चीन की विस्तारवादी सोच और पैंतरों को कौन नहीं जानता? लेकिन चोरी पकड़े जाने पर भी बाज नहीं आता। हाल ही में खबरें आई हैं कि चीनी सरकार नेपाल में अरबों डॉलर पानी की तरह बहा रही है। हालाँकि इसके पीछे उसकी मंशा कोई अच्छी नहीं। चीन नेपाल में एक के बाद एक कई बुनियादी ढांचे विकसित कर रहा है, बिलकुल वैसे ही जैसा उसने कुछ समय पहले श्रीलंका में किया था। नेपाल में चीन की रूचि केवल नेपाल की भूमि को लेकर ही नहीं बल्कि भारत के लिए एक खतरा भी है। जिस तरह से चीन नेपाल में पैर जमाने की कोशिश कर रहा है उससे साफ़ है कि वह जल्द से जल्द भारत पहुँचना चाहता है।
दरअसल, नेपाल की सीमा एक तरफ से भारत से जुड़ी हुई है। अगर चीन नेपाल पर कब्ज़ा कर लेता है तो उसे भारत को लद्दाख़ और अरुणाचल की सीमा से भारत के अंदर घुसने का स्थान मिल सकता है। इस समय चीन की जो सीमाएं भारत से जुड़ी हैं वे पर्वतों के मार्ग से होकर गुजरती हैं। पर्वतों पर चीन भारत का मुकाबला नहीं कर सकता यह तो वह वर्ष 2020 में भारतीय सेना से मार खाकर समझ ही चुका है। लेकिन नेपाल की जो सीमा भारत से जुडी है वहां पर ग्रामीण इलाके हैं। यहाँ से चीन के लिए भारत तक अपना मार्ग बनाना बहुत हद तक आसान होगा।
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TFI की यह समीक्षा केवल एक कल्पना नहीं कि चीन भारत में प्रवेश करने के लिए नेपाल पर अधिग्रहण करने की कोशिश करेगा। ऐसा चीन ने स्वयं साबित कर दिया है। नेपाल के गोरखा जिले के चुमानुबरी गांव -1 के रुइला सीमा चौकी से एक ताजा घटना सामने आई है, जिसमें चीनी प्रशासन ने 200 मीटर की बाड़ और एक खंड पर एक गेट लगा दिया है। यह जगह पिछले सप्ताह तक नेपाल की थी लेकिन अब बाड़ लगाने के बाद अब यह चीन के कब्जे में आ गई है।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, पिछले महीने तक, खंड का सीमांकन या बाड़ नहीं लगाया गया था। इस सीमा खंड का उपयोग स्थानीय लोगों द्वारा एक गाँव से दूसरे गाँव में जाने के लिए किया जाता था लेकिन पिछले महीने से, चीनी सैनिक जो बाड़ वाले क्षेत्रों में तैनात हैं, वे नेपाल के लोगों को बाढ़ पार करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं, उनका कहना है कि “यह चीनी क्षेत्र है, तुम यहाँ नहीं आ सकते”। यह वही बात हो गई कि “एक तो चोरी और ऊपर से सीनाज़ोरी”।
क्या है चीन की सलामी स्लाइसिंग स्ट्रेटेजी?
चीन की सलामी स्लाइसिंग स्ट्रेटेजी एक ऐसी रणनीति को संदर्भित करता है जिसके द्वारा चीन दूसरे क्षेत्र के छोटे-छोटे हिस्सों पर अधिग्रहण करने की कोशिश करता है। वह एक-एक कदम दूसरे की भूमि में बढ़ता है जिससे कि दूसरे का ध्यान चीन की गतिविधियों पर अधिक न जाए और भूमि के एक हिस्से को चीन कब अपने कब्ज़े में ले लेता है सामने वाले को पता भी नहीं चलता कि कब उसकी 50 बीघा ज़मीन केवल 5 बीघा ही रह गई। हालाँकि यह गैरकानूनी है लेकिन चीन इतनी चालाकी से यह काम करता है कि जब तक पीड़ित अपनी आवाज़ उठाता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
चीन ने अपनी यह रणनीति भारत पर भी आजमाने की कोशिश की थी जब उसने लद्दाख़ से भारत की सीमा में घुसकर अपने टेंट गाड़े। लेकिन यहाँ उसकी चाल नहीं चली और उसकी चालाकी के कारण असंख्य चीनी सैनिकों की मौत हो गई। इसके अलावा चीन ने श्रीलंका में भी कुछ ऐसा ही दांव खेला जहाँ उसने श्रीलंका को क़र्ज़ के बोझ में इतना दबा दिया कि फिर जब चीन ने एक-एक कर वहां अपने बुनियादी ढांचा तैयार करना शुरू किया तो कोई भी चीन को कुछ न कह सका।
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नेपाल ने अभी सुध नहीं लिया तो देर हो जाएगी
इसके अलावा पूरी दुनिया को कोरोना के मुंह में धकेलने वाला चीन जून 2020 में भी बेशर्मी के साथ नेपाल में भूमि अधिग्रहण करने में लगा हुआ था। एक खबर के अनुसार चीन ने कोरोनकाल में नेपाल के चार जिलों हुमला, रासुवा, संखुवासभा और सिंधुपालचोक में कम से कम 28 हेक्टेयर भूमि पर कब्जा कर लिया था। चीन ने एक पूरे गांव रुई पर भी कब्जा कर लिया है, जो गोरखा जिले के अंतर्गत आता है। यह चीनियों द्वारा केवल एक तरफ से दूसरी तरफ सीमांकन करने वाले सीमा स्तंभों को स्थानांतरित करके किया गया था। इसके कारण, नेपाल के गोरखा जिले में लगभग 190 परिवार “चीनी क्षेत्र” का हिस्सा बन गए।
अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ बार-बार नेपाल को चीन के “कर्ज-जाल” में न पड़ने की चेतावनी जारी करते रहे हैं, जो शुरू में बहुत कम दर पर वित्तीय मदद देता है, लेकिन फिर देश में चूक होने पर देनदार देश में अचल संपत्ति पर नियंत्रण करने के लिए आगे बढ़ता है। अगर अब भी नेपाल ने अपने होश नहीं संभाले तो उसकी स्थिति पाकिस्तान और श्रीलंका जैसी होने में अधिक दिन नहीं लगेंगे।
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