चीन के चंगुल में फंसे श्रीलंका की हालत काफी बदतर हो चुकी है। बीजिंग के भारी कर्ज के कारण श्रीलंका को स्वयं को चीन के चंगुल से बाहर निकालना मुश्किल साबित हो रहा है, लेकिन चीजों को संतुलित करने के लिए अब श्रीलंका, भारत को देश के पूर्वोत्तर हिस्से में स्थित त्रिंकोमाली बंदरगाह को संयुक्त रूप से विकसित करने की अनुमति देने के लिए तैयार है। खबरों की मानें तो श्रीलंका ने परियोजना के संयुक्त विकास के लिए एक समझौता ज्ञापन तैयार किया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी कोलंबो यात्रा के दौरान इस पर हस्ताक्षर किए जाने की पूर्ण संभावना है। वहीं, दूसरी ओर यह भी संभावना जताई जा रही है कि श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा के लिए इसी महीने भारत आने वाले हैं।
ध्यान देने वाली बात है कि वर्षों से अपने घाटे को कवर करने हेतु और द्वीप की अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए आवश्यक आयातित उत्पादों को फाइनेंस करने को लेकर श्रीलंका एक के बाद एक चीन से कर्ज़े लेने के कारण आज गंभीर स्थिति में पहुंच चुका है, जहां अब उसकी नैया डूबती हुई नजर आ रही है। श्रीलंका के आर्थिक संकट को चीनी-वित्त पोषित परियोजनाओं द्वारा और बढ़ा दिया गया है जो सरकारी अपव्यय के लिए उपेक्षित स्मारकों के रूप में खड़े हैं।दक्षिण एशियाई द्वीप राष्ट्र ने वर्षों के बजट की कमी और व्यापार घाटे को पूरा करने के लिए भारी उधार लिया, कई ऐसे प्रोजेक्ट्स पर भारी रकम खर्च की जिहोंने कोई भी इच्छुक परिणाम नहीं दिया। श्रीलंका वर्ष 1948 में ब्रिटेन से आजादी के बाद से अब अपने सबसे खराब वित्तीय संकट की चपेट में है। महीनों के ब्लैकआउट, भोजन और ईंधन की कमी के कारण इस देश में रहने वाले 22 मिलियन लोग परेशान हैं।
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सरकार के इस आर्थिक कुप्रबंधन का सबसे बड़ा सबूत दुनिया के सबसे व्यस्त पूर्व-पश्चिम शिपिंग लेन पर बंदरगाह हंबनटोटा, जो कि औद्योगिक गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए था। इसके बजाय, इस बंदरगाह ने परिचालन शुरू करने के क्षण से ही श्रीलंका की मुश्किलें बढ़ाई है। हंबनटोटा बंदरगाह अपने निर्माण के वित्तपोषण के लिए 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के चीनी ऋण की सेवा करने में असमर्थ था, 6 वर्षों में $300 मिलियन का नुकसान हुआ। वर्ष 2017 में, एक चीनी कंपनी को यह बंदरगाह 99 साल की लीज पर सौंपा गया था- एक ऐसा सौदा जिसने पूरे क्षेत्र में चिंताओं को जन्म दिया कि बीजिंग ने हिंद महासागर में एक रणनीतिक पैर जमा लिया था। इस बंदरगाह के पास ही राजपक्सा एयरपोर्ट है जिसे इतना कम इस्तेमाल किया गया की एक समय ऐसा आया की यह एयरपोर्ट अपना बिजली बिल भरने में भी असमर्थ था। यह एयरपोर्ट भी चीन से क़र्ज़ लेकर बनाया गया था। चीन श्रीलंका की सरकार का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है और इसके 51 बिलियन अमरीकी डालर के विदेशी ऋण का कम से कम 10 प्रतिशत का मालिक है। हंबनटोटा जैसे कई फेल्ड प्रोजेक्ट्स चीख चीख कर राजपक्षे कबीले के कुप्रबंधन की कहानी बताते हैं।
भारत और हंबनटोटा बंदरगाह
श्रीलंका के पिछले पीएम राजपक्षे ने सबसे पहले दक्षिण में हंबनटोटा बंदरगाह विकसित करने के लिए भारत से संपर्क किया था और भारत द्वारा इस प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद ही चीन को आने की अनुमति दी थी। भारत को विश्वास था कि हंबनटोटा बंदरगाह विकसित करना आर्थिक रूप से व्यवहार नहीं होगा। और भारत का यह सोचना सही साबित हुआ क्योंकि यह बंदरगाह पर्याप्त यातायात उत्पन्न करने में विफल रहा, लेकिन अब भारत को हंबनटोटा बंदरगाह में चीन की भारी उपस्थिति का सामना करना पड़ रहा है। श्रीलंका ने अब चीन को हंबनटोटा में एक विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने और मटला हवाई अड्डे का और विस्तार करने की अनुमति दी है।
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त्रिंकोमाली का क्या महत्व है?
