हिंदुत्व के अपने मूल से भटकने वाली और सेक्लुअर चोला ओढ़ने का प्रयास कर रही शिवसेना को अपने कर्मों की सजा मिल रही है। जब से तीन पहियों वाली महाविकास अघाड़ी की महाराष्ट्र में सरकार आयी है तब से किसी ना किसी कारण से ये गठबंधन की सरकार मुश्किलों में घिरी ही रहती है। एक तरफ महाराष्ट्र में राज्यसभा चुनाव हो रहा है तो दूसरी तरफ उद्धव सरकार को तगड़ा झटका लग गया।
लंबे समय तक चले सियासी संघर्ष और रिजॉर्ट पॉलिटिक्स के बाद अब उच्च सदन का चुनावी रण अपने अंतिम चरण में आ गया। आज यानी 10 जून को 4 राज्यों हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान और महाराष्ट्र की 16 सीटों पर वोटिंग हो रही है। हालांकि इससे पहले महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के समर्थन के 2 वोट छिन चुके हैं। दरअसल, जेल में अपने कर्मों की सजा भुगत रहे NCP के बड़े नेता अनिल देशमुख और नवाब मलिक को अदालत की तरफ से राहत नहीं मिली। न्यायालय ने इन दो वरिष्ठ विधायकों की मतदान करने की याचिका को खारिज कर दिया है। यानी अनिल देशमुख और नवाब मलिक राज्यसभा चुनाव में वोट नहीं दे पाएंगे, जिससे सत्ताधारी पार्टी का गणित गड़बड़ा सकता है।
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MVA के दो मूल्यावन वोट हुए बर्बाद
राज्यसभा में हर एक वोट काफी कीमती होता है। महाराष्ट्र में राज्यसभा चुनाव में एक उम्मीदवार को जीतने के लिए 42 वोटों की आवश्यकता थी। परंतु कोर्ट के फैसले के बाद एक उम्मीदवार को जीत हासिल करने के लिए 41 वोट चाहिए होंगे। हाईकोर्ट के फैसले से MVA के 2 विधायकों के न वोट करने से 2 वोट कम हो गए जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिल सकता है।
महाराष्ट्र के दो दशकों के बाद राज्यसभा का चुनाव हो रहा है। इस बार 6 सीटों के लिए 7 उम्मीदवार मैदान में उतर आए हैं। पूरा मामला छठी सीट को लेकर फंसा हुआ है। छठी सीट को लेकर शिवसेना ने संजय पवार और बीजेपी ने धनंजय महादिक मैदान में हैं।
देखने वाली बात है कि बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना को जिस तरह से उद्धव ठाकरे आगे बढ़ा रहे हैं, उससे तो ऐसा लगता है कि उनका अंत अब नजदीक आ रहा है। मुख्यमंत्री पद के लोभ में उद्धव ठाकरे ने ऐसी पार्टियों के साथ हाथ मिला लिया, जिनका इतिहास ही हिंदू विरोधी रहा है। अब उद्धव ठाकरे धीरे-धीरे उन्हीं के रूपरंग में ढलते जा रहे हैं और शिवसेना इस्लाम की हमदर्द बनती जा रही है, जो उद्धव के ताजा बयानों से स्पष्ट भी होता है।
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भाजपा को धोखा देकर सत्ता पर काबिज हुए हैं उद्धव
भाजपा को धोखा देकर उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की सत्ता पर तो भले ही काबिज हो गए, लेकिन शुरू से ही उनका महाविकास अघाड़ी गठबंधन विवाद से चौतरफा घिरा रहता हैं। एक तो भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गंभीर मामलों में महाराष्ट्र सरकार के बड़े नेता केंद्रीय जांच एजेंसियों की रडार पर रहते हैं। दूसरा गठबंधन में शामिल दलों शिवसेना, कांग्रेस और NCP में आपस में ही नहीं बनती। ऐसे में महाराष्ट्र की MVA सरकार पर संकट के बादल छाए रहते हैं। कब कौन-सा दल गठबंधन से अलग का साथ छोड़ दें और सरकार गिर जाए कहा नहीं जा सकता।
एक ओर इन वजहों से जहां शिवसेना का भविष्य संकट में हैं, तो वहीं दूसरी ओर भाजपा महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में मजबूत होती चली जा रही है। 2019 में भले ही भाजपा महाराष्ट्र में सरकार नहीं बना पाई थीं, लेकिन वो चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। ऐसे में अगर अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा अकेले अपने दम पर महाराष्ट्र की सत्ता पर विराजमान हो जाए, तो इसमें हैरानी की बात नहीं होगी।
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