बदलती वैश्विक व्यवस्था के बीच भारत अपना उचित स्थान बना रहा है। हाल ही में यूरोप यात्रा पर गए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि भारत किसी धुरी में शामिल नहीं, बल्कि स्वयं एक शक्ति है। यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत की स्वतंत्र विदेश नीति ने यह भली प्रकार स्पष्ट भी कर दिया है। अब भारत अपनी शक्ति के बल पर विश्व व्यापार संगठन जैसे संगठनों में भी अपना उचित स्थान बनाने को कमर कस चुका है।
12 जून से WTO के सदस्य देशों की मंत्रिस्तरीय बैठक होने वाली है। 12 जून से 15 जून तक जेनेवा में होने वाली यह बैठक WTO की मंत्रिस्तरीय 12वीं बैठक है। अंतिम बैठक 2017 में हुई थी। एक तो यह बैठक 5 वर्ष बाद हो रही है, उस पर यूक्रेन युद्ध और कोरोना संकट ने इसके महत्त्व को और भी बढ़ा दिया है। ऐसे में भारत इस बैठक में अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर मुखर होने वाला है।
और पढ़ें :- डबल हुक रणनीति से चीन को समुद्र में खदेड़ देगा भारत
चीन ने कई देशों के मछुआरों के लिए समस्या पैदा की है
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि सरकार देश के मछुआरों के हितों की रक्षा के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में बातचीत करेगी। वह मंगलवार (6 जून) की रात अलाप्पुझा जिले के अरूर में भाजपा द्वारा आयोजित लाभार्थी बैठक को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने समुद्र में मछलियों के भंडार की कमी पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि गहरे समुद्र के जहाजों वाले समृद्ध देश जो समुद्र से बड़ी मात्रा में मछलियां लेते हैं, वैश्विक संकट के लिए जिम्मेदार हैं। उनका इशारा चीन की ओर था क्योंकि चीन ने हाल ही में अपने जहाजों और नौसैनिक शक्ति के बल पर कई देशों के मछुआरों के लिए समस्या पैदा की है।
एक अन्य विस्तृत रिपोर्ट बताती है कि सरकार वैश्विक स्तर पर अनाज के भंडारण और कालाबाजारी तथा वैक्सीन पेटेंट को लेकर भी अपना पक्ष रखेगी। एक ऐसे समय में जब दुनिया अनाज के संकट से जूझ रही है कुछ देशों द्वारा अनाज के भंडारण को बढ़ावा देना न्यायोचित नहीं है और भारत इसका विरोध करेगा। इसके अतिरिक्त भारत ने पूर्व में प्रस्ताव दिया था कि जिन देशों के पास वैक्सीन है उन्हें पेटेंट पर से अपने अधिकार छोड़ देनी चाहिए जिससे गरीब देश आसानी से पूर्ण वैक्सीन की नकल बना सकें और वैक्सीन का उत्पादन तेजी से आगे बढ़ सके। हालांकि यूरोपीय शक्तियों ने भारत के प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया था।
कई संरचनात्मक मुद्दों पर भी भारत विश्व व्यापार संगठन से स्पष्टता चाहेगा। जैसे डब्ल्यूटीओ का एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर या कृषि समझौता अंतरराष्ट्रीय कृषि बाजार के विकास के लिए प्रयासरत है तथा कृषि व्यापार के अंदर किसी भी प्रकार की बाधाओं को समाप्त करने का प्रयास करता है।
विश्व व्यापार संगठन का कृषि समझौता सभी देशों की बाजार तक पहुंच सुनिश्चित करने का प्रयास करता। असल समस्या शुरू होती है आंतरिक स्तर पर दी जाने वाली सब्सिडी को लेकर। विकसित देश आंतरिक स्तर पर दी जाने वाली सब्सिडी का विरोध करते हैं जबकि भारत जैसे देश के लिए, जहां बहुसंख्यक आबादी कृषि कार्य से जुड़ी हुई है, किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी, आर्थिक विकास हेतु मदद के स्थान पर आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा का माध्यम है।
और पढ़ें :- चीनियों द्वारा वित्त पोषित एक इस्लामिक संगठन है PFI
निवेशकों के लिए भारत सबसे प्रिय स्थान
भारत में अपने कृषक वर्ग की सुरक्षा के लिए पिछले वर्षों में दृढ़ता के साथ कदम उठाए हैं। आसियान देशों द्वारा बनाए गए RCEP में भारत का शामिल ना होना इसका एक उदाहरण है। इस समय भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था में सबसे तेजी से विकास कर रही है। पश्चिमी देशों के निवेशकों के लिए भारत सबसे प्रिय स्थान है। ऐसे में भारत अपनी कूटनीतिक शक्ति का प्रयोग करेगा और विश्व व्यापार संगठन को अपनी शर्तें स्वीकार करवाने के लिए मजबूर करेगा।
भारतीय किसानों के हितों की रक्षा के लिए भारत द्वारा विश्व व्यापार संगठन पर दबाव बनाए जाना अति आवश्यक है। किंतु बात केवल आर्थिक हित की नहीं बल्कि कूटनीतिक प्रभुत्व की भी है। भारत की सॉफ्ट पावर का विस्तार हो रहा है। विश्व व्यापार संगठन में लंबे समय तक अमेरिका यूरोप और चीन जैसी वैश्विक महाशक्तिओं के आगे सिर झुकाया है। वस्तुतः विश्व व्यापार संगठन वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने का एक मंच है जिस पर बड़े व्यापारियों अर्थात मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों को उनका उचित स्थान दिया जाता है। विश्व व्यापार संगठन को यह समझना चाहिए कि आज भारत की एकमात्र ऐसा देश है जो दुनिया को अनाज के संकट से बाहर निकाल सकता है। भारत विश्व व्यापार संगठन के मंच पर अपना सम्मानजनक स्थान पाने का हकदार है और विश्व व्यापार संगठन को वैश्विक हित में भारत की शर्तों के आगे झुक में ही चाहिए।