त्रिंकोमाली हार्बर, त्रिंकोमाली खाड़ी के पास स्थित एक प्रमुख बंदरगाह है, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक बंदरगाह है। बंदरगाह में 1630 हेक्टेयर पानी और 5261 हेक्टेयर भूमि है। बंदरगाह का प्रवेश चैनल 500 मीटर चौड़ा है। कई स्थानीय और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारियों और खोजकर्ताओं ने इस बंदरगाह से यात्रा की है। औपनिवेशिक युग के दौरान बंदरगाह का महत्वपूर्ण महत्व था, जिसमें बंदरगाह के नियंत्रण के लिए कई समुद्री युद्ध लड़े गए, जिसमें प्रत्येक औपनिवेशिक शासन की अपनी बारी थी।
पोर्ट अथॉरिटी वर्तमान में इसे आज श्रीलंका का एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक समुद्री बंदरगाह बना रहा है। त्रिंकोमाली में एक औद्योगिक बंदरगाह विकसित करने का प्रस्ताव काफी लम्बे समय से है जिसके तहत विदेशी और स्थानीय निवेश प्राप्त करके श्रीलंका पोर्ट अथॉरिटी एक विशेष आर्थिक क्षेत्र, औद्योगिक पार्क, या एक ऊर्जा केंद्र बना सके। यह गैर कंटेनर कृत कार्गो यातायात जैसे सीमेंट, कोयला, या औद्योगिक कच्चे माल के लिए बंदरगाह का विकास भी करेगा। त्रिंकोमाली में पहले से ही कई बंदरगाह टर्मिनल हैं,- लंका IOC सुविधा के अलावा , इसमें टोक्यो सीमेंट फैसिलिटी, अनाज फैसिलिटी और आटा फैक्ट्री और एक चाय का टर्मिनल है। यहाँ कोयला, जिप्सम और सीमेंट जैसे बल्क कार्गो के लिए एक घाट भी है।
भारत और त्रिंकोमाली
इस साल की शुरुआत में, इंडियन आयल कंपनी की सहायक लंका इंडियन आयल कंपनी और सीलोन पेट्रोलियम कारपोरेशन ने त्रिंकोमाली में ब्रिटिश शासन के दौरान निर्मित एक विशाल तेल भंडारण टैंक फार्म विकसित करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए। तेल भंडारण सुविधा बंदरगाह पर स्थित है और इसका अपना घाट है। वाणिज्यिक पहलू के अलावा, भारत के साथ त्रिंकोमाली बंदरगाह को संयुक्त रूप से विकसित करने में श्रीलंका के फैसले को सरकार और स्वतंत्र रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञों द्वारा एक अच्छे संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
जिस तरह से श्रीलंका चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर है और चीन का कर्ज़दार भी है उसी कारण ऐसा सोच पाना की श्रीलंका भारत के सुरक्षा हितों के खिलाफ काम करेगा लेकिन जापानी पीएम शिंजो आबे के साथ बैठक के बाद विक्रमसंघे ने कहा, “हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हम अपने सभी बंदरगाहों का विकास करेंगे, और इन सभी बंदरगाहों का उपयोग वाणिज्यिक गतिविधि, पारदर्शी गतिविधि के लिए किया जाता है, और किसी भी सैन्य गतिविधि के लिए ये किसी के लिए उपलब्ध नहीं होगा।”
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हालांकि, श्रीलंका ने चीन की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ पहल का समर्थन किया है, जिसके बारे में भारत को गंभीर आपत्ति है। पिछले साल विक्रमसिंघे की चीन यात्रा के बाद, दोनों पक्षों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि वे infrastructure के विकास को आगे बढ़ाने के अवसर के रूप में चीन के Maritime Silk Road के विकास का उपयोग करेंगे। भारत के अलावा त्रिंकोमाली बंदरगाह का विकास जापान और अमेरिका जैसे कई देशों के लिए रुचिकर रहा है। क्योंकि यह न केवल एशिया के बेहतरीन प्राकृतिक बंदरगाहों में से एक है बल्कि देश में चीन के प्रभाव को संतुलित करने का अच्छा अवसर देता है।