कांग्रेसियों और वामपंथियों ने देश के इतिहास के कई पन्नों को अपने हिसाब से तोड़ा-मरोड़ा, अपने चाहने वालों को खूब महिमामंडित किया जबकि आजादी के वास्तविक नायकों को पूरी तरह से भुला दिया। लेकिन काफी समय से देश के इतिहास पर जो चंद अयोग्य लोगों का एकाधिकार था जिन्हें कुछ वामपंथी चाटुकारों ने अकारण ही दैवतुल्य बनाया हुआ था, अब उस भूल को एक एक कर सुधारा जा रहा है और मोदी सरकार के नेतृत्व में देश के वास्तविक नायकों को उनका उचित सम्मान भी दिया जा रहा है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे देश के वीर योद्धाओं में से एक अल्लूरी सीताराम राजू को अब वास्तव में वो सम्मान दिया जा रहा है जिससे उन्हें वर्षों तक वंचित रखा गया।
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पीएम करेंगे उनकी मूर्ति का अनवारण
अगर आपने सुप्रसिद्ध फिल्म RRR देखी है, तो अब तक आपको ज्ञात तो हो ही गया होगा कि इस महावीर योद्धा का पराक्रम वास्तविक जीवन में कैसा रहा होगा। अब इनके 125वें जन्मदिवस को धूमधाम से मनाने का बेड़ा स्वयं केंद्र सरकार ने उठाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार (4 जुलाई, 2022) को आंध्र प्रदेश के भीमावरम शहर में महान स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू की प्रतिमा का अनावरण करेंगे। वो सुबह 11:00 से दोपहर 12:15 बजे तक अल्लूरी सीताराम राजू की मनाई जा रही 125वीं जयंती के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। पीएम भीमावरम पार्क में 30 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा का अनावरण करेंगे और एक जनसभा को संबोधित करेंगे। स्पेशल सेक्रेटरी (पर्यटन एवं संस्कृति) रजत भार्गव के अनुसार पीएम मोदी हैदराबाद से विशेष उड़ान से गन्नावरम पहुंचेंगे और तत्पश्चात हेलीकॉप्टर से पश्चिम गोदावरी जिले में भीमावरम जाएंगे। स्वयं केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी ने तेलुगू देशम पार्टी के प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू को कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता भेजा है।
‘रम्पा विद्रोह’ और अंग्रेजी कुनबे में कोलाहल
परंतु अल्लूरी सीताराम राजू ने ऐसा क्या किया था जिसके कारण उनके नाम से ब्रिटिश साम्राज्यवादी कंपायमान हो जाते थे? दरअसल, उन्होंने गोरों के खिलाफ एक सशस्त्र अभियान चलाया। उनका जन्म 1897 में विशाखापट्नम में हुआ था। उनका असली नाम श्रीराम राजू था जो कि उनके नाना के नाम पर था। 1882 में, मद्रास वन अधिनियम पारित किया गया था, जिसने ‘पोडु’ खेती के लिए स्थानीय आदिवासी लोगों के अपने खेत पर आंदोलन को प्रतिबंधित कर दिया था। इस कृषि में स्थानांतरित खेती शामिल थी। इसी को लेकर उन्होंने आदिवासियों के लिए लड़ाई लड़ी और औपनिवेशिक ताकतों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का आह्वान किया। उनके पिता वेंकट रामराजू, भले ही अंग्रेजों के लिए कार्यरत थे परंतु स्वतंत्रता की भूख उनमें कभी कम न हुई और यही भूख अल्लूरी को विरासत में मिली। उन्होंने भले ही शिक्षा और दीक्षा अंग्रेज़ी संस्थानों से ग्रहण की पर न उन्होंने ‘भारतीयता’ को त्यागा और न ‘भारतीयता’ ने उन्हें।
अंग्रेजों के प्रति बढ़ते असंतोष ने वर्ष 1922 के ‘रम्पा विद्रोह’ को जन्म दिया जिसमें अल्लूरी सीताराम राजू ने एक नेतृत्वकर्त्ता के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। 1922 से 1924 के बीच हुए इस विद्रोह में अल्लूरी ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए विशाखापट्टनम और पूर्वी गोदावरी जिलों के आदिवासी लोगों को संगठित किया। इस विद्रोह के दौरान कई पुलिस थानों और अंग्रेजी अधिकारियों पर हमला कर लड़ाई के लिए हथियार जमा किए गए।
उनके वीरतापूर्ण कारनामों का ही परिणाम था कि स्थानीय लोगों ने उन्हें ‘मान्यम वीरुडू’ (जंगलों का नायक) उपनाम दे दिया था। परंतु 1924 में वो ब्रिटिश शासन की गिरफ्त में आ गए और अंग्रेजों ने उन्हें सार्वजनिक रूप से क्रूरता से गोलियों से भून दिया। मृत्यु के समय उनकी आयु मात्र 27 साल थी। गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने हमेशा की भांति उनके शौर्य से पल्ला झाड़ने का प्रयास किया परंतु नेताजी सुभाष चंद्र बोस और यहां तक कि जवाहरलाल नेहरू जैसे व्यक्तियों को भी उनके शौर्य को नमन करना पड़ा, वो अलग बात थी कि स्वतंत्रता के पश्चात उन्हें इतिहास के एक कोने में सिमटा दिया।
परंतु सूर्य के प्रकाश को छिपाया नहीं जा सकता और उसे मिटाया नहीं जा सकता। अल्लूरी की ख्याति धीरे-धीरे आंध्रा के आगे फैलने लगी और अब एस एस राजामौली के ‘रौद्रम रणम रुधिरम’ यानी RRR की कृपा से सारा भारत इस महानायक के शौर्य से भली-भांति परिचित है और उन्हें नमन भी करता है। अब स्वयं पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार इस वीर नायक को उनका उचित सम्मान देकर ये सिद्ध कर चुकी है कि अब देश में जय उसी की होगी, जो योग्य होगा।
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