिन अब यहां सब ‘KGF’ की सक्सेस को सेलिब्रेट कर रहे हैं। हालांकि, वो फिल्म मुझे भी बहुत पसंद आई लेकिन फिर भी मैंने सोचा अगर हम ये करते तो क्या होता? परंतु इतने पर ही नहीं रुके आगे कहते हैं, ‘बॉलीवुड के फिल्ममेकर्स को वह छूट नहीं मिलती है, जो साउथ के फिल्म निर्माताओं को अक्सर मिलती है और इसकी खुशी को वह लोग सेलिब्रेट भी करते हैं। वैसे ये दोनों ही तरफ से हो रहा है हम दोहरा अस्तित्व जी रहे हैं, तो इसलिए हमें रुकना होगा। अगर हम ऐसी फिल्में बनाते तो यहां पर उसे बैन कर दिया जाता या हमारी लिंचिंग हो जाती।’
अब मुंह न खुलवाओ करण मियां, क्यों अपशब्द देना न हमारी संस्कृति में है, और न ही तुम उसके योग्य हो। तुम्हारा कहना है कि तुम्हें ‘KGF’ या ‘RRR’ जैसी फिल्में बनाने की छूट नहीं मिलती। साफ साफ क्यों नहीं कहते कि तुम्हारे इन्ही हरकतों के कारण लोगों का प्रथम विकल्प तुम्हारी फिल्में नहीं होती। चलो, मान लेते कि तुम्हें छूट मिलती, तो प्रयास भी तो किये, क्या उखाड़ लिए ‘धड़क’ बना के? ‘बाहुबली’, ‘द गाज़ी अटैक’ और ‘शेरशाह’ के डिस्ट्रीब्यूशन का क्रेडिट चुराने को अगर तुम अपनी उपलब्धि मानते हो तो फिर– और छूट न मिलने की तो बात मत ही करना बंधु। छूट तो आवश्यकता से अधिक मिली, पर कभी सोचा कि हमारे देश के महानायकों को सम्पूर्ण न्याय क्यों नहीं मिला?
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करण जौहर की मानसिकता ही उनको गर्त में ले जाएगी
हमारे देश के सबसे प्रख्यात वैज्ञानिकों में से एक, श्रीनिवास रामानुजन को सबसे उत्कृष्ट श्रद्धांजलि, पहले एक स्थानीय तमिल फिल्म और फिर एक हॉलीवुड फिल्म से ही क्यों मिली? क्योंकि आपकी प्राथमिकता कुछ और ही थी– देश के उन तत्वों को बढ़ावा देना, जिन्होंने सदैव भारत का अहित चाहा, चाहे वो आतंकवादी हो, अपराधी हो या फिर वामपंथी बुद्धिजीवी। माना कि KGF कोई विचित्र फिल्म नहीं, और इस श्रेणी से कुछ अलग नहीं, परंतु कम से कम जो एक काम बॉलीवुड डस्टबिन में फेंक चुकी है, वो तो ये फिल्म भरपूर प्रदान करती है – मनोरंजन, और अभी तो हमने ‘मेजर’, ‘RRR’, विक्रम जैसे फिल्मों की चर्चा भी नहीं की है।
सच पूछें तो करण जौहर उस मानसिकता के परिचायक है, जो बॉलीवुड के विनाश का कारण बन चुकी है – चाहे पाताल निगल ले या आकाश फट जाए, पर मजाल है कि परिवर्तन के पथ पर यह उद्योग एक पग भी चल दे, और वैसे भी करण जौहर यदि इस तरह कमबैक की सोच रहे हैं, तो वो आशा छोड़ ही दे, क्योंकि अब दिन लद गए है ।
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